महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने माना है कि प्याज किसानों के बीच असंतोष की वजह से हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ महायुति को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. पवार ने शुक्रवार को सार्वजनिक तौर पर माना कि प्याज के किसानों के गुस्से की वजह से चुनाव में प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा. उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ शिवसेना-बीजेपी-एनसीपी गठबंधन को राज्य के प्याज उत्पादक क्षेत्र में किसानों के बीच असंतोष की भारी कीमत चुकानी पड़ी है. इसमें नासिक भी शामिल है जहां सत्तारूढ़ गठबंधन ने चुनावों में खराब प्रदर्शन किया.
पवार का यह बयान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बयान के तीन दिन बाद आया है. शिंदे ने भी माना था कि कृषि संकट की वजह से महायुति गठबंधन को भारी कीमत चुकानी पड़ी. उन्होंने कहा था, ' प्याज ने नासिक में हमें रुलाया, सोयाबीन और कपास ने मराठवाड़ा और विदर्भ में हुए चुनावों में हमें रुलाया.' पुणे में पत्रकारों से बात करते हुए पवार ने कहा कि वे लगातार प्याज के लिए समर्थन मूल्य की जरूरत के बारे में बोल रहे थे. उनका कहना था कि किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हितों की रक्षा की जानी चाहिए.
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पवार ने कहा कि महायुति को जलगांव और रावेर को छोड़कर प्याज उत्पादक क्षेत्र की सभी लोकसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. पिछले साल दिसंबर में खुदरा कीमतों को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसकी वजह से किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया और नासिक क्षेत्र में यह प्रदर्शन काफी तेज थे. मई की शुरुआत में प्रतिबंध हटा लिए गए थे. शिवसेना और उसकी सहयोगी बीजेपी नासिक और डिंडोरी लोकसभा सीटें हार गईं. वहीं मराठवाड़ा में गठबंधन को सिर्फ एक सीट और विदर्भ में सिर्फ दो ही सीटें मिल सकीं.
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विशेषज्ञों की मानें तो प्याज ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यह राजनीति में गेम चेंजर साबित हो सकता है. साल 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी को महाराष्ट्र के प्याज उत्पादक क्षेत्र में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा. जिन 13 लोकसभा क्षेत्रों में प्याज किसानों की सबसे ज्यादा आबादी है, उनमें से 12 पर इंडिया ब्लॉक को जीत मिली थी. जबकि साल 2019 में हुए चुनावों में एनडीए ने इन 13 सीटों में से 11 सीटों पर विजय हासिल की थी जिसमें अकेले बीजेपी की सात सीटें थीं. वो चुनाव शिवसेना और बीजेपी ने साथ में मिलकर लड़ा था.
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