बीते कुछ सालों में मछली पालन को छत्तीसगढ़ में भरपूर बढ़ावा दिया जा रहा है. राज्य सरकार की ओर से मछली पालन के लिए किसान हितैषी नीतियां अपनाने का ही नतीजा है कि छत्तीसगढ़, देश के अन्य राज्यों की तुलना में मछली का बीज उत्पादन करने के मामले में पांचवें और मछली उत्पादन में छठवें पायदान पर आ गया है. जानकारों की राय में इस तरक्की के पीछे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा मत्स्य पालन को कृषि का दर्जा दिया जाना मूल वजह रही है. इस कारण से मत्स्य पालकों को ब्याज मुक्त ऋण तथा अन्य सुविधाएं मिलना शुरू हो गईं हैं. इससे मत्स्य पालन की लागत में कमी आई है. इस वजह से मछुआरों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है.
मछली एवं मछली के बीज उत्पादन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ की उपलब्धि के बारे में जानकारी देते हुए राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि राज्य में मछली पालन के लिए 2 लाख हेक्टेयर से अधिक जल क्षेत्र उपलब्ध है. इसके आवा मत्स्य बीज उत्पादन के लिए राज्य में 86 हैचरी, 59 मत्स्य बीज प्रक्षेत्र और 647 हेक्टेयर मछली संवर्धन पोखर उपलब्ध है.
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साल 2000 में छत्तीसगढ़ को जब राज्य बनाया गया था, उस समय राज्य में मात्र 93 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था. सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में यह मात्रा बढ़कर लगभग 6 लाख मीट्रिक टन हाे गई है. सरकार का दावा है कि बीते कुछ सालों में मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में लगभग साढ़े छह गुना वृद्धि के साथ छत्तीसगढ़ देश का छठवां सबसे बड़ा मछली उत्पादक राज्य बन गया है. इसके परिणामस्वरूप ही मछली पालन के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर देश में "Best Inland State" का अवार्ड भी मिला है.
छत्तीसगढ़ में मत्स्य क्रांति की सफलता को आंकड़ों के हवाले से बताया गया कि राज्य के 19 सिंचाई जलाशयों एवं दो खदानों में मछली के बीज उत्पादन के कुल 4021 केज स्थापित किए जा चुके हैं. इनमें पंगेशियस और मोनोसेक्स तिलापिया जैसी प्रजाति की मछलियों का पालन हो रहा है. साथ ही इन जलाशयों में केज कल्चर के माध्यम से अधिक मत्स्य उत्पादन प्राप्त करना मुमकिन हुआ है.
बीज और मछली उत्पादन को बढ़ाने में गांव के तालाबों की अहम भूमिका रही. राज्य सरकार ने स्वीकार किया कि छत्तीसगढ़ में गांव के तालाबों में प्रति हेक्टेयर मछली का औसत उत्पादन 4017 किग्रा एवं सिंचाई विभाग के जलाशयों में 240 किग्रा प्रति हेक्टेयर उत्पादन है. हालांकि यह देश में राष्ट्रीय औसत उत्पादन से अधिक है. बेहतर उत्पादन को देखते हुए कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा विकासखण्ड में मछली पालन की कलस्टर आधारित खेती विकसित हो रही है. इससे यहां के 3000 से अधिक किसान लाभान्वित हो रहे है.
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राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर कोरबा में बांगों सिंचाई डेम में 1000 केज की स्थापना के बाद यह क्षेत्र मछली उत्पादन का नया केंद्र बन गया है. इस डेम के डूब क्षेत्र से विस्थापित हुए मछुआ सहकारी समिति के सदस्यों को कुछ साल पहले तक मत्स्य पालन में आमदनी के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती थी. इसके बावजूद उन्हें आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता था. इस समस्या से निपटने के लिए सीएम बघेल की पहल पर मछली पालन से जुड़े समूहों को 1000 केज उपलब्ध कराई गईं.
कोरबा के जिला खनिज संस्थान के सहयोग से बांगो सिंचाई जलाशय के विस्थापित 3 गांवों में मछली के बीज की 1000 केज स्थापित होने के बाद विस्थापित मछुआ सहकारी समिति के 200 सदस्यों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मत्स्य पालन के व्यवसाय से जोड़ा गया. परिणामस्वरूप प्रत्येक हितग्राही को दी गई 5-5 केज में 5000 मछली के बीज की मदद से मत्स्य उत्पादन किया जा रहा है. फिलहाल प्रत्येक केज से लगभग 2000 किग्रा मछली उत्पादन हो रहा है. इससे इनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है.
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