छत्तीसगढ़ के स्थानीय मीडिया ने हाथियों को लगभग विलेन बना दिया है. खबरों में जो हेडिंग आ रही हैं उनमें हाथियों को ` हिंसक ` बिगड़ैल` ` जिद्दी` और `आतंकी, हत्यारे! ` जैसे शब्दों के साथ संबोधित किया जा रहा है. राज्य में इन दिनों हाथियों और इंसानों का महायुद्ध चल रहा है. लगता है जंगल में कोई मसाला फिल्म का क्लाइमेक्स शूट हो रहा हो. ऊपर बताए गए तमाम टाइटल्स थोक में बांटे जा रहे हैं. मानो हाथी सूंड में मशीनगन लहराते हुए गांवों पर कहर बरपाने निकला हो! लेकिन ज़रा रुकिए, स्क्रिप्ट में असली ट्विस्ट तो ये है. हाथी हजारों सालों से इंसानों का पड़ोसी रहा है, सह-अस्तित्व का साथी रहा है. असली खलनायक तो हम हैं जिन्होंने कोयला खदानों के लिए उनके एरिये पर कब्जा कर लिया है. अतिक्रमण कर धीरे-धीरे उनके रहने की जगहों को खत्म करते चले जा रहे हैं.
अरे भिया, थोड़ा तो हाथी की मजबूरी भी समझो। ये बेचारे तो बस अपनी जिंदगी जी रहे हैं. हम इंसानों ने उनके घर में दाखिल होकर कह दिया, `भागो, ये हमारा इलाका है! ` अब जब वे थोड़ा-बहुत विरोध करते हैं, तो उन्हें आतंकी का तमगा दे दिया जाता है.
सबसे पहले तो ये समझ लीजिए कि हाथी कोई खूंखार गैंगस्टर नहीं है. वो तो जंगलों का शांत पड़ोसी है जो अपनी मस्ती में मगन रहता है. हां, कभी-कभी उसका मूड थोड़ा ऑफ हो जाता है, खासकर तब जब आप उसके घरों में घुसकर उनका खाना चुराने की कोशिश करते हैं. अब बताइए, अगर कोई आपके फ्रिज से आपकी बिरयानी निकाल ले जाए, तो क्या आप चुपचाप रह पाएंगे? नहीं न! तो हाथी भी बस अपनी बिरयानी बचाने की कोशिश कर रहे हैं. जरा, सोचिए यहां घुसपैठिया कौन है?`
मॉन्गाबे साइट पर छपी भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की रिपोर्ट के मुताबिक छत्तीसगढ़ में हाथियों की संख्या देश के जंगली हाथियों के 1% से भी कम लगभग 300 है. फिर भी मानव-हाथी टकराव इतना ज़बरदस्त कि हर साल 60 से ज़्यादा लोग मारे जा रहे हैं. यह आंकड़ा देश में इस भिड़ंत में होने वाली मौतों का 15% से ज़्यादा है. राज्य वन विभाग के दस्तावेज़ों के अनुसार सितंबर 2002 में राज्य में केवल 32 हाथी थे. आज की तारीख़ में छत्तीसगढ़ में कम से कम 450 हाथी स्थाई रूप से रह रहे हैं. हसदेव अरण्य को हाथियों का घर कहा जाता है. यह करीब 1,70,000 हेक्टेयर में फैला जैव विविधता से भरा हुआ जंगल है.
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छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद के कुछ सालों तक राज्य के सरगुजा, जशपुर, रायगढ़ और कोरबा में ही हाथी रहते थे. मानव-हाथी द्वन्द्ध के कुछ मामले भी इन्हीं ज़िलों तक सीमित थे. लेकिन इन ज़िलों में भी साल दर साल संघर्ष के आंकड़े बढ़ते चले गए. हाथियों के साथ संघर्ष का दायरा भी इन चार ज़िलों से बढ़ते हुए राज्य के अधिकांश ज़िलों तक पहुंच गया. राज्य में दो एलिफेंट रिज़र्व भी बनाए गए हैं लेकिन मानव-हाथी संघर्ष में कहीं कोई कमी नहीं आई. छत्तीसगढ़ में 36 वनमंडल हैं और आज की तारीख़ में इनमें से 22 वनमंडल हाथी प्रभावित हैं. उदाहरण के लिए कोरबा ज़िले में 2000-01 में हाथियों द्वारा फसल नुकसान के 21 मामले दर्ज़ किए गए थे. अब यह मामले हजारों से ज्यादा हैं. रायगढ़ में 2000-01 में हाथियों के हमले में एक व्यक्ति की मौत हुई थी. 2019-20 में अकेले रायगढ़ ज़िले में हाथियों के हमले में मारे जाने वालों की संख्या 18 पहुंच गई. 2000-01 में पूरे राज्य में हाथियों के हमले में दो लोग मारे गए थे. 2022-23 में हाथियों के हमले में मारे जाने वाले लोगों की संख्या 74 जा पहुंची.
