आलूबुखारा यानी प्लम वह फल है जो मई के मौसम में आना शुरू होता है और अक्टूबर तक बाजार में मिलता है. यह एक मीठा फल है जिसका पेड़ आमतौर पर 6 से 15 मीटर तक लंबा होता है. यह फल पश्चिम एशिया, भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, पाकिस्तान, यूरोप और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) और समशीतोष्ण क्षेत्रों (टेम्परेट रीजन) में काफी अच्छी मात्रा में होता है. भारत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और पंजाब के क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है. लेकिन इसमें खरपतवार लगना एक आम समस्या है. आज जानिए कैसे इस समस्या से छुटकारा पाकर किसान इसकी ज्यादा उपज हासिल कर सकते हैं.
गर्मियों का मौसम आते ही आलू बुखारा में खरपतवार का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में समय-समय पर इन्हें निकाल देना चाहिए. इसके पेड़ की आमतौर पर मई-जून में एक हफ्ते के बाद नियमित रूप से सिंचाई करनी चाहिए ताकि इनका विकास सही तरह से हो. जिन जगहों पर सिंचाई की सही व्यवस्था न हो, वहां पर पेड़ों के नीचे पलवार यानी माल्चिंग शीट बिछा देनी चाहिए. इस शीट के कई लाभ हैं जैसे इसके प्रयोग से खरपतवार का उगना कम हो जाता है. साथ ही यह मिट्टी के तापमान को भी ठीक रखती है. साथ ही अच्छी गुणवत्ता के फल भी हासिल होते हैं.
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गर्मी के दिनों में पेड़ों को तेज धूप के खतरनाक प्रभावों से बचाने के लिए इसके मुख्य तने पर नीले थोथे के घोल का लेप कर देना चाहिए. आलू बुखारा की किस्मों ब्यूटी, सांता रोजा और मैथिली में ज्यादा फल लगते हैं. पेड़ों की शाखाएं फलों का भार न सह सकने के कारण टूट भी जाती हैं. इसके लिए पेड़ों को बांस या मजबूत लकड़ी का सहारा देना चाहिए.
जापानी अलूबुखारे की करीब सारी किस्मों में बहुत फल लगते हैं. अगर सभी फलों को पेड़ों पर छोड़ दिया जाए तो फल छोटे आकार के होते हैं. ऐसे में फलों की छंटाई बहुत जरूरी होती है. फलों की छंटाई हाथ से करें या फिर नेफ्रथेलीन एसिटिक एसिड 50 पी.पी.एम., 50 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर इसका छिड़काव करें. पौधें की वृद्धि के लिए नाइट्रोजन की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इसके लिए 0.5 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव फूलों की पंखुड़ियों के झड़ने से लेकर फलों के पकने के दो सप्ताह पहले तक किया जा सकता है.
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जिंक और आयरन की कमी को दूर करने के लिए 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और फास्फोरस सल्फेट के घोल का छिड़काव किया जा सकता हैं. चिड़ियों से भी फलों की रक्षा करनी चाहिए और अगर पत्ती खाने वाले कीड़ों का प्रकोप हो तो इंडोक्साकार्ब के 0.07 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें.
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