Crop disease: एक बीमारी से खरीफ की तीन फसलें हो जाती हैं बर्बाद, एक्सपर्ट से जानिए इसका सटीक इलाज

Crop disease: एक बीमारी से खरीफ की तीन फसलें हो जाती हैं बर्बाद, एक्सपर्ट से जानिए इसका सटीक इलाज

सोयाबीन उड़द-मूंग के लिए सबसे बड़ा खतरा पीला मोजैक रोग (Yellow Mosaic Disease) बनकर सामने आता है. यह इन फसलों का सबसे बड़ा दुश्मन है, जो एक साथ तीनों को बर्बाद करने की क्षमता रखता है. यह एक ऐसी बीमारी है जो फसल को कभी भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है.

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Crop disease: एक बीमारी से खरीफ की तीन फसलें हो जाती हैं बर्बाद, एक्सपर्ट से जानिए इसका सटीक इलाजमूंग की फसल को पीला मोजैक रोग से खतरा

खरीफ के मौसम में देश के किसान बड़ी संख्या में सोयाबीन, मूंग और उड़द की खेती करते हैं, जो उनकी आय का एक बेहतर स्रोत है. हालांकि, इन फसलों के लिए सबसे बड़ा खतरा पीला मोजैक रोग (Yellow Mosaic Disease) बनकर सामने आता है. यह इन फसलों का सबसे बड़ा दुश्मन है, जो एक साथ तीनों को बर्बाद करने की क्षमता रखता है. यह एक ऐसी बीमारी है जो फसल को कभी भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है, और समय रहते इसका इलाज न किया जाए, तो 10 फीसदी से लेकर 100 फीसदी तक उपज को पूरी तरह से बर्बाद करने की क्षमता रखती है. कृषि  विज्ञान केंद्र रायसेन, मध्य प्रदेश के पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ प्रतीक कुमार दुबे ने बताया कि यह रोग एक वायरस के कारण होता है, जिसे सफेद मक्खी (Bemisia tabaci) नामक कीट फैलाता है.

कैसे फैलता है यह घातक रोग?

पौध सुऱक्षा विशेषज्ञ डॉ प्रतीक कुमार दुबे के अनुसार, सफेद मक्खी पौधों का रस चूसते समय इस वायरस को एक संक्रमित पौधे से स्वस्थ पौधे तक ले जाती है. जैसे ही यह मक्खी किसी संक्रमित पौधे से उड़कर स्वस्थ पौधे पर बैठती है, वायरस उसके शरीर के माध्यम से नए पौधे में प्रवेश कर जाता है. कुछ ही दिनों में रोग के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. अगर 3-4 दिन के अंतराल पर बारिश होती रहे और मौसम उमस भरा रहे, तो सफेद मक्खी का प्रकोप तेजी से फैलता है, जिसके साथ ही पीला मोजैक रोग भी खेत में तेजी से फैल जाता है. पीला मोजैक रोग रोकथाम के लिए खेत की समय-समय पर निगरानी करना जरूरी है  इसके सटीक उपायों को अपनाते हैं, तो वे इस खतरनाक बीमारी पर काबू पा सकते हैं और अपनी फसल सुरक्षित रख सकते हैं.

यह रोग बर्बाद करेगा फसल, रहें सतर्क

पौध सुरक्षा विशेषज्ञ ने बताया कि इस बीमारी के कुछ स्पष्ट लक्षण होते हैं, जिन्हें किसान अगर  समय रहते पहचान लें, तो अपनी फसल को बड़ी क्षति से बचा सकते हैं. सोयाबीन, उड़द, मूंग की फसल की पत्तियां धीरे-धीरे पीली होने लगती हैं. पत्तियां खुरदुरी और सिकुड़ने लगती हैं, जिससे उनकी सामान्य बनावट बिगड़ जाती है. पत्तियों पर पीले-पीले धब्बे उभर आते हैं, जो धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं. रोगी पौधे मुरझा जाते हैं और उनका सामान्य विकास रुक जाता है. कुछ ही दिनों में पूरे खेत में सफेद मक्खी दिखाई देने लगती है, जो पत्तियों पर बैठकर फसल को और भी नुकसान पहुंचाती है.

प्रभावित पौधों और फसल में फलियां या तो बनती ही नहीं, और अगर बनती भी हैं, तो बहुत कम और छोटी होती हैं, जिनमें बीज सिकुड़े और हल्के वजन वाले होते हैं. सोयीबीन की फसल में यह रोग उपज को 50% से 90% तक घटा सकता है और मूंग और उड़द के लिए यह रोग 10% से 100% तक की फसल पूरी तरह बर्बाद कर सकता है. 

पीला मोजैक रोग से बचाव के सटीक उपाय

पौध सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ प्रतीक कुमार दुबे ने बताया कि इसके रोकथाम के लिए सबसे पहले हमेशा रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें और बीज उपचार फसल को बचाने का सबसे बेहतर तरीका है.

बीजोपचार: पीला मोजैक रोग की समय पर रोकथाम के लिए बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना बेहद जरूरी है. इसके लिए थियामेथोक्सम 30 एफएस 10 मिलीलीटर दवा प्रति किलो बीज या इमिडाक्लोप्रिड 48 एसएल 1.25 मिलीलीटर दवा प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके ही बुवाई करें. इस उपचार से 35 दिनों तक फसल पर रोग का अटैक नहीं होगा.
 

सावधानी और निगरानी: जिन खेतों में सोयाबीन, उड़द या मूंग की फसल बोई गई है, उनके आसपास मिर्च, टमाटर, बैंगन जैसे सफेद मक्खी के परपोषी पौधों की खेती न करें. इसके अलावा, खेत की मेड़ों पर किसी भी प्रकार के खरपतवार नहीं रहने चाहिए, क्योंकि ये सफेद मक्खी के पनपने का स्थान बन सकते हैं. सफेद मक्खी की नियमित निगरानी सबसे ज़रूरी है, क्योंकि यह कीट पीला मोजैक रोग के वायरस का मुख्य वाहक है. अगर खेत में 1 या 2 पौधे भी रोगग्रस्त दिखाई दें, तो उन्हें तुरंत उखाड़कर नष्ट कर दें. खेत में पीले चिपकने वाले ट्रैप (Yellow Sticky Traps) लगाएं, जो सफेद मक्खी को आकर्षित करके फंसाते हैं. नीम तेल 5 एमएल को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

केमिकल दवाओं का इस्तेमाल: सफेद मक्खी का प्रकोप अधिक दिखाई दे, तो थियामेथोक्सम 25 डब्ल्यूजी (50 ग्राम दवा को 125 से 150 लीडर पानी में मिलाकर) छिड़काव करें. यदि खेत में पीला मोजैक रोग और सफेद मक्खी दोनों का प्रकोप अधिक है, तो बीटासायफ्लुथ्रिन 8.49% और इमिडाक्लोप्रिड 19.81% (140 मिलीलीटर दवा को 125 से 150 लीटर पानी में मिलाकर) छिड़काव करने से रोग की प्रभावी रोकथाम हो जाती है. इन उपायों को अपनाकर किसान इस खतरनाक पीला मोजैक रोग की रोकथाम कर सकते हैं और अपनी सोयाबीन, उड़द और मूंग की फसल को सुरक्षित रख सकते हैं.

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