जून महीने में चीकू के बागों में क्या करें किसान? सिंचाई, खाद और तुड़ाई की पढ़ लें पूरी जानकारी

जून महीने में चीकू के बागों में क्या करें किसान? सिंचाई, खाद और तुड़ाई की पढ़ लें पूरी जानकारी

जून के अंत में मॉनसून आरंभ हो जाता है. इस ऋतु के दौरान देश के पूर्व-पश्चिमी तटीय मैदानी भागों में मॉनसून पूर्व वर्षा भी होती है, जिसे 'मैंगो शावर' भी कहा जाता है. यह वर्षा आम फल वृद्धि के लिए लाभदायक होती है. इसके अतिरिक्त, पश्चिम बंगाल, असोम, झारखंड, बिहार में तेज हवाओं और गरज के साथ भारी वर्षा होना सामान्य घटना है, जिसे 'काल बैसाखी' कहा जाता है. यह वर्षा आम और लीची के फसल के लिए फायदेमंद होती है.

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जून महीने में चीकू के बागों में क्या करें किसान? सिंचाई, खाद और तुड़ाई की पढ़ लें पूरी जानकारी चीकू के बाग

भारत में ग्रीष्म ऋतु मई-जून (जेठ-आषाढ़) के महीनों में पड़ती है. इसका व्यापक प्रभाव कृषि कार्यों पर पड़ता है. इस द्विमाही के दौरान दिनांक 21 जून को ग्रीष्म संक्रांति आती है. यह ग्रीष्म ऋतु का सबसे लंबा दिन होता है. इस समय सूर्य सीधे कर्क रेखा के ऊपर होता है. जून के अंत में मॉनसून आरंभ हो जाता है. इस ऋतु के दौरान देश के पूर्व-पश्चिमी तटीय मैदानी भागों में मॉनसून पूर्व वर्षा भी होती है, जिसे 'मैंगो शावर' भी कहा जाता है. यह वर्षा आम फल वृद्धि के लिए लाभदायक होती है. इसके अतिरिक्त, पश्चिम बंगाल, असोम, झारखंड, बिहार में तेज हवाओं और गरज के साथ भारी वर्षा होना सामान्य घटना है, जिसे 'काल बैसाखी' कहा जाता है. यह वर्षा आम और लीची के फसल के लिए फायदेमंद होती है. इस सीजन में कृष‍ि से जुड़े कई महत्वपूर्ण काम होते हैं. खासकर बागवानी फसलों की देखरेख जरूरी होती है. आज हम चीकू के बारे में जानते हैं क‍ि मई-जून में इसकी फसल के ल‍िए क्या करना चाह‍िए. 

मई-जून में बागों के कार्यकलाप के बारे में बागवानी वैज्ञान‍िक हरे कृष्ण, अरविंद कुमार सिंह, नृपेन्द्र विक्रम सिंह, मंजूनाथ टी. गौड़ा और शुभम कुमार तिवारी ने इसके बारे में व‍िस्तार से जानकारी दी है. इन लोगों के मुताब‍िक मई के महीने में जब कड़ी धूप हो, बगीचे की गहरी जुताई करें. लगभग 15 दिनों तक बगीचे की खाली जगह में धूप आने दें. ऐसा करने से कीटों के अंडे नष्ट हो जाएंगे तथा बाग में ज्यादा कीटनाशकों के छिड़काव से बचा जा सकेगा. इस समय बाग में सिंचाई बिल्कुल न करें.

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नए बाग कैसे लगाएं 

चीकू के नए बाग लगाने के ल‍िए 60×60×60 सेंटीमीटर या 100×100×100 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे क्रमवार 9×9 (बलुई मृदा में) अथवा 10×10 मीटर (भारी मृदा में) की दूरी पर तैयार करें. जून माह में गड्डों को सतही मृदा, 50 किलोग्राम गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सुपर फॉस्फेट और 1 किलोग्राम नीम खली से भरें. नए बाग लगाते समय अच्छी क‍िस्मों का चयन करें. दूसरी ओर स्थापित बागों में 5-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें. इस दौरान गुड़ाई करने से मृदा की नमी संरक्षित करने में भी सहायता मिलती है. 

खाद का इस्तेमाल क‍ितना हो 

बाग में मैग्नीशियम, सल्फर, बोरॉन, आयरन, जिंक तत्वों की पूर्ति के लिए क्रमवार 1 प्रतिशत मैग्नीशियम नाइट्रेट, 1 प्रतिशत कैल्शियम सल्फेट, बोरेक्स (5 किलो प्रति हेक्टेयर), फेरस सल्फेट (0.5 प्रतिशत) व जिंक सल्फेट (0.5 प्रतिशत) डालें.  बाग में नाइट्रोजन, पोटेशियम और फॉस्फोरस के साथ-साथ सूक्ष्म पोषकों तत्वों की मिट्टी में कमी के प्रति सजग रहें. खाद को डालने से पहले मिट्टी की जांच निकटतम संस्था से अवश्य करवाएं और जरूरत के अनुसार ही प्रयोग करें. भारत सरकार द्वारा विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि संस्थानों, राज्य सरकारों के अंतर्गत मृदा प्रयोगशालाओं में, म‍िट्टी की जांचकर स्वाइल हेल्थ कार्ड बनाए जा रहे हैं. 

ग्रेड‍िंग करने की सलाह 

फरवरी-मार्च में विकसित फूलों से फल मई-जून के दौरान तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जब फलों का रंग (नारंगी या आलू जैसा रंग) फीका पड़ जाए अथवा फलों से चिपचिपा दूधिया स्राव कम हो जाए और ये पेड़ों से आसानी से टूट जाएं तो समझ लेना चाहिए कि फल तुड़ाई के लिए तैयार हैं. तुड़ाई के बाद फलों को छोटे, मंझोले और बड़े आकार के आधार पर ग्रेड‍िंग करें.  पूर्ण विकसित फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए 5000 पीपीएम इथरेल + 10 ग्राम NaOHK के साथ एक वायुरोधी कक्ष में रखकर पकाएं. भंडारण से पूर्व जिब्रेलिक अम्ल (300 पीपीएम) अथवा कार्बण्डाजिम (1000 पीपीएम) से उपचार लाभदायी रहता है.

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