छोटी-सी उम्र में एक बेटी ने पिता के व्यवसाय को समझकर करोड़ों रुपये का डेयरी कारोबार खड़ा कर दिया है. यह कहानी है महाराष्ट्र के अहमदनगर के एक छोटे से गांव निघोज की रहने वाली श्रद्धा धवन की. दरअसल, श्रद्धा के पिता छोटे स्तर पर मवेशियों का व्यापार करते थे. वे भैंसों को खरीदते-बेचते थे. वह हमेशा घर पर कम से कम सात से आठ भैंसें रखते थे. साथ ही उनका एक छोटा सा खेत भी था, जहां भैंसें चरती थीं.
10वीं कक्षा के बाद गर्मियों की छुट्टियों में श्रद्धा ने अपने पिता के मवेशियों की खरीद-बिक्री के व्यापार हाथ बंटाना शुरू कर दिया और उनके साथ शहर आने-जाने लगी. इस दौरान श्रद्धा ने अच्छी भैंस की पहचान करना, भैंस खरीदने के लिए क्या जानना जरूरी है और बेचते समय बातचीत करने और सही कीमत क्या होनी चाहिए, यह सब सीखा और समझा. इन सब अनुभवों से श्रद्धा को व्यापार के बारे में पर्याप्त जानकारी हो गई थी.
अब समय था खुद का डेयरी व्यवसाय शुरू करने का, जो परिवार के लिए एक नया टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. कुछ समय बाद यानी वर्ष 2013 में श्रद्धा ने घर पर भैंस पालकर डेयरी व्यवसाय शुरू करने का फैसला किया और अपनी रिसर्च, पिता के दिए अनुभव और ज्ञान सबकुछ इसमें झाेंक दिया. श्रद्धा ने घर पर भैंसों के साथ शुरुआत की और गांव के बाहर एक डेयरी पर दूध बेचना शुरू कर दिया. इस दौरान श्रद्धा की 11वीं कक्षा की पढ़ाई शुरू हो गई और धीरे से 12वीं कक्षा के साथ स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई. अब श्रद्धा फिजिक्स से एमएससी पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही हैं.
श्रद्धा ने 'स्टार्टअपपीडिया' को दिए इंटरव्यू में बताया कि वह रोज सुबह 4 बजे उठती थीं. उनका दिन का पहला काम सुबह 8 बजे कॉलेज शुरू होने से पहले डेयरी व्यवसाय के लिए सब कुछ करना होता था. वह खुद ही भैंसों के शेड साफ करना, उन्हें चारा खिलाना और दूध निकालती थीं. फिर दूध को डिब्बों में भरकर डेयरी तक पहुंचाती थीं. यह करते-करते 2017 तक श्रद्धा फार्म में भैंसों की संख्या 25 से 30 हो गई.
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भैंसों की संख्या बढ़ने के बाद श्रद्धा फार्म की इतनी आय होने लगी कि उन्होंने कर्मचारी रखने का फैसला किया. इसके बाद साल 2020 में कोरोना महामारी आ गई और लॉकडाउन लग गया. दूध एक आवश्यक उत्पाद होने के कारण लॉकडाउन के दौरान इसे बेचने की परमीशन तो मिल गई, लेकिन कई बार खेतों को डेयरियों से जोड़ने वाली महत्वपूर्ण सड़कें बंद हुआ करती थीं.
श्रद्धा बताती हैं कि उस समय दूध की कीमत प्रति लीटर 8 रुपये कम हो गई थी. समय कठिन था, लेकिन सबकुछ सहकर श्रद्धा फार्म हर तरह से आगे बढ़ा - भैंसों की संख्या बढ़ी, कामगार और किसान बढ़े और फार्म की आत्मनिर्भर होने की क्षमता भी बढ़ती चली गई. वर्तमान में श्रद्धा फार्म में कुल 130 भैंसें हैं. डाकघरों और दुकानों के माध्यम से पूरे भारत में डेयरियों को दूध बेचने के अलावा, स्टार्टअप ने घी, मक्खन, लस्सी, छाछ और दही को शामिल करने के लिए अपनी प्रोडक्ट रेंज का विस्तार किया है.
श्रद्धा फार्म्स का दावा है कि उनके सभी उत्पाद सौ प्रतिशत प्राकृतिक हैं. श्रद्धा फार्म्स 1 टन के बायोगैस प्लांट को भी चला रही है, जहां जैविक खाद भी बनती है. इसे किसानों के साथ-साथ कुछ कृषि-कंपनियों को सीधे बेचा जाता है. श्रद्धा फार्म्स फिलहाल ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर उपलब्ध नहीं है, लेकिन स्टार्टअप ने अभी-अभी पूरे भारत में डाक के जरिए बिक्री शुरू की है.
FY24 में श्रद्धा फार्म्स ने सिर्फ़ अपने डेयरी व्यवसाय से 1 करोड़ रुपये की भारी कमाई की है, जिसमें दूध और उससे निर्मित उत्पाद शामिल हैं. श्रद्धा ने अब तक 5000 से ज्यादा लोगों को प्रशिक्षित किया है. श्रद्धा कहती हैं, “शहर में लोगों को एक लीटर दूध लगभग 65 रुपये में मिलता है, वहीं गांवों में किसान से उसी एक लीटर दूध को सिर्फ़ 30 रुपये खरीदा जाता है. कभी-कभी तो सिर्फ 22 रुपये प्रति लीटर ही मिलते हैं, जो जमीन पर काम करने वाले लोगों के लिए अन्याय जैसा है. श्रद्धा ने कहा कि उनके स्टार्टअप का उद्देश्य किसानों और ग्रामीण दूध उत्पादकों को निजी कंपनियों से बचाना है, जो दूध के व्यवसाय में मुनाफे का बड़ा हिस्सा हड़प लेती हैं.''
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