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व‍िकस‍ित देशों को क्यों खटक रही भारत में क‍िसानों को म‍िलने वाली सरकारी सहायता और एमएसपी?

व‍िकस‍ित देशों को क्यों खटक रही भारत में क‍िसानों को म‍िलने वाली सरकारी सहायता और एमएसपी?

भारत ने अलग-अलग मंचों पर साफ क‍िया है क‍ि वो वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन (WTO) या व‍िकस‍ित देशों को खुश करने के ल‍िए अपने देश के क‍िसानों को सब्स‍िडी और एमएसपी देना बंद नहीं करेगा. जान‍िए, अपने क‍िसानों को ज्यादा सरकारी सपोर्ट और सब्स‍िडी देने के बावजूद क्यों अमेर‍िका और यूरोपीय देश भारत की कृष‍ि सब्स‍िडी को कम करवाना चाहते हैं?

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भारत की कृष‍ि सब्स‍िडी से क्यों बेचैन है डब्ल्यूटीओ. भारत की कृष‍ि सब्स‍िडी से क्यों बेचैन है डब्ल्यूटीओ.

कृष‍ि उत्पादों के न‍िर्यातक देशों में भारत सातवें नंबर पर आ गया है. हमारा कृषि निर्यात 2021-22 के दौरान 50 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है. आज दुन‍िया के कुल चावल एक्सपोर्ट में 45 फीसदी ह‍िस्सा भारत का है. दूध उत्पादन में हम पहले नंबर पर हैं. हम दुन‍िया के दूसरे सबसे बड़े मछली उत्पादक देश भी बन गए हैं....भारत की ऐसी सफलताएं अमेर‍िका सह‍ित कई व‍िकस‍ित देशों को खटक रही हैं. इसल‍िए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अक्सर ये व‍िकस‍ित देश भारत में क‍िसानों को म‍िलने वाले सरकारी सपोर्ट को कम करने का दबाव बना रहे हैं. अब कनाडा के मॉनट्रियल शहर में आयोज‍ित संयुक्त राष्ट्र बायोडायवर्सिटी कॉन्फ्रेंस (COP-15) को ही लीज‍िए. जहां भारत पर कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने और क‍िसानों को म‍िलने वाले सपोर्ट में कटौती का दबाव बनाने की कोश‍िश की गई. 

ऐसा दबाव बनाने वाले मुल्कों का मानना है क‍ि अगर भारत अपने किसानों को ज्यादा सब्सिडी देगा तो इसका असर वैश्विक कृषि कारोबार पर पड़ेगा. ज‍िससे उनके ह‍ित प्रभाव‍ित होंगे. हालांक‍ि, क‍िसी की परवाह क‍िए ब‍िना भारत सरकार ने एक बार फ‍िर व‍िकस‍ित देशों को दो टूक कह द‍िया है क‍ि कृष‍ि और क‍िसानों को सरकारी सपोर्ट जारी रहेगा. बायोडायवर्सिटी कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कृषि सब्सिडी पर भारत की नीति का मजबूती से बचाव क‍िया. 

यादव ने कहा, विकासशील देशों में लाखों लोगों के लिए कृषि जीवन और आजीविका का एक स्रोत है. ऐसे में कमजोर तबके के समर्थन को खत्म करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए. यह भी कहा क‍ि कृषि क्षेत्र में कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने के लिए कोई संख्यात्मक वैश्विक लक्ष्य निर्धारित करना अनावश्यक है और इस संबंध में निर्णय देशों पर छोड़ दिया जाना चाहिए. 

पेस्टीसाइड का इस्तेमाल

संयुक्त राष्ट्र संघ के फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (FAO) के मुताब‍िक अब अमेर‍िका में भारत के मुकाबले कृष‍ि योग्य जमीन कुछ कम हो गई है. जबक‍ि पेस्टीसाइड का इस्तेमाल भारत के मुकाबले छह गुना से अध‍िक हो रहा है. जबक‍ि यह यूरोपीयन देशों में सात गुना से भी अध‍िक है. कनाडा, जहां पेस्टीसाइड में कमी करने का मुद्दा उठा वहां कृष‍ि योग्य जमीन हमसे कम है, जबक‍ि वहां के क‍िसान कीटनाशकों का इस्तेमाल हमसे कहीं अधिक कर रहे हैं. 

