देश में खाद्य तेलों की कुल जरूरत का लगभग 55 फीसदी हम दूसरे देशों से आयात कर रहे हैं, इसके बावजूद ओपन मार्केट में सरसों का दाम (Mustard Price) न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से नीचे आ गया है. रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है. देश के सबसे बड़े सरसों उत्पादक सूबे राजस्थान की मंडियों में इसका न्यूनतम, औसत और अधिकतम दाम...कोई भी एमएसपी के आसपास नहीं है. सवाल ये है कि खाद्य तेलों की इतनी मांग के बावजूद सरसों का दाम इतना कम क्यों हैं? क्या सरकार अब खाद्य तेलों का आयात कम करके किसानों को राहत देगी? या फिर सिर्फ उन फसलों का दाम कम करने की चिंता में डूबी रहेगी जिसका बाजार भाव एमएसपी से ऊपर है?
पिछले दो साल से किसानों को ओपन मार्केट में सरसों का भाव एमएसपी से अधिक मिल रहा था. इसलिए उन्होंने दूसरी फसलों को छोड़कर तिलहन की खेती बढ़ाई, खासतौर पर सरसों की खेती का काफी विस्तार किया. किसानों को क्रॉप डायवर्सिफिकेशन के लिए कहना नहीं पड़ा. यह नहीं बताना पड़ा कि तिलहन फसलों में कम पानी की खपत होती है इसलिए इसकी खेती ज्यादा करिए. दाम अच्छा मिला तो किसानों ने सरकार की अपील के बावजूद यह काम किया. इसलिए इस बार रिकॉर्ड पैदावार का अनुमान है. किसानों की यह कोशिश हमें तिलहन में आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रही थी. लेकिन अब जिस तरह से दाम एमएसपी से नीचे आ गए हैं, उसे देखकर यही लगता है कि अगले साल एक बार फिर सरसों का रकबा कम हो जाएगा.
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इस साल यानी रबी फसल सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी, जो 2021-22 के मुकाबले 6.77 लाख हेक्टेयर अधिक थी. ऐसे में इस बार केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 128.18 लाख टन उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो अब तक की रिकॉर्ड पैदावार होगी. इसका उत्पादन 2021-22 की तुलना में 8.55 लाख टन अधिक है. पिछले साल 119.63 लाख टन सरसों पैदा हुई थी. उत्पादन में इतनी उछाल देश के लिए बहुत अच्छी है. क्योंकि हम सालाना 1.3 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात कर रहे हैं.
सरकारी नीतियों की वजह से इतनी बड़ी रकम अपने देश के किसानों की जेब में जाने की बजाए इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, यूक्रेन और अर्जेंटीना जैसे देशों के किसानों के पास पहुंच रही है. ऐसे में जब तक अपने देश में किसानों को तिलहन का अच्छा दाम देने की नीति नहीं बनेगी तब तक हम खाद्य तेलों के मामले में इन्हीं देशों पर निर्भर रहेंगे. कृषि विशेषज्ञ बिनोद आनंद का कहना है कि तिलहन में भारत को आत्मनिर्भर बनाना है तो किसानों को सरसों और सोयाबीन जैसी फसलों का अच्छा दाम देना होगा. न सिर्फ अच्छा भाव बल्कि ऐसी खेती करने वालों को प्रीमियम भी देना चाहिए.
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट तिलहन फसलों में भारत के आत्मनिर्भर न होने के पीछे सरकार को जिम्मेदार बताते हैं. उनका कहना है कि तिलहन की खरीद नीति ही गलत है. तिलहन फसलें एमएसपी के दायरे में हैं, लेकिन एक बड़ा खेल भी किया गया है. इन फसलों की अधिकतम सरकारी खरीद कुल उत्पादन की सिर्फ 25 फीसदी ही हो सकती है. इस वजह से 75 फीसदी उपज एमएसपी के दायरे से बाहर है. हम जिन फसलों का आयात कर रहे हैं उनकी सरकारी खरीद में घरेलू स्तर पर इतनी बाधा क्यों है? क्यों किसानों की आय पर कुल्हाड़ी चलाने वाली नीतियां बनाई जा रही हैं?
जाट का कहना है कि सरकारी खरीद की अधिकतम अवधि 90 दिन ही रखी जाती है. उसमें सरकार छुट्टियां भी गिन लेती है. कभी बोरियां नहीं होती, कभी स्टाफ नहीं होता और कभी तोल नहीं होती...ऐसे में खरीद 60-65 दिन ही हो पाती है. जो अधिकारी ऐसी किसान और देश विरोधी पॉलिसी बनाते हैं सरकार उन्हें पुरस्कृत करती है. हमारे अधिकारी आयात वाली नीतियों को प्रमोट करते हैं. हम सरसों, मूंगफली जैसी फसलों की खेती करने वालों को दाम नहीं देते और सेहत के लिए खतरनाक पॉम आयल को इंपोर्ट करते हैं. यही नहीं इतनी बड़ी रकम दूसरे देशों को दे देते हैं.
हालांकि, अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर का कहना है कि अब तक की अंतरराष्ट्रीय स्थितियों के मुताबिक यही कह सकते हैं कि बंपर प्रोडक्शन के बावजूद सरसों का भाव एमएसपी से कम नहीं होगा. ब्लेंडिंग बंद होने और सरसों के प्रति रुझान की वजह से इसके भाव में लांग टर्म में कमी की उम्मीद नहीं है. किसानों को इस साल भी अच्छा भाव मिलेगा तो अगले साल वो अपनी खेती का और विस्तार करेंगे. यह देश के लिए फायदे वाला होगा क्योंकि खाद्य तेलों के मामले में अब इंपोर्ट पर निर्भर हैं. लेकिन अगर इस साल रेट कम मिला तो अगली बार फिर इसकी खेती का रकबा कम हो सकता है. सोयाबीन के बाद सरसों दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है. खाद्य तेलों में इसका योगदान लगभग 28 परसेंट है.
रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी (MSP) 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है. केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2022 में इसकी एमएसपी 400 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दी थी. सरकार का मानना है कि सरसों उत्पादन पर किसानों को प्रति क्विंटल औसतन 2670 रुपये खर्च करना पड़ता है. इस पर 104 फीसदी की वृद्धि करके सरकार ने नया एमएसपी तय किया है. हालांकि सी-2 लागत 3740 रुपये प्रति क्विंटल है. किसान इसी लागत पर एमएसपी तय करने की मांग कर रहे हैं. लेकिन, सरकार ए2+एफएल पैमाने से एमएसपी तय कर रही है. स्वामीनाथन कमीशन सी-2 लागत की वकालत करता है.
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