पंजाब सरकार ने सब्सिडी पर खरीदी गई पराली प्रबंधन मशीनों की अवैध रीसेल (दोबारा बिक्री) के मामलों की जांच के आदेश दिए हैं. किसानों, किसान समूहों और कस्टम हायरिंग सेंटरों द्वारा खरीदी गई ये मशीनें सब्सिडी लेकर ली गई थीं, लेकिन कई मामलों में इन्हें तय अवधि से पहले बेच दिया गया.
सरकार द्वारा दी जा रही 50% सब्सिडी के तहत किसान ये मशीनें खरीदते हैं. नियमों के अनुसार, किसान को यह मशीन कम से कम 5 साल तक अपने पास रखना होता है. किसान इस शर्त को मानते हुए एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर भी करते हैं.
शुरुआत में करीब 11,200 मशीनों की जांच की जा रही है जो किसानों द्वारा केंद्र सरकार की योजना के तहत सब्सिडी पर खरीदी गई थीं. जांच में यह भी सामने आया है कि कई किसानों ने मशीनें एक या दो साल के भीतर बेच दीं, जो नियमों के खिलाफ है.
विभाग को कई शिकायतें मिली हैं कि 2023-24 में खरीदी गई मशीनें अब सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेची जा रही हैं. इस पर सख्त कार्रवाई के लिए कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने सभी मुख्य कृषि अधिकारियों को आदेश दिए हैं कि वे समाचार रिपोर्ट और सोशल मीडिया पोस्ट्स को स्कैन करें और जिन किसानों ने मशीनें बेची हैं, उनसे सब्सिडी की पूरी राशि वसूलें.
पहले की गई जांच में यह भी सामने आया है कि कई किसानों और अधिकारियों ने मिलकर फर्जी बिल तैयार किए और लगभग ₹140 करोड़ की सब्सिडी का घोटाला किया. इस मामले में कृषि विभाग के 900 से ज्यादा अधिकारियों को शो-कॉज नोटिस भी जारी किए गए थे.
यह सब्सिडी केंद्र सरकार की "फसल अवशेषों के इन-सिचू प्रबंधन हेतु कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा" योजना के तहत दी जाती है. इसके अंतर्गत किसानों को हैप्पी सीडर, रोटावेटर, स्ट्रॉ रीपर जैसी मशीनों पर सब्सिडी मिलती है, ताकि पराली जलाने की समस्या को रोका जा सके.
पंजाब सरकार ने स्पष्ट किया है कि जिन किसानों, समूहों या केंद्रों ने मशीनों को जल्दी बेचकर नियमों का उल्लंघन किया है, उनसे पूरी सब्सिडी राशि और ब्याज समेत वसूली की जाएगी. साथ ही भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
सरकार की यह कार्रवाई पराली जलाने से निपटने की गंभीरता को दर्शाती है. ऐसे मामलों में सख्ती जरूरी है ताकि किसानों को सही लाभ मिले और सरकारी योजनाओं का दुरुपयोग न हो.
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