आज की सफल कहानी में हम बात करेंगे राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और हरियाणा की सीमा पर बसे ज्योति गांव के एक किसान की. यह वही गांव है जहां गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्मों को पहली बार उन्नीस सौ चौंसठ में बोया गया था. इसी गांव से देश और दुनिया ने गेहूं की पैदावार में हरित क्रांति की धमक और धाक देखी थी. इसी गाव में रहते हैं सफल किसान कुलदीप जो खेती किसानी में मिसाल पेश कर रहे हैं. इन्होंने साधारण खेती नहीं बल्कि ऑर्गेनिक खेती यानी जैविक खेती और पशुपालन दोनों को एक साथ चुना. वे अपने खेतों में सौ प्रतिशत जैविक खेती कर रहे हैं, वो भी चौदह वर्षों से. यहां उनके पिताजी, दादाजी पहले से इस तरह की खेती करते आ रहे हैं. हालांकि अब समय बदल गया है क्योंकि खेत में केमिकल का प्रयोग अधिक हो रहा है. इससे जमीन खराब हो गई है.
किसान कुलदीप ने 'डीडी किसान' से कहा, करीब चौदह वर्ष हो गए जब से हम जैविक खेती कर रहे हैं और कुछ क्षेत्र में बागवानी भी है. हमारे पास आठ बीघा जमीन थी जिसमें गेहूं, चना, सरसों, गाजर, मूंग आदि लगाते थे. और आज भी हम उसी पद्धति पर हैं जो हमारे पिताजी और माताजी ने बताया था. जैविक खेती को लेकर कुलदीप का मानना है कि यह पशुपालन के बिना मुश्किल है. कुलदीप ने जैविक खेती को और बेहतर तरीके से करने के लिए ही पशुपालन करना शुरू किया था. अब वो अपने खेतों के लिए जीवामृत बनाने के लिए गोबर गौमूत्र, बेसन, प्याज का रस बस, नीम का पत्ता, डिकंपोजर, मिर्च, लहसुन इत्यादि का प्रयोग करते हैं. सबसे अच्छी बात ये है कि जीवामृत बनाने के लिए इन्हें बाहर से कुछ भी लाने की जरूरत नहीं होती. खाद का इंतजाम भी पशुओं के अपशिष्ट से हो जाता है. मतलब आम के आम और गुठलियों के दाम. े
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किसान कुलदीप कहते हैं कि पशु के बगैर जैविक खेती संभव नहीं है. इसलिए हमारे पास गाय हैं. इसकी मदद से सालों से जैविक खेती कर रहे हैं. पशुपालन तो कई वर्षों से हमारे पिताजी, दादाजी करते आ रहे हैं, तो हमने एक विशेष ध्यान दिया है कि हम देशी गाय पालें और उसके साथ जैविक खेती करें. किसान कुलदीप का मानना है कि गांव में खेती आपसी सहयोग से की जाए तो इससे आय में वृद्धि के साथ गांव का भी विकास होता है. जैविक खेती से कुलदीप को दोगुना लाभ हो रहा है. इस तरह असली खेती करने से मेहनत मजदूरी के साथ-साथ पानी, खाद और कटाई का खर्चा निकल आता है. जैविक खेती में फसल चक्र भी बहुत जरूरी है. जैसे धान की पराली है, गेहूं की पराली है या कोई भी फसल है, उसको बाहर ना डाल के खेत में ही उसको दबा दिया जाता है. इससे खाद का काम हो जाता है.
कुलदीप कहते हैं किसान अगर कई अलग-अलग फसलें लगाएगा तो आमदनी बढ़ जाएगी. जैसे अमरूद के बीच में करेला, घिया, भिंडी लगा दें तो एक तरफ से अमरूद दूसरी तरफ से सब्जियां उगेंगी. ऐसे ही फसलों में जैसे चना, उसके साथ में सरसों, गाजर के साथ में अलग-अलग एक बेड की तरह पट्टी पर गेहूं लगा दें तो पैदावार बढ़ेगी. गेहूं के लिए चने से नाइट्रोजन खाद मिल जाएगी, इससे अलग से खाद देने की जरूरत नहीं होगी. जैविक खेती के लिए मिट्टी की गुणवत्ता अच्छी होना बेहद जरूरी है, लेकिन इन दिनों रसायनों का इस्तेमाल बहुत अधिक हो रहा है. कलदीप इससे बचने की सलाह दे रहे हैं.
कुलदीप अपने खेतों के लिए कीटनाशक अपनी गाय से मिलने वाले गोबर और मूत्र से ही तैयार कर लेते हैं. वे नीम, आक, धतूरा, लहसुन, मिर्ची, तंबाकू जैसी चीजें गौमूत्र में मिलाकर कीटनाशक बना लेते हैं. इन सभी चीजों को देशी गाय के गोमूत्र में मिला दिया जाता है और कीटनाशक चालीस दिन में तैयार हो जाता है. इसे पंद्रह लीटर पानी में ढाई सौ से तीन सौ एमल मिलाकर प्रयोग करते हैं, जिससे फसलों पर कीटों से सुरक्षा होती है. बाजार से खरीदा गया कीटनाशक बहुत महंगा होता है जबकि गोमूत्र से तैयार कीटनाशक बेहद कम पैसे में तैयार हो जाता है. इससे जीरो बजट खेती में मदद मिलती है. प्राकृतिक खेती एक ऐसी पद्धति है जिसमें रसायनों का प्रयोग नहीं होता है. कुलदीप आज के समय में नजीर बनकर दूसरे किसानों को प्रेरित कर ही रहे हैं. खुद भी अच्छा मुनाफा कमाकर गांव के कई और परिवारों को रोजगार देने का काम कर रहे हैं.
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