राज्य में बढ़ती कोयला खदानों ने हाथियों के ‘होम रेंज’ को तहस-नहस कर डाला. इसी रिपोर्ट में बताया गया है कि जिन हाथियों पर सेटेलाइट कॉलर लगे हैं उनके विचरण का इलाका कितना बड़ा है. ` ब्रह्मदेव` नाम के हाथी का इलाका 1416 वर्ग किलोमीटर है. वहीं, ` गौतमी` हथिनी का 2562 वर्ग किलोमीटर और ‘ प्यारे’ हाथी का 1711 वर्ग किलोमीटर इलाका है. इसकी तुलना में तमिलनाडु के नीलगिरी में हाथियों का इलाका सिर्फ 650 और राजाजी नेशनल पार्क में सिर्फ 280 वर्ग किलोमीटर है. सोच कर देखिए छत्तीसगढ़ में हाथियों का जो बहुत बड़ा इलाका था वहां कोयला खदानों की वजह से कोयले का गोदाम बन गया है.
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वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट कहते हैं कि हाथियों की बढ़ती तादाद से खाना, पानी और ठिकाना मुश्किल हुआ, लेकिन असली दिक्कत खनन का धंधा है. सरगुजा, कोरबा, रायगढ़ और जशपुर में उनका पुश्तैनी घर था, पर अब वहां कोयले का काला पहाड़ खड़ा है. बेचारे खाने की तलाश में गांवों की ओर दौड़ते हैं, तो इंसान मशालें और लाठियां लेकर उन्हें आतंकी बता देता है. सारा इल्ज़ाम हाथी के सिर. अरे भाई, वो तो सालों से तुम्हारा पड़ोसी था, ये कोयले खदानें कौन लेकर आया? अब तो छत्तीसगढ़ में एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान बनने वाली है. यानी समस्या बढ़ती ही दिखाई दे रही है.
उधर हाथियों को लेकर मीडिया का ` आतंकी` और ` हत्यारा` वाला नैरेटिव तो मुद्दे को एक तरफा देखने का प्रयास है. इस समस्या को गहराई से समझने की ज़रूरत है. हाथी तो शाकाहारी है, जिसकी ज़िंदगी का मंत्र है, खाओ, टहलो, नहाओ, सो जाओ. हां, कभी-कभी उसका रास्ता आपके खेत या गांव से भिड़ जाता है, तब थोड़ी धक्कम-धक्का हो जाती है. लेकिन इसमें क्या सिर्फ हाथियों का ही क्या कसूर है? आप उसे आतंकी कहते हैं, वो सूंड लहराकर शायद कहता हो, ` भाई, मैं तो घास चरने निकला था, ये कोयले का खेल मेरे आंगन में क्यों मच गया?` राज्य में हाथियों के लिए कोई बात नहीं कर रहा है लेकिन कोयला खदानों के लिए तो ज़मीन-आसमान एक कर दिया है. लेमरु में एलिफेंट रिज़र्व बनाने की बात कही गई लेकिन हुआ क्या? वहां बिजली परियोजना शुरू हो गई. हाथी भी सोचते होंगे ` रिज़र्व हमारा, बिजली तुम्हारी, ये कौन-सा खेला जा रहा है?`
ऊपर से ये जिद्दी वाला तमगा तो सरासर मज़ाक है. हाथी जिद्दी नहीं, अपने रूटीन का पक्का है. उसकी खास आदत होती है वो सालों से वो एक ही हाइवे पर चलता था. जंगल से नदी, नदी से खेत, खेत से जंगल. अब कोयला खदानों ने उसकी सड़क पर टोल बूथ खड़ा कर दिया, तो वो भौंचक्का होकर इधर-उधर भटक रहा है. अपना रूटीना का रास्ता तलाश कर रहा है. आप इसे जिद कहते हैं, वो इसे अपनी आदत मानता है. सोच कर देखिए, अगर आपकी फेवरेट चाय की टपरी पर कोल माइन खुल जाए, तो क्या चुपचाप दूसरी गली भाग जाएंगे. सच कहिए थोड़ा शोर तो जरूर मचाएंगे ना? हाथी भी यही सोचते होंगे, ` कोयला खोदना है तो खोदो यार, पर हमारा रास्ता तो बख्श दो!`
सच यही है कि हाथी हमारा दुश्मन नहीं. वो तो जंगल का वो मासूम प्राणी हैं, जो समझ नहीं पा रहा कि कोयले का ये ढोल-नगाड़ा उसके बगीचे में क्यों बज रहा है. अगली बार वो गांव में आए तो उसे मशालों से दौड़ाने की बजाय इस नजरिये से भी विचार जरूर करें. हमने तो उस पर आतंकी का ठप्पा मार दिया है. हाथी न हत्यारा है, न बिगड़ैल जिद्दी. वो तो जंगल का भोला जीव है, जिसका घर कोयला खदानों ने हड़प लिया. तो जब उसे विलेन बनाने वाली हेड लाइंस लिखी जा रही हों तो इन बातों पर भी विचार जरूर करें. उसके लिए थोड़ा प्यार. थोड़ा रास्ता. थोड़ी सहानूभुति जरूर रखें. हेडिंग लगाते समय थोड़ा गजप्रेम रखें. नहीं तो कल को देश में सिर्फ 150 हाथी बचे!, देश में लुप्तप्राय हो गए हैं हाथी!, हाथी मेरे साथी, तुम कहां चले गए! जैसी हेडिंग ही लगानी होंगी. फिर इस जीव को बस किताबों में ढूंढ़ते रह जाओगे! क्या आप ऐसा चाहते हैं?
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