केंद्र सरकार की ओर से कपास को लेकर बड़ा निर्णय लिया गया है. सरकार ने कॉटन पर 11 फीसदी आयात शुल्क समाप्त कर दिया है. सरकार के इस फैसले के बाद देश के किसानों में काफी निराशा है. महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों के कपास किसान सरकार की इस फैसले से काफी दुखी नजर आए. देशभर में इस निर्णय को लेकर कई तरह की बातें चल रही हैं. इसी बीच भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने एक पत्र जारी किया है. इस पत्र में उन्होंने सरकार से किसानों को हो रहे नुकसान की चिंता जाहिर की है.
गुरनाम सिंह चढूनी ने लिखा कि ये फैसला टेक्सटाइल उद्योग को लाभ पहुंचाने और अमेरिका के दबाव में लिया गया है. जबकि इसका खामियाजा भारत के कपास किसानों को भुगतना पड़ेगा. अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा कॉटन निर्यातक है और अब भारतीय बाजार में बाढ़ की तरह अमेरिकी कॉटन आएगा. इससे घरेलू कीमतें और नीचे गिरेंगी.
भारत में कपास की खेती लगातार घट रही है. साल 2024-25 में कपास के आयात में 107% की बढ़ोतरी हुई जिसके कारण उत्पादन 390 लाख गांठ से घटकर 300 लाख गांठ पर आ गया. खरीफ सीजन में कपास का रकबा 3.24 लाख हेक्टेयर घटा जो कि पिछले साल से 2.91% कम है. जो किसान और व्यापारी CCI से ऊंचे दामों पर स्टॉक कर चुके हैं, वे बर्बाद हो जाएंगे. नई फसल के दाम भी दबाव में रहेंगे, जिससे किसानों को भारी नुकसान होगा. एक रिपोर्ट पहले ही चेतावनी दे चुकी थी कि आयात शुल्क हटते ही कीमतों में भारी गिरावट होगी, जो कि अब सच साबित हो गया है.
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कपास पर इंपोर्ट ड्यूटी हटाने के बाद किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने सरकार से पत्र के माध्यम से चार सूत्रीय मांग भी की है. उन्होंने लिखा-
चढूनी पत्र में आगे लिखते हैं, "कॉटन के किसानो को बचाने के लिए आंदोलन की तैयारी शुरू, 28 अगस्त को भिवानी में महत्त्वपूर्ण बैठक". यदि सरकार ने यह फैसला वापस नहीं लिया, तो भारतीय किसान यूनियन (चढ़ूनी) देशव्यापी आंदोलन शुरू करेगा. इसी को लेकर कपास पर 28 अगस्त 2025 को भिवानी (हरियाणा) में एक महत्त्वपूर्ण बैठक बुलाई गई है, जिसमें आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी. यह लड़ाई सिर्फ कपास किसानों की नहीं, बल्कि पूरे कृषि समुदाय के भविष्य की है. किसानों को बर्बाद करने वाले किसी भी फैसले को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. यदि मांगें नहीं मानी गईं, तो सड़क से संसद तक संघर्ष होगा.
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