
बिहार के गया जिले के रहने वाले आशीष कुमार सिंह खेती में नए प्रयोग के लिए जाने जाते हैं. काला धान, नीली गेहूं, काला गेहूं, काला आलू की खेती करते हैं, लेकिन वह black फसलों की खेती के सीरीज में पिछले तीन साल से काली हल्दी की खेती भी कर रहे हैं. विलुप्त हो रही काली हल्दी की खेती को आशीष किसानों के बीच में इसके महत्व और इसके फायदे को बताने का काम कर रहे हैं. संभवत: जिले के पहले ऐसे किसान हैं, जो काली हल्दी की खेती शुरू की है. आशीष कुमार सिंह कहते हैं कि आज समय की मांग है कि कृषि के क्षेत्र में कुछ अलग प्रयोग किया जाए. तभी किसान कम जमीन में अधिक उत्पादन के साथ मोटी कमाई कर सकेंगे.
इंजीनियरिंग कॉलज में वाइस प्रिंसिपल की नौकरी छोड़ आशीष कुमार सिंह पिछले 7 सालों से आधुनिक विधि से खेती कर रहे हैं. इन्होंने एक कट्ठा में काली हल्दी की खेती किया है. इससे करीब डेढ़ क्विंटल तक हल्दी का उत्पादन किया है. साथ ही वह अन्य किसानों को इसकी खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं. प्रगतिशील किसान आशीष करीब 40 बीघा जमीन में खेती करते हैं. जिसमें मुख्य रूप से काला धान, काला गेहूं, नीली गेहूं,आलू, एप्पल बेर,काली हल्दी सहित अन्य फसलों की खेती शामिल है.
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किसान तक से बातचीत में आशीष कुमार सिंह कहते हैं कि कृषि से जुड़ा एक लेख पढ़ने के दौरान पता चला कि 2016 में सरकार के द्वारा काली हल्दी को लुप्तप्राय प्रजाति की फसल में रखा गया है. इसके बाद उन्होंने काली हल्दी की खेती को बचाने के लिए साल 2021 में एक कट्ठा में खेती शुरू किया. साथ ही अन्य किसानों को भी इसकी खेती करने के लिए जागरूक किया. आगे वह बताते हैं कि काली हल्दी एक औषधीय पौधा है. इसकी खेती पीली हल्दी की खेती के जैसा ही किया जाता है. बाजार में 400 से 500 रुपये से अधिक प्रति किलो इसका भाव है, लेकिन वह अन्य लोगों को काली हल्दी की खेती करने के लिए 250 रुपये में ही एक किलो इसका बीज देते हैं. वहीं मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय के लोग शुभ कार्यों में काली हल्दी का उपयोग करते हैं.
काली हल्दी औषधीय गुण से भरपूर है. इसका उपयोग दवा बनाने के रूप में बड़े स्तर पर किया जाता है. वहीं गया कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल बताते हैं कि गया जिला में छोटे स्तर पर कई किसान काली हल्दी की खेती करना शुरू कर दिए है. इसमें कुरकुमीन पीली हल्दी की तुलना में अधिक पाया जाता है. जिसकी वजह से सांप काटने, खुजली, गैस चर्म रोग समेत अन्य बीमारियों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है. मेडिसिनल प्लांट होने की वजह से किसान इसकी खेती से मोटी कमाई कर सकते हैं.
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किसान तक से बातचीत में आशीष कुमार सिंह कहते हैं कि इसकी खेती पीली हल्दी की खेती के जैसी ही होती है. काली हल्दी की विशेष रूप से जून महीने में खेती करना चाहिए. वैसे इसकी खेती किसी भी मौसम में की जा सकती है. अगर कोई किसान एक कट्ठा में हल्दी की खेती करता है तो उसे करीब 10 किलो बीज की जरूरत होगी, जिसकी बाजार में कीमत 400 से 500 रुपये प्रति किलो है. यानी एक कट्ठा में करीब 5 हजार रुपये के आसपास तक खर्च आता है. करीब चार महीने में फसल तैयार हो जाती है. इतनी जमीन में दो से तीन क्विंटल तक हल्दी का उत्पादन हो जाता है. अगर कमाई की बात किया जाए तो एक कट्ठा से करीब दो लाख रुपये तक की कमाई आसानी से हो जाएगी. वहीं इसका कंद गोला और वजन 100 से 50 ग्राम तक होता है. गमले में भी काली हल्दी का पौधा लगाया जा सकता है.
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