किसानों ने एक बार फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. एमएसपी को लेकर उनकी दो प्रमुख मांग है. एक डिमांड सभी फसलों पर सी2+50 प्रतिशत लाभ वाले फार्मूले के आधार पर एमएसपी देने और दूसरी मांग एमएसपी गारंटी की है. लेकिन दोनों मांगों पर सरकार अब तक कुछ खुलकर नहीं बोल रही. केंद्र सरकार का दावा है कि उसने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू कर दी है, जबकि किसान कह रहे हैं कि सरकार झूठ बोल रही है. उनका कहना है कि सरकार अभी किसानों को ए2+एफएल लागत के ऊपर 50 फीसदी लाभ जोड़कर ही एमएसपी दे रही रही है.
सवाल ये है कि आखिर किसान सी2 लागत वाली एमएसपी की मांग पर क्यों अड़े हुए हैं. दूसरी ओर, किसानों की आय बढ़ाने का नारा लगाने वाली सरकार आखिर सी2 उत्पादन लागत पर पचास फीसदी लाभ देने वाली मांग क्यों पूरी नहीं कर रही है? आखिर इन दोनों फार्मूलों से किसी फसल के दाम में कितना अंतर आ जाता है? क्या सरकार को एमएसपी पर खर्च में भारी वृद्धि होने का डर सता रहा है या फिर खाद्य पदार्थों की महंगाई का या फिर कोई और बात है.
एक बात तो तय है कि कृषि लागत और मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs and Prices) किसी भी फसल की लागत तीनों तरह (ए2, ए2+एफएल और सी2) से निकालकर सरकार को देता है. यह भी तय है कि अगर खेती की संपूर्ण लागत (C-2+50 फीसदी) के आधार पर किसानों को एमएसपी मिले तो उनकी आय में काफी इजाफा हो जाएगा. क्योंकि ए2+एफएल और सी2 दोनों उत्पादन लागत में काफी अंतर होता है. सी2 फार्मूले से दाम तय होगा तो किसानों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा. लेकिन, सरकार सी2 को लागू नहीं कर रही.
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केंद्र सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए गेहूं की उत्पादन लागत को प्रति क्विंटल 1065 रुपये माना है. लागत पर 100 फीसदी रिटर्न जोड़कर उसका एमएसपी 2125 रुपये तय किया है. दरअसल, यह सी-2 लागत पर आधारित गणना नहीं है, जिसकी किसान कई साल से मांग कर रहे हैं. यह एमएसपी ए-2+एफएल फार्मूले के आधार तय की गई है.
किसान सी-2 फार्मूले के हिसाब से एमएसपी मांग रहे हैं. इसके हिसाब से गेहूं उत्पादन पर लागत प्रति क्विंटल 1575 रुपये आती है. इस लागत पर स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार कम से कम 50 फीसदी रिटर्न जोड़कर भी उसका एमएसपी तय किया जाए तो भी वह 2363 रुपये प्रति क्विंटल होगा. अगर 100 फीसदी रिटर्न दिया जाए (जैसा कि सरकार ने ए-2+एफएल फार्मूले की लागत पर दिया है) तो एमएसपी 3150 रुपये होगा.
मतलब अगर एमएसपी के सर्वमान्य फार्मूले पर सरकार पैसा दे तो प्रति क्विंटल गेहूं की सरकारी बिक्री पर किसानों को 1025 रुपये ज्यादा मिलेंगे. इसलिए किसानों के लिए एमएसपी का सी-2 फार्मूला इतना अहम है.
स्वामीनाथन आयोग का गठन 18 नवंबर, 2004 को हुआ था. तब प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह थे. इस आयोग का नाम राष्ट्रीय किसान आयोग है. इसके अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन भी रहे थे, इसलिए उनके नाम पर ही इस आयोग का नाम स्वामीनाथन आयोग पड़ गया. आयोग ने अक्टूबर 2006 में अपनी अंतिम रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. आयोग की अहम सिफारिशों को शामिल करके ‘राष्ट्रीय किसान नीति’ तैयार की गई. जिसके तहत 201 एक्शन पॉइंट को लागू करने योजना बनाई गई थी. इसको इंप्लीमेंट करने के लिए अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया गया था. मोदी सरकार का दावा है कि उसने स्वामीनाथन आयोग की 201 सिफारिशों में से 200 को लागू कर दिया है.
केंद्र सरकार यह भी दावा कर रही है कि वो उत्पादन लागत से कम से कम डेढ़ गुना लाभ के साथ एमएसपी तय कर रही है. हालांकि, सरकार यह नहीं बताती कि एमएसपी तय करने का आधार सी2 नहीं है. यही समझने वाली बात है. किसान नेताओं का कहना है कि उत्पादन लागत का मतलब उत्पादन की समग्र लागत होती है जो कि सी-2 है, न कि ए2+एफएल.
राष्ट्रीय किसान आयोग के पहले अध्यक्ष रह चुके सोमपाल शास्त्री कहते हैं कि यह दुख की बात है कि सरकार सी2 की बजाय ए2+एफएल लागत के ऊपर 50 फीसदी लाभ जोड़कर एमएसपी तय कर रही है. ए2+एफएल के तहत खेती की नकदी लागत और परिवार के सदस्यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना जोड़ा जाता है. आयोग ने सी 2 आधार पर एमएसपी देने का वादा किया और सरकार ए2+एफएल के आधार पर दे रही है. सही फार्मूले से एमएसपी मिले तो किसानों की आय बढ़ेगी. उन्हें उपज का ज्यादा दाम मिलेगा.
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