अमेर‍िका बनाम भारत 

वाणिज्य मंत्रालय के अधीन आने वाले सेंटर फॉर डब्ल्यूटीओ स्टडीज के एसोस‍िएट प्रोफेसर डॉ. सच‍िन शर्मा ने 'क‍िसान तक' से बातचीत में कहा, "अमेर‍िका में क‍िसानों की इनकम भारत से अध‍िक है. फ‍िर भी वो प्रत‍ि क‍िसान सालाना 61000 यूएस डॉलर से ज्यादा की सब्स‍िडी देता है. दूसरी ओर, भारत अपने क‍िसानों को साल भर में 300 यूएस डॉलर से कम ही सब्स‍िडी दे पाता है. इसके बावजूद डब्ल्यूटीओ भारत पर कृष‍ि सब्स‍िडी कम करने और क‍िसानों को एमएसपी न देने का दबाव बना रहा है. क्योंक‍ि भारतीय कृष‍ि क्षेत्र की तरक्की से व‍िकस‍ित देशों को नुकसान हो रहा है. क‍िसानों को सरकारी सहायता जारी रहेगी, भारत अपने इस स्टैंड पर कायम है."  

क‍िसानों की आय 

भारत में इस समय लगभग 14.5 करोड़ किसान पर‍िवार हैं. यहां 2019 में प्रत‍ि क‍िसान पर‍िवार औसत सालाना आय स‍िर्फ 1,22,616 रुपये थी. दूसरी ओर अमेरिका में किसानों की कुल आबादी महज 26 लाख है. जबक‍ि आय सालाना 65 लाख रुपये है.  सवाल ये है क‍ि आख‍िर व‍िकस‍ित देश भारत पर कृष‍ि सब्स‍िडी सह‍ित क‍िसानों को म‍िलने वाले सपोर्ट में कटौती करवाने के ल‍िए क्यों दबाव बना रहे हैं? इस सवाल का जवाब हमने भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद (ICAR) के महान‍िदेशक रह चुके आरएस परोदा से भी जानने की कोश‍िश की.   

कीटनाशकों के इस्तेमाल में भारत.
कीटनाशकों के इस्तेमाल में भारत.

एग्रीकल्चर सेक्टर की तरक्की से जलन 

परोदा कहते हैं, "हम एग्रीकल्चर सेक्टर में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. इसल‍िए कुछ देशों को बहुत जलन हो रही है. हम उनसे खाने-पीने वाली चीजें मंगाते रहें तो ठीक, लेक‍िन आत्मन‍िर्भर बन जाएं या एक्सपोर्ट करने लगें तो उन्हें द‍िक्कत होने लगती है. अब हम कृष‍ि क्षेत्र में व‍िकस‍ित देशों से प्रत‍िस्पर्धा कर रहे हैं. इसील‍िए वो डब्ल्यूटीओ (व‍िश्व व्यापार संगठन) में अपने ह‍िसाब से नॉर्म्स बनाकर भारत पर क‍िसानों को म‍िलने वाले सरकारी सपोर्ट को कम करने का दबाव बनाने लगे हैं. वो सब्स‍िडी कम करवाना चाहते हैं. वो चाहते हैं क‍ि भारत के क‍िसानों को एमएसपी भी न म‍िले."  

ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज (TAAS) के चेयरमैन परोदा ने कहा, "सच तो यह है क‍ि व‍िकस‍ित देश अपने किसानों को भारत के मुकाबले कई गुना अध‍िक सब्स‍िडी दे रहे हैं. फ‍िर भी वो आरोप हम पर लगाते हैं. जो डब्ल्यूटीओ के नॉर्म्स हैं भारत अपने क‍िसानों को उससे ज्यादा सब्स‍िडी नहीं दे रहा है. हम तो अपनी खाद्य सुरक्षा के ल‍िए प्रोडक्शन बढ़ा रहे हैं और उसके ल‍िए क‍िसानों को इंसेंट‍िव दे रहे हैं. दूध उत्पादन के मामले में हम दुन‍िया में नंबर वन हैं. यह भी कई देशों को खटक रहा है. न्यूजीलैंड और आस्ट्रेल‍िया अब अपने म‍िल्क पाउडर भारत को नहीं बेच पा रहे हैं. जबक‍ि, पहले यहां उनका मार्केट था. अब हम अपना ही बनाने लग गए हैं. इससे भी कई देशों को द‍िक्कत हो रही है."

