
अपने रक्षा साजोसामान और टेक्नोलॉजी की वजह से सुर्खियों में रहने वाला इजराइल इन दिनों फिलिस्तीन के साथ जंग की वजह से चर्चा में है. दोनों देशों में भयंकर युद्ध चल रहा है. लेकिन आज हम बात करेंगे भारत के परिप्रेक्ष्य में. वो भी सिर्फ आपसी सहयोग और टेक्नोलॉजी के पहलू पर. भारत में कृषि और किसानों को आगे बढ़ाने के लिए इजराइल का अहम योगदान है. इस समय अलग-अलग राज्यों में फल, फूल और सब्जियों की आधुनिक खेती के लिए इजराइल के सहयोग से 30 से अधिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं. कृषि क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए दोनों देशों के बीच समझौता है. वो भारत में खेती-किसानी की तरक्की का साथी है. खासतौर पर संरक्षित खेती (Protected Cultivation) को लेकर. जो टमाटर पहले हमारे यहां खेतों में सिर्फ चार महीने होता था वो अब संरक्षित खेती की बदौलत साल भर पैदा हो रहा है. इस तकनीक ने भारत में खेती की तस्वीर बदलने का काम किया है.
दरअसल, भारत में कृषि और किसानों की तरक्की के लिए इजराइल के योगदान को कभी कोई नकार नहीं सकता. इंडो-इजराइल एग्रीकल्चरल प्रोजेक्ट के तहत इजराइल भारत के किसानों को आधुनिक खेती सिखा रहा है. इंडो इजराइल एक्सीलेंस सेंटर फॉर वेजिटेबल और इंडो-इजराइल विलेजिज ऑफ एक्सीलेंस के जरिए वो यह काम कर रहा है. इंडो-इजराइल विलेजिज ऑफ एक्सीलेंस नया प्रोजेक्ट है. भारत की खेती में उसका कितना बड़ा सहयोग है, इसे नई दिल्ली स्थित पूसा कैंपस और अलग-अलग राज्यों में स्थित एक्सीलेंस सेंटर में देखा जा सकता है. सेंटर ऑफ एक्सीलेंस किसानों को कृषि की सर्वोत्तम पद्धतियों का प्रदर्शन दिखाते हैं. यहां किसानों को ट्रेनिंग देते हैं.
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इजराइल कृषि क्षेत्र में काफी आगे है. वो इस क्षेत्र में भारत को 1993 से ही सहयोग दे रहा है. लेकिन, दोनों देशों के बीच कृषि क्षेत्र में आपसी सहयोग की मजबूत नींव एचडी देवगौड़ा के शासनकाल में पड़ी. तब देश के कृषि मंत्री चतुरानन मिश्र थे. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा में बना संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी केंद्र (Centre For Protection Cultivation Technology) इसकी बड़ी मिसाल है. दोनों देशों के बीच कृषि तकनीक के आदान-प्रदान से उत्पादकता व बागवानी फसलों की गुणवत्ता में बहुत सुधार हुआ है. जिससे किसानों की आय बढ़ रही है.
पूसा परिसर में 31 दिसंबर 1996 को इजराइल के तत्कालीन राष्ट्रपति इजर वाइजमैन ने भारत-इजराइल कृषि प्रौद्योगिकी मूल्यांकन एवं हस्तांतरण केंद्र की आधारशिला रखी थी. कुछ साल बाद इसमें संरक्षित कृषि से जुड़ी कई तकनीकों का विकास हुआ. जिसका किसानों ने खूब फायदा उठाया. पूसा में जो इंडो-इजराइल प्रोजेक्ट चल रहा है उसका इंचार्ज एक प्रिंसिपल साइंटिस्ट होता है. इजराइल के कृषि वैज्ञानिकों ने भारत के कृषि वैज्ञानिकों के साथ मिलकर खेती की आधुनिक तकनीकों को किसानों तक ले जाने का काम किया. भारत में खासतौर पर इजराइल की टपक सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) पद्धति से किसानों को काफी फायदा मिला है.
इजराइल ने जो हमें संरक्षित खेती के गुर सिखाए हैं उसकी बदौलत हमें किसी भी सीजन में कोई भी फल खाने को मिल जाता है. दरअसल, इस तकनीक में एक कंट्रोल वातावरण में फसलों की खेती की जाती है. इसमें कीट अवरोधी नेट हाउस, ग्रीन हाउस, प्लास्टिक लो-हाई टनल और ड्रिप इरीगेशन का इस्तेमाल होता है. बाहर मौसम कैसा भी हो, संरक्षित खेती में अंदर का मौसम उस फसल के मुताबिक करके कोई भी फसल उगा सकते हैं.जो आप पॉलीहाउस देखते हैं वो उसी की देन है.
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भारत और इजराइल के बीच कृषि क्षेत्र में हर साल साझेदारी और मजबूत हो रही है. इजराइल ने एक नया कृषि प्रोग्राम बनाया है. जिसका लक्ष्य मौजूदा सेंटर ऑफ एक्सीलेंस को बढ़ाना, नए केंद्र स्थापित करना, आत्मनिर्भर बनाना और निजी क्षेत्र की कंपनियों तथा सहयोग को प्रोत्साहित करना है. दूसरी ओर, इंडो-इजराइल विलेजिज ऑफ एक्सीलेंस एक नई कल्पना है. जिसका लक्ष्य 8 राज्यों के 75 गांवों में 13 सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के पास कृषि इकोसिस्टम विकसित करना है. इससे परंपरागत खेत इंडो-इजराइल एग्रीकल्चरल प्रोजेक्ट के मानकों के आधार पर आधुनिक-सघन फार्मों में बदले जाएंगे.
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