हरियाणा में पराली जलने की घटनाएं नहीं रुक रही हैं. लाख सरकारी दावे और कोशिशों के बावजूद किसान पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं. हिसार से आई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वहां पराली जलाने की घटनाएं धड़ल्ले से जारी हैं. इससे हिसार के अलावा आसपास का वातावरण दूषित हो रहा है. यहां तक कि दिल्ली की हवा भी खराब हो रही है. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने पिछले पांच साल में हरियाणा को 916 करोड़ रुपये का ग्रांट दिया है ताकि किसानों में बांटकर पराली जलने से रोका जाए. लेकिन इसके बाद भी हिसार में किसान लगातार पराली जला रहे हैं.
हरियाणा के धान उत्पादक जिलों में क्रॉप रेसिड्यू मैनेजमेंट का नियम होने के बावजूद किसान पराली में आग लगा रहे हैं. इस नियम के तहत केंद्र सरकार ने अब तक हरियाणा को करोड़ों रुपये जारी किए हैं. केंद्र सरकार का कहना भी है कि पैसे का उपयोग अधिक से अधिक किया गया है. मगर पराली की आग थमने का नाम नहीं ले रही है. केंद्रीय कृषि विभाग ने बताया है कि पिछले पांच साल में हरियाणा ने 799.22 करोड़ रुपये खर्च किए हैं और पराली के मद में 117.49 करोड़ रुपये पेंडिंग हैं.
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने एक आरटीआई जानकारी में खुलासा किया कि केंद्र ने 2018-19 में 137.84 करोड़ रुपये, 2019-20 में 192.06 करोड़ रुपये, 2020-21 में 170 करोड़ रुपये, 2021-22 में 193.35 करोड़ रुपये और एक 2022-23 में अधिकतम अनुदान 223.46 करोड़ रु. का ग्रांट हरियाणा के लिए जारी किया. हालांकि, किसान इन उपायों से बिल्कुल अनजान हैं.
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इन उपायों में दंडात्मक कार्रवाई से लेकर पराली प्रबंधन के लिए मशीनरी का लाभ उठाना दोनों शामिल हैं. इन उपायों के बाद भी राज्य के अधिकांश धान क्षेत्रों में पराली जलाने की घटनाएं सामने आ रही हैं. रविवार को राज्य भर में 67 पराली जलाने की घटनाओं का पता चला, जिससे राज्य में पराली जलाने की कुल घटनाओं की संख्या 1,005 हो गई.
फतेहाबाद जिले को सबसे अधिक पराली जलने की घटनाएं होने का नाम मिला है क्योंकि जिले में रविवार तक 148 मामले सामने आए हैं. अंबाला, कैथल, कुरुक्षेत्र, करनाल, जिंद, हिसार और यमुनानगर सहित अन्य धान उत्पादक जिलों में इस मौसम में पराली जलाने की बड़ी संख्या में घटनाएं दर्ज की जा रही हैं. हालांकि, किसानों ने कहा कि धान की पुआल के इन-सीटू और एक्स-सीटू निपटान के लिए पर्याप्त मशीनरी की कमी के कारण उन्हें खेतों में पराली जलाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
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एक किसान सत्यपाल सिंह ने 'दि ट्रिब्यून' से कहा कि उन्होंने बेलर मशीन के लिए लगभग एक सप्ताह तक इंतजार किया और आखिरकार उन्हें पराली जलाना पड़ा क्योंकि उन्हें रबी सीजन में गेहूं की बुवाई के लिए खेत साफ करना था.
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