हरियाणा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत मुआवजे के भुगतान में बड़ी गिरावट देखी गई है. इस पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की जमकर आलोचना भी हो रही है. लेकिन मंत्रालय ने आंकड़ें जारी कर अपना बचाव किया है. साथ ही कहा है कि यह गिरावट योजना की क्षेत्र-आधारित उपज मूल्यांकन पद्धति के कारण है. लोकसभा में जारी मॉनसून सत्र के दौरान हरियाणा के रोहतक से सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने सरकार से इस बाबत सवाल किया था और जिसके जवाब में यह जानकारी सामने आई है.
हुड्डा के एक सवाल के जवाब में कृषि राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने पुष्टि की कि राज्य में फसल बीमा भुगतान 2022-23 में 2,518.66 करोड़ रुपये से घटकर 2023-24 में 265.23 करोड़ रुपये रह गया है, जो 89.5 फीसदी यानी करीब 5 प्रतिशत की गिरावट है. 2024-25 में भुगतान और घटकर 262.6 करोड़ रुपये रह गया. ठाकुर ने साफ किया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत, 'दावों का निर्धारण संबंधित राज्य सरकार की तरफ से पेश किए गए असल उपज में कमी और सीमा उपज के आधार पर और योजना के संचालन दिशानिर्देशों में दिए गए सूत्र के अनुसार किया जाता है. ऐसे में दावे प्राकृतिक आपदाओं के कारण उपज में हुए नुकसान पर निर्भर करते हैं.
खरीफ 2023 सीजन के दौरान भिवानी और चरखी दादरी में कपास की फसल की उपज के आंकड़ों पर विवाद जारी है. इस पर ठाकुर ने कहा, 'हरियाणा की राज्य स्तरीय तकनीकी समिति (STAC) ने 20 अगस्त, 2024 को अपनी मीटिंग में, योजना दिशानिर्देशों के सेक्शन 19.5 से 19.7 के अनुसार, महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (MNCFC) और हरियाणा अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (HARSAC) से गांव-वार तकनीकी उपज के आंकड़े हासिल करने का फैसला किया. इन निष्कर्षों को राज्य और बीमा कंपनी, दोनों ने स्वीकार कर लिया और केंद्रीय तकनीकी सलाहकार समिति (CTAC) में कोई अपील नहीं की गई.'
प्रीमियम योगदान के विवरण की हुड्डा की मांग का जवाब देते हुए, मंत्री ने कहा कि PMFBY के तहत, किसान न्यूनतम प्रीमियम का भुगतान करते हैं - खरीफ फसलों के लिए बीमित राशि का 2 प्रतिशत, रबी फसलों के लिए 1.5 फीसदी और वाणिज्यिक/बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत. बाकी प्रीमियम केंद्र और राज्य सरकार द्वारा समान रूप से साझा किया जाता है. ठाकुर ने 2023 की गाइडलाइंस के तहत किए गए बदलावों के बारे में भी बताया. ठाकुर ने सदन को बताया, 'कप और कैप (80:110), कप और कैप (60:130) और लाभ-हानि साझाकरण जैसे नए जोखिम-साझाकरण मॉडल पेश किए गए हैं. कुछ मामलों में, अगर दावे एक सीमा से कम रहते हैं तो सरकार की सब्सिडी का कुछ हिस्सा राज्य के खजाने में वापस चला जाता है. उच्च दावों के लिए, केंद्र और राज्य दोनों को बोझ उठाना पड़ता है.'
कृषि राज्य मंत्री ठाकुर ने बताया कि रिमोट सेंसिंग-आधारित उपज अनुमान को अब 30 फीसदी महत्व दिया गया है. साथ ही ऑटोमैटिक मौसम केंद्रों और बारिश-मापी जैसे अतिरिक्त बुनियादी ढांचे योजना के तकनीक-आधारित मूल्यांकन को और मजबूत बना रहे हैं. हालांकि, दीपेंद्र हुड्डा इससे सहमत नहीं थे. उन्होंने कहा, 'बीमा दावों के निपटान में भारी गिरावट किसानों के लिए आर्थिक संकट पैदा कर सकती है और योजना में उनका विश्वास कम कर सकती है. ऐसा लगता है कि यह योजना अब किसानों से ज्यादा निजी बीमा कंपनियों के लिए काम कर रही है.'
हुड्डा ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को निजी बीमा कंपनियों के खजाने भरने का साधन बना रही है. इसलिए किसानों को उचित मुआवजा देने से इनकार कर रही है. राज्य मंत्री ठाकुर ने यह भी बताया कि आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शुरुआती कार्यान्वयन के बाद इस योजना से बाहर हो गए थे, हालांकि आंध्र प्रदेश और झारखंड अब फिर से इसमें शामिल हो गए हैं.
जो आंकड़े फसल बीमा से जुड़े सरकार की तरफ से जारी किए गए हैं वो कुछ इस तरह से हैं. हालांकि केंद्र सरकार ने यह नहीं बताया कि ऊपर बताए गए आंकड़ों में राज्य की कितनी भागीदारी थी.
2020-21: किसानों का हिस्सा 345 करोड़ और केंद्र का हिस्सा 482.2 करोड़ रुपये था जबकि 1162.7 करोड़ के दावों का निपटान.
2021-22: किसानों का हिस्सा 313.8 करोड़ और सरकार का हिस्सा 447.7 करोड़ था. 1649 करोड़ रुपये के दावों का निपटान.
2022-23: किसानों की हिस्सेदारी 345 करोड़ रुपये थी तो सरकार ने दिए 81. 1 करोड़ रुपये. 2518.7 करोड़ रुपये के दावों को निपटान.
2023-24: 154.9 करोड़ रुपये किसानों के जबकि सरकार की तरफ से 246.6 करोड़ रुपये. कुल दावों का निपटान 265.2 करोड़ रुपये.
2024-25: किसानों ने 280.3 करोड़ रुपये दिए, सरकार की 388.2 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी. दावों का निपटान 262.6 करोड़ रुपये.
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