Western Disturbance: क्या होता है पश्चिमी विक्षोभ, क्या है इसका आने वाली बारिश से कनेक्शन, जानें सब कुछ

Western Disturbance: क्या होता है पश्चिमी विक्षोभ, क्या है इसका आने वाली बारिश से कनेक्शन, जानें सब कुछ

पश्चिमी विक्षोभ से मौसम पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं. जैसे बाढ़, बादल फटना, लैंडस्लाइड, धूल भरी आंधी, ओलावृष्टि और हड्डी कंपा देने वाली ठंडी हवाएं. इस बार कई जगह ऐसी स्थिति देखने को मिली है. इसलिए बेमौसम बारिश हो तो उसके पीछे इसी पश्चिमी विक्षोभ को वजह माना जाता है.

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Western Disturbance: क्या होता है पश्चिमी विक्षोभ, क्या है इसका आने वाली बारिश से कनेक्शन, जानें सब कुछपश्चिमी विक्षोभ से बारिश, बर्फबारी, ओलावृष्टि जैसे मौसमी बदलाव होते हैं.

इस दफे एक शब्द बेहद प्रचलित हुआ है. ऐसा प्रचलित कि जिसे नहीं जानना चाहिए, वह भी इसकी बातें कर रहा है. यह शब्द है वेस्टर्न डिस्टरबेंस. हिंदी में कहें तो पश्चिमी विक्षोभ. मौसम विभाग और मीडिया ने हाल के दिनों में इस शब्द पर इतना जोर दिया कि देखते-देखते यह मेन 'कीवर्ड' बन गया. मई-जून में पश्चिमी विक्षोभ का नाम सबसे अधिक चर्चा में रहा क्योंकि इसने लोगों को भरी गर्मी से राहत दी. इस बार लू का असर यदि पहले से कम दिखा है तो इसके पीछे भी इसी पश्चिमी विक्षोभ का हाथ है. इस बार अगर भरी गर्मी में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लोगों को स्वेटर पहनना पड़ा तो इसके पीछे इसी पश्चिमी विक्षोभ का हाथ है. इतना ही नहीं, जून में कुछ राज्यों में अगर कम बारिश या छिटपुट बारिश हुई है तो इसके पीछे भी इसी पश्चिमी विक्षोभ का रोल है. ऐसे में सवाल है कि पश्चिमी विक्षोभ क्या है जो बारिश, बर्फबारी पर असर डालता है?

आम भाषा में समझें तो पश्चिमी विक्षोभ हवा की ऐसी परिस्थिति है जो हमारे आसपास के मौसम पर गहरा असर डालता है. यह दो शब्दों से मिलकर बना है-पश्चिमी और विक्षोभ. इसका साफ अर्थ हुआ कि पश्चिमी की हवा होगी और वह डिस्टर्ब होगी जिससे मौसम में बदलाव होगा. दरअसल पश्चिमी विक्षोभ एक तरह की आंधी है या हवा का कम दबाव है जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र, यूरोप के अन्य भाग और अटलांटिक महासागर से उठता है. इसमें कम दबाव के चलते हवा में डिस्टरबेंस या विक्षोभ होता है जिससे मौसम में बड़े स्तर पर बदलाव होता है. इस बदलाव का सीधा असर बारिश और बर्फबारी पर देखा जाता है.

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पश्चिमी विक्षोभ का असर

पश्चिमी विक्षोभ पश्चिम से चलता है और देश में हिमालयी क्षेत्र की तरफ से प्रवेश करता है. अफगानिस्तान, पाकिस्तान से होते हुए भारत में प्रवेश करता है और इससे उठी पछिया हवा देश के पश्चिम से पूर्वी हिस्से की ओर चलती है. अपने सफर के दौरान यह हवा भूमध्य सागर, काला सागर, कैस्पियन सागर और अरब सागर से नमी सोखती है. नमी से भरी यह हवा जैसे ही हिमायल के पहाड़ों से टकराती है, अपनी नमी को बारिश और बर्फबारी के रूप में छोड़ देती है. इससे हिमालय से सटे राज्यों में बारिश और बर्फबारी होती है.

पश्चिमी विक्षोभ कभी-कभी उत्तरी पर्वतीय राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के साथ-साथ उत्तर पूर्वी राज्यों की ओर बढ़ता है, जबकि कई बार यह पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार के माध्यम से दक्षिण क्षेत्रों की ओर बढ़ता है. खास बात ये है कि गर्मी में यह विक्षोभ भले ही लोगों को राहत दिलाए, लेकिन मौसम के लिहाज से यह हमेशा उपयुक्त नहीं होता. कभी-कभी यह विक्षोभ अपने साथ बहुत खतरनाक मौसम लेकर आता है. जैसे बाढ़, बादल फटना, लैंडस्लाइड, धूल भरी आंधी, ओलावृष्टि और हड्डी कंपा देने वाली ठंडी हवाएं. इस बार कई जगह ऐसी स्थिति देखने को मिली है. इसलिए बेमौसम बारिश हो तो उसके पीछे इसी पश्चिमी विक्षोभ को वजह माना जाता है.

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पूर्व में जाएं तो 2013 में उत्तराखंड त्रासदी इसी विक्षोभ के चलते हुई थी जिसमें 5000 से अधिक लोगों की जान गई थी. 2018 में देश में खतरनाक धूल भरी आंधी की बात हो या 2014 में कश्मीर में बाढ़ की घटना या 2010 में लेह में बादल फटने की घटना, इन सबके पीछे पश्चिमी विक्षोभ ही जिम्मेदार रहा है. इसके अलावा बारिश से तो इसका नाता तो है ही.

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