
भिंड के अटेर इलाके से निकलने वाले अटल चंबल एक्सप्रेस-वे के विरोध में किसान लामबंद हो गए हैं. अटेर के 36 गांव से निकलने जा रहे अटल चंबल एक्सप्रेस-वे के खिलाफ किसानों ने प्रतापपुरा गांव में धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है. किसानों का कहना है कि अटल चंबल एक्सप्रेस-वे उनके खेतों में से होकर गुजर रहा है और इसकी वजह से वे पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगे. किसानों का कहना है, अगर अटल चंबल एक्सप्रेस-वे को निकालना ही है, तो उसे बीहड़ों के बीच से निकाला जाए. ऐसे में चंबल इलाके के विकास में मील का पत्थर साबित होने जा रहे अटल चंबल एक्सप्रेस वे के लिए मुश्किलें खड़ी होती नजर आ रही हैं.
इससे पहले अटल चंबल एक्सप्रेस-वे का विरोध मुरैना में किया गया था. मुरैना के बाद यही स्थिति भिंड में देखी जा रही है. अटेर इलाके के प्रतापपुरा गांव में किसानों ने अटल चंबल एक्सप्रेस-वे के खिलाफ धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया है. अटल चंबल एक्सप्रेस-वे भिंड के अटेर इलाके से निकाला जा रहा है. एक्सप्रेस-वे के रास्ते में 36 गांव के किसानों के खेत आ रहे हैं. इस वजह से किसान अटल चंबल एक्सप्रेस वे का विरोध कर रहे हैं.
किसानों का कहना है कि पहले दौर का जो सर्वे हुआ था, उसमें अटल चंबल एक्सप्रेस-वे को बीहड़ों से निकालना तय किया गया था. लेकिन चंबल सेंचुरी में घड़ियालों का ध्यान रखते हुए अब अटल चंबल एक्सप्रेस-वे को किसानों के खेतों से निकालने का निर्णय लिया गया है. ऐसे में किसानों के सामने संकट खड़ा हुआ है. किसानों की शिकायत है कि अटल चंबल एक्सप्रेस-वे उनके खेतों से होकर गुजरेगा और उनके खेत उसमें चले जाएंगे. किसान मुआवजे की रकम से अपनी जिंदगी नहीं चला पाएंगे.
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किसानों का कहना है कि अटल चंबल एक्सप्रेस-वे को बीहड़ों से ही होकर गुजारा जाए. अगर किसानों के खेतों से होकर अटल चंबल एक्सप्रेस-वे को निकालना जरूरी है, तो फिर किसानों को उनकी योग्यता के आधार पर नौकरी भी दी जाए. इसी मांग को लेकर किसानों का प्रदर्शन जारी है.
इस मामले में भिंड के डीएम डॉक्टर सतीश कुमार का कहना है कि अटल चंबल एक्सप्रेस-वे 36 गांव से निकाला जा रहा है और 320 हेक्टेयर जमीन से यह एक्सप्रेसवे निकाला जाएगा. इसमें कुछ जमीन फॉरेस्ट की और रेवेन्यू की भी है. उन्होंने बताया कि कुछ किसान धरने पर बैठे हुए हैं और वे पुराने अलॉटमेंट के हिसाब से काम करवाना चाहते हैं.
किसान लक्ष्मण सिंह कहते हैं, एक्सप्रेस-वे में 40 गांव की 300 हेक्टेयर जमीन जा रही है. यह जमीन हमारे लिए बहुत मायने रखती है. हमारे अनशन पर बैठने से कुछ नहीं होता है, तो जोरदार आंदोलन करेंगे. दो सर्वे हुए हैं- पहला सर्वे चंबल नदी से एक किलोमीटर दूरी पर हुआ. दोबारा सर्वे तीन किलोमीटर दूरी पर हुआ. दोनों सर्वे कैंसिल हो गए. अब एक्सप्रेस-वे को किसानों की बहुफसलीय जमीन से निकाला जा रहा है. हम अटल एक्सप्रेस-वे का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन पूर्व निर्धारित जो पैमाइश है, वहां से एक्सप्रेस-वे निकाला जाए तो बड़ी खुशी होगी. हम बीच में से इसे नहीं निकलने देंगे. अगर एक्सप्रेस-वे निकलता है तो हर किसान को योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी दी जाए.
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इस मामले पर किसान रामबरन कहते हैं, हमारी चार बीघा जमीन थी. अगर वह जमीन एक्सप्रेस-वे में चली गई तो हम क्या खाएंगे. हम हाथ जोड़ते हैं यह चंबल एक्सप्रेस-वे कहीं और चला जाए. अगर जमीन लेने के लिए जबरदस्ती की तो जहर खाकर और फांसी लगाकर मर जाएंगे.
किसान कुलदीप सिंह कहते हैं, जब तक सरकार से निर्णय पलटवा नहीं लेते हैं तब तक आंदोलन जारी रहेगा. भारतीय किसान संघ इसमें सहयोग दे रहा है. जो पूर्व निर्धारित बीहड़ों से सर्वे हुआ था, वहीं से एक्सप्रेस-वे निकाला जाए तो सारे लोग खुश होंगे. किसान भी खुश सरकार भी खुश. जिन्होंने बीहड़ में पट्टे करवा रखे हैं, वे भी खुश थे कि हमारा विकास होगा, हमारी जमीन कीमती हो जाएगी. लेकिन सरकार ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
इस पूरे मामले के बारे में भिंड के जिलाधिकारी डॉक्टर सतीश कुमार एस ने कहा, अटेर चंबल एक्सप्रेस-वे में कुल 36 गांव की 320 बीघा जमीन है जिसमें भिंड अटेर की कुछ शासकीय जमीन भी है. इसमें फॉरेस्ट की जमीन भी है. उसका पब्लिकेशन हुआ है और इसी के तहत कार्रवाई की जा रही है. इस मामले में 36 गांव जुड़े हुए हैं और 2000 खसरा नंबर है. एसडीएम से सूचना प्राप्त हुई है कि कुछ किसान (धरने पर) बैठे हुए हैं, वे पुराने एलाइनमेंट पर काम करवाना चाहते हैं.(रिपोर्ट/हेमंत शर्मा)
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