अटल बिहारी वाजपेयी सरकार मे कृषि मंत्री रहे सोमपाल शास्त्री ने कहा है कि बीजेपी के सत्ता में आने से पहले के वर्ष 2013 के मुकाबले 2020 तक किसानों की रीयल इनकम 35 फीसदी कम हो गई है. सरकार ने 2016 में संसद के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर जोर-शोर से यह कहा था कि हम 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करेंगे. जबकि, ऐसा नहीं हुआ. इन दो वर्षों का तो पता नहीं, लेकिन 2020 की बात करें तो अब तक किसानों की आय दोगुनी होना तो छोड़ दीजिए. वह उल्टे घट गई है. क्योंकि जिस गति से खेती के काम में आने वाली चीजों के दाम बढ़े और किसानों की उपभोक्ता लागत बढ़ी है, उस गति से किसानों के उत्पादों के दाम में वृद्धि नहीं हुई है.
शास्त्री ने 'किसान तक' से बातचीत में कहा कि नौकरीपेशा लोगों को महीने की 30 तारीख को तनख्वाह मिल जाती है. व्यापारियों के पास भी पैसा आता रहता है. लेकिन किसानों के साथ ऐसा नहीं है. किसानों के खर्चे चलते रहते हैं. कभी जुताई पर, कभी सिंचाई, दवा, खाद, बीज और निराई-गुड़ाई पर, फिर फसल को खेत से उठाने और बाजार तक ले जाने में उसका खर्च होता रहता है. लेकिन जब वो अपनी फसल मंडी में लेकर जाता है, उसे पैसा मिलने की बारी आती है तब उसे उचित दाम नहीं मिलता. यह आम समस्या है. उसे जो भी बाजार में दाम उपलब्ध है उस पर ही अपनी उपज बेचनी पड़ती है.
राष्ट्रीय किसान आयोग के पहले अध्यक्ष रहे शास्त्री का कहना है कि असिंचित भूमि भी किसानों के लिए बड़ी समस्या है. आय कम होने के पीछे एक वजह यह भी है. भारत की 52 से 55 फीसदी भूमि असिंचित है. वास्तविकता यह है कि सिर्फ 45 फीसदी भूमि ही सिंचित है. जो सिंचित क्षेत्र है वहां पर औसतन उत्पादन 4 टन पर पहुंच चुका है. पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी में तो कहीं-कहीं पर 11 टन भी है. लेकिन जो असिंचित क्षेत्र है उसका औसत 1.2 टन है. यानी सिर्फ 12 क्विंटल. सोचिए, कहां 12 और कहां 40 क्विंटल. इसलिए ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करवानी होगी.
पूरे भारत की भूमि को सिंचाई उपलब्ध करवाना कठिन है. लेकिन, लेकिन 80-85 फीसदी भूमि ऐसी है जहां किसी न किसी रूप में जल उपलब्ध हो सकता है. अगर उसका अच्छी तरह से उपयोग किया जाए तो पानी सबको मिल सकता है. असिंचित क्षेत्रों में गरीबी भी बहुत है. ग्रामीण क्षेत्रों की 82 फीसदी गरीब जनता इन असिंचित क्षेत्रों में ही रहती है. ऐसे में किसानों की दशा सुधारने के लिए सिंचाई की व्यवस्था जरूरी है. मैंने योजना आयोग का सदस्य रहते हुए सुझाव दिया था कि सिंचाई की अखिल भारतीय एक 10 वर्षीय योजना बनाई जाए. जिसमें राज्य और केंद्र की 50-50 फीसदी हिस्सेदारी हो.
भारत में 86 फीसदी किसानों की जोत छोटी है. उनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है. ऐसे में सिर्फ खेती-किसानी के भरोसे रहने वाले लोगों की स्थिति खराब है. ऐसे लोग भयंकर कर्ज में डूबे हुए हैं. ऊपर से उन्हें उनकी फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा है. छोटी जोत के किसानों के यहां अगर कोई दूसरा काम भी होता है तब ही उनका घर ठीक से चलता है.
