पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का एलान हो गया है. इसमें राजस्थान भी शामिल है, जहां 23 नवंबर को वोटिंग होगी. चुनाव की तारीख का पता चलते ही राजनीतिक पार्टियों ने मतदाताओं को रिझाने का काम शुरू कर दिया है. राजस्थान की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 25.56 फीसदी है, ऐसे में यहां किसान अहम मुद्दा हैं. यहां फसल के सही दाम खासतौर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर किसान लंबे समय से आंदोलनरत हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या चुनाव में फसलों का दाम मु्द्दा बनेगा या फिर किसान अपने मसले भूल जाएंगे. इन दिनों किसान लगातार सियासी बहस के केंद्र में बने हुए हैं, ऐसे में कांग्रेस शासित इस सूबे में भी किसानों से जुड़े कुछ ज्वलंत सवाल हैं, जिन पर बात करना बहुत जरूरी है.
गहलोत सरकार ने दावा किया है कि उसने किसानों के लिए बहुत काम किया है. अलग कृषि बजट पास किया है. लेकिन, क्या सिर्फ इतना कहने भर से काम हो जाता है. दरअसल, राजस्थान में किसानों का सबसे बड़ा सवाल सिंचाई के लिए पानी और फसलों के दाम का है. कांग्रेस दिल्ली में मोदी सरकार से एमएसपी की लीगल गारंटी मांगती है लेकिन राजस्थान में अपना कर्तव्य निभाना भूल जाती है. वहां वो बाजरा एमएसपी पर नहीं खरीदती है. सरसों और चने की भी पर्याप्त खरीद नहीं करती है, जबकि किसान इसके लिए आंदोलन कर रहे हैं.
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राजस्थान देश का सबसे बड़ा सरसों उत्पादक सूबा है. कुल सरसों उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 48.2 फीसदी है. लेकिन एमएसपी पर इस साल सिर्फ 3.91 लाख मीट्रिक टन सरसों खरीदा गया है. जबकि नियम के अनुसार यहां 15 लाख मीट्रिक टन की खरीद होनी चाहिए थी. कुल सरसों उत्पादन का 25 फीसदी खरीदने का नियम है, लेकिन सरकार ने इस नियम को ताक पर रख दिया. किसान राजस्थान से लेकर दिल्ली तक सरसों सत्याग्रह करते रहे, जबकि राज्य सरकार ने खरीद नहीं की. आप समझ सकते हैं कि जो पार्टी दिल्ली में मोदी सरकार से एमएसपी की गारंटी मांगती है वो अपने शासन वाले सूबे में किसानों को एमएसपी के लिए तरसा डालती है.
इसी तरह राजस्थान देश का सबसे बड़ा बाजरा उत्पादक सूबा भी है. देश के कुल बाजरा उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी 44.22 फीसदी है. फिर भी गहलोत सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में एमएसपी पर बाजरे की खरीद नहीं की. इसलिए वहां के किसान एमएसपी से कम दाम पर व्यापारियों को बाजरा बेचने पर मजबूर होते हैं. वो कई बार हरियाणा में आकर अपना बाजरा बेचने की कोशिश करते हैं. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि राज्य सरकार ने एमएसपी पर खरीद की अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई है. वो इसमें फेल रही है.
राजस्थान सरकार ने खेती-किसानी के लिए 2000 यूनिट बिजली फ्री कर रखी है. इससे किसानों को बड़ी राहत मिली है. इसी तरह सरकार ब्याजमुक्त फसली ऋण दे रही है. सहकारी दुग्ध समितियों पर दूध बेचने वाले किसानों को राज्य सरकार 5 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से प्रोत्साहन राशि दे रही है. इन योजनाओं की तारीफ करनी होगी. लेकिन किसानों को दाम दिलाने के मुद्दे पर वो बहुत पीछे रही है, जिसका फायदा व्यापारियों ने उठाया है और किसानों को एमएसपी से कम दाम पर बाजरा व सरसों बेचने पर मजबूर होना पड़ा है.
राजस्थान क्षेत्रफल के लिहाज से सबसे बड़ा राज्य है. यहां की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान 25.56 फीसदी है. इसलिए किसान चुनाव के लिहाज से अहम हैं. बाजरा और सरसों के उत्पादन के मामले में यह देश में अव्वल है. इन दोनों की खेती करने वाले किसान परेशान हैं. पौष्टिक अनाजों के उत्पादन में इसकी 16.44 फीसदी और मूंगफली में 20.65 परसेंट की भागीदारी है.
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राज्य सरकार के एक रिकॉर्ड के अनुसार राजस्थान में करीब 60 फीसदी लघु एवं सीमांत किसान हैं. कृषि गणना 2015-16 के मुताबिक सूबे में कुल जोतों की संख्या 76.55 लाख है, जिसमें से मात्र 3.59 लाख ही बड़े किसान हैं. मध्यम जोत वाले किसान 11.32 लाख हैं. इसी तरह 14.16 लाख अर्ध मध्यम, 16.77 लाख लघु और 30.71 लाख सीमांत किसान हैं. देखना यह है कि क्या छोटे-बड़े किसान मिलकर अपने मुद्दों को पर नेताओं को अपनी ताकत दिखाएंगे या फिर चुनाव में वो दूसरे मुद्दों में बह जाएंगे.
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