युवा किसान राम सुरेश पाल उर्फ लाला का संघर्ष युवाओं के लिए एक प्रेरणा की कहानी है. उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के छोटे से गांव खटुआ के साधारण किसान परिवार से आने वाले राम सुरेश पाल दिल्ली-मुंबई में दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार का जीवनयापन करते थे. घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद, वो हिम्मत नहीं हारा, और उसने कुछ दिनों तक बस्ती के हरैया के पास मशरूम की नर्सरी में नौकरी की. वहा उसने मशरूम की खेती से जुड़ी हर छोटी बड़ी बारीकियों को समझा.
इंडिया टुडे के किसान तक से बातचीत में युवा किसान राम सुरेश ने बताया कि दिल्ली-मुंबई में दिहाड़ी मजदूरी से एक महीने में 10 से 12 हजार की कमाई हो जाती थी. लेकिन परिवार की जिम्मेदारी दिन प्रतिदिन बढ़ रही थी. परिवार का खर्च नहीं चल पा रहा था. उन्होंने बताया कि रिश्तेदारों से थोड़ा-थोड़ा पैसा कर्ज लेकर 3 लाख रुपये का इंतजाम किया. पहली बार इस साल बांस की झोपड़ी में मशरूम की दो नर्सरी डाली हैं. मेरी पत्नी रीमा पाल ने उनका हर कदम पर हौसला बढ़ाया.
एक पैर से विकलांग सुरेश ने बताया कि कुल 24 बेड बनाया है. उन्होंने बताया कि साल भर में 4 महीने ही मशरूम उत्पादन का काम होता हैं. वहीं मशरूम सिर्फ 60 दिन ही निकलता हैं. वहीं कुल मिलाकर एक सीजन में 4 से 5 लाख रुपये के बीच आय हो जाने की उम्मीद है. बांस की झोपड़ी में मशरूम उत्पादन कम खर्च में हो जाता है और कमाई भी अधिक होती है. बटन मशरूम से इस मशरूम का स्वाद अलग होता है और इसकी डिमांड मार्केट में बहुत अधिक होती है.
गोंडा जिले के छोटे से गांव खटुआ के निवासी सुरेश पाल बताते हैं कि सर्दियों का मौसम मशरूम खेती के लिए सबसे सही माना जाता है. लेकिन, मशरूम खेती शुरू करने से पहले इसके सही तरीके को जानना बेहद जरूरी है. मशरूम की खेती के लिए सिलिंडर का चयन महत्वपूर्ण है. इसके लिए चावल या गेहूं के तिनकों का उपयोग किया जा सकता है. हालांकि, इन तिनकों को पहले अच्छी तरह से स्टेरिलाइज करना जरूरी है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर तिनकों को सही तरीके से स्टेरिलाइज नहीं किया गया, तो अन्य फंगस मशरूम की फसल पर हमला कर सकते हैं, जिससे सिलिंडर पर हरे या भूरे रंग की परत दिखने लगेगी, जो धीरे-धीरे फसल को नुकसान पहुंचाती है.
सुरेश ने बताया कि इस फंगस से बचाव के लिए विशेष स्थानों पर फंगीसाइड का छिड़काव किया जाना चाहिए और मक्खियों से बचाव के लिए नीम के तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है.
किसान सुरेश की कहानी संघर्ष की अनूठी मिसाल है. उन्होंने दिखाया कि मुश्किलें चाहे कितनी भी हों, सही मार्गदर्शन और समर्थन से उन्हें पार किया जा सकता है. उनकी कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है, जो संसाधनों की कमी के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने का जज्बा रखते हैं.
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