Gajar Ghas: भारत में कैसे पहुंची 'कांग्रेस घास'? खतरनाक खरपतवार की दिलचस्प कहानी

Gajar Ghas: भारत में कैसे पहुंची 'कांग्रेस घास'? खतरनाक खरपतवार की दिलचस्प कहानी

आज भारत में खेल, खलिहान, बागीचे और रेलवे लाइनों पर एक ही खरपतवार का कब्जा है और वो है गाजर घास. आजादी के बाद ये घास देश में ऐसी फैली जो अब खत्म होने का नाम नहीं ले रही. लेकिन इस गाजर घास को कांग्रेस घास क्यों कहा जाता है और भारत में कब और कैसे आई, ये सारी कहानी आपको आज बताते हैं.

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भारत में कैसे पहुंची 'कांग्रेस घास'? खतरनाक खरपतवार की दिलचस्प कहानीcarrot grass

फसलों में किसान की सबसे बड़ी दुश्मन होती है खरपतवार. ये ऐसे अनचाहे पौधे होते हैं जो या तो फसल को उगने नहीं देते या फिर उसे धीरे-धीरे नष्ट कर देते हैं. लेकिन भारत में एक ऐसी खरपतवार है जो किसानों की लाख कोशिशों के बावजूद भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. हम बात कर रहे हैं गाजर घास की जो आज भारत के कोने-कोने में उगती है. इसे पार्थेनियम हिस्टोरोफस भी कहते हैं. 

गाजर घास केवल फसल ही नहीं बल्कि इंसानों की सेहत के लिए नुकसान दायक होती है. लेकिन फिर भी ये घास आज हमारे देश में 350 लाख हैक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में फैली हुई है. मगर गाजर घास को कांग्रेस घास भी कहते हैं. इसके साथ कांग्रेस का नाम जुड़ने का भी अगल कारण. आज हम आपको कांग्रेस घास के बारे में ये सब बता रहे हैं.

क्यों कहते हैं 'कांग्रेस घास'?

दरअसल, ये वो वक्त था जब देश में आजादी की ठंडी हवाएं बह ही रही थीं, लेकिन जल्दी ही ये ठंडी हवाएं भुखमरी का पाला बन गईं. मुश्किल से दो-तीन साल पहले आजाद हुए देश में अब ये भुखमरी किसी महामारी की तरह फैलने लगी थी. खेती सबके पास थी, लेकिन अंग्रेजों ने हमारे देश के किसानों को ऐसा चूसा कि उनके पास ना तो देश का पेट भरने के लायक अनाज था और ना ही इतनी बड़ी मात्रा में उत्पादन करने का सामर्थ्य. 

लिहाजा, भुखमरी की सैय्या पर आजादी का जनाजा ना निकले, इसके लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दूसरे देशों से गेहूं आयात करने का फैसला लिया. बात जब रोटी की थी तो इसके लिए 1950 के दशक में गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक देश अमेरिका काम आया. भारत में तब अमेरिका से भारी मात्रा में गेहूं आयात होने लगा. कुछ आंकड़ों की मानें तो 1966 तक भारत में अमेरिका से डेढ़ करोड़ टन से भी ज्यादा गेहूं आयात हुआ. इस दौरान अमेरिका से गेहूं के साथ कुछ और भी अनचाही चीज हिंदुस्तान की मिट्टी पर आ चुकी थी. लेकिन ये बात जब तक समझ आती तब तक गाजर घास का बीज देश के कोने-कोने में फैल गया था.
 
बताया जाता है कि 1955 में सबसे पहले गाजर घास का पौधा महाराष्ट्र के पुणे में देखा गया था. वो दिन है और आज का दिन, अमेरिका से आई ये खरपतवार किसानों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. चूंकि जब अमेरिकी गेहूं के साथ भारत में गाजर घास आई तब जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. लिहाजा गांव-गांव ये 'कांग्रेस घास' के तौर पर बदनाम हो गई. लेकिन इस बात को लेकर आज भी ये चर्चाएं होती हैं कि गाजर घास अनचाहे तरीके से आई या फिर ये अमेरिका की चालबाजी थी. 

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कितनी खतरनाक है गाजर घास? 

गाजर घास दक्षिण मध्य अमेरिका का पौधा है. इसकी लंबाई 1 से 2 मीटर होती है. अमेरिका से मिले पीएल-480 किस्म के गेहूं के साथ ये भारत में आई. पहले यह खरपतवार केवल गैर कृषि क्षेत्रों में ही दिखाई देती थी, लेकिन अब यह हर तरह की फसलों, बागों, वनों, रोड और रेलवे मार्गों के किनारे पर भारी मात्रा में देखने को मिल जाएगी. गाजर घास को कई स्थानीय नामों जैसे- कांग्रेस घास, चटक चांदनी, कड़वी घास जैसे नामों से भी जाना जाता है. 

गाजर घास का पौधा 3 से 4 महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है और सालभर फलता-फूलता है. यह हर तरह के वातावरण में तेजी से उग जाता है. गाजर घास केवल खेती के लिए ही नहीं बल्कि जावनरों और इंसानों के लिए भी नुकसानदायक होती है. अगर दुधारू पशु इसे घास समझकर खा लें तो उनका दूध 40 प्रतिशत तक कम हो सकता है. वहीं अगर इंसान इसके संपर्क में आ जाए तो उसे दमा, चर्म रोग और कांटेक्ट डटमैटाइरिस नामक बीमारी हो सकती है.

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