सरकारी सहयोग बढ़ेगा

मोदी सरकार द्वारा बनाई गई एमएसपी और क्रॉप डायवर्सिफिकेशन कमेटी के सदस्य ब‍िनोद आनंद कहते हैं, "डब्ल्यूटीओ और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर व‍िकस‍ित देश लगातार भारत में क‍िसानों को म‍िलने वाली सब्स‍िडी को कम या खत्म करने का दबाव डालते रहे हैं. डब्ल्यूटीओ तो इस मामले में काफी बायस्ड है. आज जब भारत कई कृष‍ि उत्पादों में लीड कर रहा है, तो कुछ देशों को द‍िक्कत हो रही है. भारत सरकार का स्टैंड इस मामले में ब‍िल्कुल साफ है क‍ि क‍िसानों को म‍िलने वाली सहायता में कटौती नहीं होगी. हमारी सब्स‍िडी और पेस्टीसाइड इस्तेमाल पर ऐसे देशों को तो बोलने का कोई हक नहीं है जो हमसे ज्यादा सब्स‍िडी देते हैं. हमसे ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं."   

आनंद कहते हैं, "कुछ लोगों को तो पीएम क‍िसान सम्मान न‍िध‍ि से भी द‍िक्कत है. अमेरिका और यूरोप तो चाहते हैं कि भारत अपने यहां किसानों को दी जाने वाली हर तरह की एग्रीकल्चरल सब्सिडी को खत्म करे. ले‍क‍िन, भारत क‍िसी डब्ल्यूटीओ या संयुक्त राष्ट्र संघ को खुश करने के ल‍िए अपने किसानों की सब्स‍िडी और सरकारी सहयोग में कटौती या उसे खत्म करके उन्हें दुखी नहीं कर सकता. सरकार मदद बढ़ाएगी, कम नहीं करेगी. आप फर्टिलाइजर सब्सिडी को ही ले लीज‍िए, जो अब 2.5 लाख करोड़ रुपये होने वाली है. क‍िसानों की मदद के ल‍िए सरकार इसे लगातार बढ़ा रही है. सरकार क‍िसानों के साथ खड़ी होगी न क‍ि डब्ल्यूटीओ के साथ." 

व‍िकस‍ित देशों की असली द‍िक्कत क्या है? 

आनंद कहते हैं, "अमेरिका जैसे कई व‍िकस‍ित देश यह कहते हैं क‍ि सब्सिडी और सरकारी सपोर्ट के कारण भारतीय किसान चावल, गेहूं और दूसरी फसलों का जमकर उत्पादन करते हैं. इसल‍िए यहां का अनाज दुनिया भर के बाजारों में कम कीमत में मिलता है. दूसरी ओर, व‍िकस‍ित देशों में अनाज का दाम ज्यादा होने की वजह से विकासशील देशों में इसकी बिक्री कम होती है. यही कारण है क‍ि दुनिया के अनाज बाजार में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए व‍िकस‍ित मुल्क भारत को एग्रीकल्चरल सब्सिडी देने से रोकने का प्रयास करते रहते हैं. लेक‍िन, भारत उनकी मंशा को समझता है, इसील‍िए हर मोर्चे पर ऐसी ताकतों का जमकर व‍िरोध करता है." 

क‍िसानों को क‍ितनी सरकारी मदद दे रहा है कौन देश?
क‍िसानों को क‍ितनी सरकारी मदद दे रहा है कौन देश?

भारत में क‍िसानों को म‍िलने वाली बड़ी मदद 

  • 2.5 लाख करोड़ रुपये की उर्वरक सब्स‍िडी. 
  • द‍िसंबर 2018 से अब तक 2.20 लाख करोड़ रुपये का डायरेक्ट सपोर्ट (पीएम क‍िसान स्कीम). 
  • फसल बीमा पर 95 से 98 फीसदी तक प्रीम‍ियम भरने का सपोर्ट. 
  • स‍िर्फ 4 फीसदी ब्याज पर 18 लाख करोड़ रुपये का कृष‍ि कर्ज. 
  • 23 फसलों की एमएसपी. इनमें 7 अनाज, 5 दलहन, 7 तिलहन व 4 नकदी फसलें हैं.  
  • फार्म इक्यूपमेंट सब्स‍िडी.  

डब्ल्यूटीओ की बेचैनी 

जून 2022 में जेनेवा में डब्ल्यूटीओ की एक बैठक हुई थी. इसमें अमेरिका और यूरोपीय देशों ने भारतीय किसानों को दी जाने वाली कृष‍ि सब्स‍िडी का विरोध किया. उन्हें पीएम क‍िसान के तहत म‍िलने वाले 6000 रुपये के सालाना सपोर्ट पर भी द‍िक्कत थी. उन्होंने मछली पालन सब्सिडी खत्म करने का भी दबाव बनाया. भारत ने इन देशों को करारा जवाब द‍िया.  

