चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ज्वार की नई बीमारी और इसके कारक जीवाणु क्लेबसिएला वैरीकोला की खोज की है. वैश्विक स्तर पर पहली बार ज्वार फसल में इस तरह की बीमारी का पता चला है. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने वैज्ञानिकों को इस रोग के प्रबंधन के लिए काम शुरू करने को कहा है. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक जल्द से जल्द आनुवांशिक स्तर पर इसका प्रतिरोध स्रोत खोजने की कोशिश करें. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे जल्द ही इस दिशा में भी कामयाब होंगे. इन वैज्ञानिकों ने ज्वार में क्लेबसिएला लीफ स्ट्रीक बीमारी पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार किया है.
बीमारी के मुख्य शोधकर्ता डॉ. विनोद कुमार मलिक ने बताया कि यह रोग पत्तियों पर छोटी से लेकर लंबी लाल-भूरे रंग की धारियों के रूप में प्रकट होता है. समय के साथ, इन धारियों की संख्या में वृद्धि होती है जो बाद में नैक्रोटिक क्षेत्र में परिवर्तित हो जाते हैं. एचएयू के वैज्ञानिकों डॉ. मनजीत घणघस, डॉ. पूजा सांगवान, डॉ. पम्मी कुमारी, डॉ. बजरंग लाल शर्मा, डॉ. पवित्रा कुमारी, डॉ. दलविंदर पाल सिंह, डॉ. सत्यवान आर्य और डॉ. नवजीत अहलावत ने भी इस शोधकार्य में योगदान दिया.
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अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसायटी (एपीएस), यूएसए द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठित जर्नल प्लांट डिजीज में इस नई बीमारी की रिपोर्ट को स्वीकार कर मान्यता दी गई है. यह सोसायटी पौधों में नई बीमारी को मान्यता देती है. यह सोसायटी पौधों की बीमारियों के अध्ययन के लिए सबसे पुराने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है जो विशेष तौर पर पौधों की बीमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन करती है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी की खोज करने वाले सबसे पहले हैं.
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बीआर काम्बोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि बदलते कृषि परिदृश्य में विभिन्न फसलों में उभरते खतरों की समय पर पहचान महत्वपूर्ण हो गई है. वैज्ञानिकों से बीमारी के आगे प्रसार पर कड़ी निगरानी रखने को कहा. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को इस रोग के नियंत्रण पर जल्द से जल्द काम शुरू करना चाहिए. इस अवसर पर ओएसडी डॉ. अतुल ढींगड़ा, कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एसके पाहुजा व मीडिया एडवाइजर डॉ. संदीप आर्य भी मौजूद थे.
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा ने बताया कि पहली बार खरीफ-2018 में ज्वार में नई तरह की बीमारी दिखाई देने पर वैज्ञानिकों ने तत्परता से काम किया. चार साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने इस बीमारी की खोज की है. वर्तमान समय में हिसार, रोहतक व महेन्द्रगढ़ क्षेत्र में यह बीमारी देखने को मिली है. पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. एचएस सहारण ने कहा कि बीमारी की जल्द पहचान से योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी.
इस बीमारी के मुख्य शोधकर्ता और विश्वविद्यालय के प्लांट पैथोलॉजिस्ट डॉ. विनोद कुमार मलिक ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी, यूएसए द्वारा दिसंबर, 2022 के दौरान ‘क्लेबसिएला लीफ स्ट्रीक डिजीज ऑफ सोरगम’ पर शोध रिपोर्ट को स्वीकार किया गया है. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी के सबसे पहले शोधकर्ता माने गए हैं. डॉ. मलिक ने कहा कि कई रूपात्मक, जैव रासायनिक, आणविक और रोगजनकता परीक्षणों के आधार पर हम यह साबित करने में कामयाब रहे कि एक जीवाणु क्लेबसिएला वेरिकोला इस बीमारी का कारक है.
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