हरियाणा के करनाल जिले के किसान इस बार पराली प्रबंधन को लेकर खासे जागरूक नजर आ रहे हैं. पराली प्रबंधन को लेकर जिले में राज्य सरकारी की तरफ से चलायी जा रही योजनाओं का असर किसानों पर दिखने लगा है. किसान पराली प्रबंधन के तरीकों को अब तेजी से अपनाने लगे हैं. इसका असर यह हुआ है कि अब जिले में पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी दर्ज की जा रही है. करनाल जिला प्रशासन भी इस बात का दावा कर रहा है कि सरकार के प्रयासों का असर हुआ है. इसके कारण पराली जलाने की घटनाओं में कमी आयी है और आगे और कमी आने की उम्मीद है.
करनाल जिला अंतर्गत गांव सांतडी के रहने वाले जागरूक किसान अश्वनी ने कहा कि कई किसान ऐसे हैं जो आज से नहीं पिछले छह सालों से पराली प्रबंधन कर रहा है. इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं. पराली जलाने की घटनाओं में काफी कमी देखी जा रही है. कृषि कल्याण विभाग भी लगातार गांवों में जाकर पराली प्रबंधन को लेकर किसानों को जागरूक करने का काम कर रहा है. उन्होने बताया कि शुरूआत में उन्होंने एक मशीन ली थी. इस मशीन के लिए उन्हें कृषि विभाग की तरफ से सब्सिडी भी मिली थी. अब उनके पास छह और मशीन हैं. जहां पहले साढ़े छह हजार एकड़ में कवर होता था वहीं इस बार उनका टारगेट है कि जिले भर में 15 हजार एकड़ जमीन में पराली का प्रबंधन किया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि उनका लक्ष्य पूरा हो जाएगा.
ये भी पढ़ेंः बाजरे की खरीद नहीं होने पर किसानों का विरोध प्रदर्शन, 70 फीसदी उपज खरीदने से HAFED ने किया इनकार
एक अन्य किसान अश्वनी ने कहा कि पराली जलाने से जहां प्रदूषण बढ़ता है, वहीं खेत की मिट्टी में मौजूद मित्र कीट भी नष्ट हो जाते है. इसके कारण अगली फसल लगाने पर इसका असर सीधा पैदावार पर पड़ता है और अच्छी फसल नहीं होती है. वहीं दूसरी तरफ पराली प्रबंधन करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से प्रति एकड़ एक हजार रुपये का अनुदान भी दिया जा रहा है. इसके बाद से आग लगने की घटनाओं में कमी आई है. किसानों से अनुरोध है कि इनसीटू या एक्ससीटू के माध्यम से फसल अवशेष पबंधन करें. उन्होंने कहा कि अब तो आईसीयूएल भी पराली की गांठों को ले रहा है. एक एकड़ में पराली की गांठ बनाने के लिए प्रति एकड़ 15 मिनट का समय लगता है. इसे फिर पेपर मिल या प्लाई इड्रस्टीज में सप्लाई किया जाता है. जिनका रेट सरकार द्वारा निर्धारित किया हुआ है.
ये भी पढ़ेंः World heart day: ना आएगा हार्ट अटैक, ना होंगी दिल की दूसरी बीमारियां, बस रोज खाएं ये 5 सब्जियां
वहीं किसान शीश पाल ने कहा कहा कि गांठ बनाने की मशीन ऑटोमेटिक मशीन है इससे खेत की ऊपजाऊ क्षमता बनी रहती है. प्रदूषण पर रोक लगी है. उन्होंने कहा कि आग लगने की घटनाओं में अब कमी आयी है. पराली जलाने के केस कम हुए हैं. किसान अब जागरूक हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर कोई किसान पराली प्रबंधन करता है को उसे हम मदद करते हैं. एक दिन में करीब 25 एकड़ तक कवर तक लेते है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today