वर्ष 2018-19 में डब्ल्यूटीओ की बैठक के दौरान ब्राजील, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा आदि देशों ने आरोप लगाया था कि भारत ने धान खरीद के दौरान किसानों को तय सीमा से ज्यादा सब्सिडी दी है. इन मुल्कों ने गेहूं और अन्य फसलों के लिए एमएसपी का भी विरोध किया. भारत विश्व व्यापार संगठन का सदस्य 1 जनवरी 1995 को बना. इसके 164 देश सदस्य हैं.   

डब्ल्यूटीओ के कृषि समझौते (AOA) के मुताब‍िक, भारत जैसे विकासशील देश फसलों की उत्पादन लागत पर अधिकतम 10 फीसद ही सब्सिडी दे सकते हैं. इस सब्सिडी की गणना भी साल 1986-88 की कीमतों के अनुसार होगी. ऐसी भेदभावपूर्ण नीत‍ि की वजह से व‍िकस‍ित देश अक्सर भारत में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी पर सवाल उठा देते हैं. वो निर्धारित सीमा से अधिक सब्सिडी देने वालों को कारोबार बिगाड़ने वाले देशों के तौर पर देखते हैं. 

बचाव का रास्ता 

भारत सरकार ने इस न‍ियम पर आपत्त‍ि जाह‍िर करते हुए विशेष छूट की मांग रखी थी. क्योंक‍ि देश में खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लागू करने पर सब्सिडी 10 फीसदी से बढ़ने का अनुमान था. इसके लिए साल 2013 में बाली में हुई डब्ल्यूटीओ की बैठक में 'पीस क्लॉज’ नाम से एक अस्थायी समाधान निकाला गया. इसके तहत व्यवस्था दी गई कि कोई भी विकासशील देश अगर अपनी पैदावार की कीमत का 10 परसेंट से अध‍िक सब्सिडी देता है तो दूसरा कोई इसका व‍िरोध नहीं करेगा.

भारत सरकार ने मार्केट‍िंग सीजन 2018-19 में धान की खेती करने वाले किसानों को अधिक सरकारी समर्थन देने के ल‍िए पीस क्लॉज का इस्तेमाल क‍िया था. एक नोट‍िफ‍िकेशन में डब्ल्यूटीओ को सूचित किया गया था क‍ि चावल उत्पादन का मूल्य 2018-19 में 43.67 अरब डॉलर था. उसने उसके लिये उसने 5 अरब डॉलर मूल्य की सब्सिडी दी है, जो निर्धारित सीमा 10 प्रतिशत से अधिक है. इसका मकसद खाद्य सुरक्षा के ल‍िए सार्वजनिक भंडारण व्यवस्था बनाए रखना है. 

व‍िचल‍ित है अमेर‍िका 

भारत में कृष‍ि क्षेत्र की तरक्की से व‍िकसित देश क‍ितने परेशान हैं इसकी तस्दीक करने वाली कई घटनाएं हैं. करीब छह दशक पहले जो अमेर‍िका भारत को गेहूं देने के बदले ब्लैकमेल कर रहा था, वो अब हमारे र‍िकॉर्ड गेहूं एक्सपोर्ट से परेशान है. इसील‍िए तो जनवरी 2022 में उसके 28 सांसदों ने अपने राष्ट्रपत‍ि जो बाइडन को खत लिखकर इंड‍िया के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में मुकदमा करने की मांग उठाई थी. आरोप लगाया था क‍ि भारत डब्ल्यूटीओ के तय नियम का उल्लंघन करते हुए उत्पादन मूल्य पर 10 फीसदी से ज्यादा सब्सिडी दे रहा है. इस वजह से व‍िश्व बाजार में भारत का अनाज कम कीमत पर उपलब्ध है, इससे अमेर‍िका के किसानों को नुकसान हो रहा है. 

ऐसे तर्कों से बेपरवाह भारत हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने क‍िसानों की वकालत कर रहा है. यहां साल दर साल कृष‍ि सब्स‍िडी और सरकारी सहयोग बढ़ाने का प्लान बन रहा है. क्योंक‍ि, भारत को पता है क‍ि संकट काल में खेती ही बचाएगी. कोव‍िड-19 के दौर में कृष‍ि क्षेत्र के सहयोग को कौन भूल सकता है.