योजना आयोग के सदस्य रह चुके शास्त्री का कहना है कि जिस गति से गैर कृषि उत्पादों के मूल्य बढ़े हैं, उसके मुकाबले खेती के उत्पादों के दाम पिछड़ते ही रहे हैं. उसका यह परिणाम हुआ है कि खेती-किसानी में लगे लोगों की आय और दूसरे व्यवसायों में लगे हुए लोगों की प्रति व्यक्ति की आय में गैप बढ़ता जा रहा है. खेती के काम में लगे लोगों और गैर खेतिहर लोगों की इनकम में अंतर 1970 और 80 के दशक में जो एक और तीन का हुआ करता था. अब वह एक और 16 का हो चुका है. इसका सीधा सा मतलब है कि आप किसानों के उत्पाद का सही मूल्य नहीं देते हैं.
पूर्व कृषि मंत्री शास्त्री ने बताया कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के वक्त 1990 में कृषि क्षेत्र के लिए जो भानु प्रताप कमेटी बनी थी उसने सिफारिश की थी कि फसलों की सी-2 लागत पर 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय किया जाए. किसान आयोग का अध्यक्ष रहते हुए मैंने भी अपनी फाइल पर यह बात लिखी थी. बाद में मैंने आयोग से इस्तीफा दे दिया. फिर इस आयोग के अध्यक्ष डॉ. एमएस स्वामीनाथन बने. जिसे आजकल स्वामीनाथन आयोग के नाम से पुकारा जाता है. ऐसे में सी-2 लागत के आधार पर एमएसपी तय की जाए, यह मोदी सरकार का वादा भी रहा है. सी 2 लागत के तहत नकदी और गैर नकदी खर्चों के साथ-साथ जमीन का किराया और सारे खर्चों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल होता है.
जब 2013-14 में भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता की ओर अग्रसर हो रही थी, उस वक्त उसके नेताओं का सबसे बड़ा वादा यही था कि हम सत्ता में आए तो स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू किया जाएगा. परंतु दुख की बात यह है कि सरकार सी2 की बजाय ए2+एफएल लागत के ऊपर 50 फीसदी लाभ जोड़कर एमएसपी तय कर रही है. यह ठीक नहीं है. ए2+एफएल के तहत खेती की नकदी लागत और परिवार के सदस्यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना जोड़ा जाता है. आपने सी 2 आधार पर एमएसपी देने का वादा किया और दे रहे हैं दूसरे फार्मूले से. सही फार्मूले से एमएसपी मिले तो किसानों की आय बढ़ेगी. उन्हें उपज का ज्यादा दाम मिलेगा.
शास्त्री ने कहा कि विडंबना यह है कि जब सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई तब उसके उत्तर में वर्तमान सरकार ने यह कह दिया कि केंद्र के पास जितने वित्तीय संसाधन उपलब्ध हैं उसमें सी2 वाली बात व्यवहारिक नहीं है. इसे किया नहीं जा सकता. तो पहला सवाल तो यह है कि अगर सी 2 लागत के आधार पर एमएसपी नहीं दी जा सकती थी तब आपने किसानों से इतना गैर जिम्मेदाराना वादा क्यों किया.
चलिए उसको भी छोड़ दीजिए. जब 2019 का चुनाव आना शुरू हुआ तब उससे पहले 2018 में सरकार ने दावा कर दिया कि हमने तो स्वामिनाथन आयोग की सिफारिश लागू कर दी है. जबकि यह सच नहीं है. आप देख सकते हैं कि एमएसपी तय करते वक्त ए 2+एफएल के ऊपर 50 फीसदी जोड़ा जा रहा है न कि सी2 पर. इसे ठीक किया जाना चाहिए. यही नहीं कृषि लागत एवं मूल्य आयोग यानी सीएसीपी को संवैधानिक दर्जा दिया जाए और ताकि उसकी सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार बाध्य हो.
नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन (NSSO) के मुताबिक 2013-14 में किसान परिवारों की औसत आय 6426 रुपये प्रतिमाह थी जो 2018-19 में बढ़कर 10,218 रुपये हो गई है. आईसीएआर ने देश के 75 हजार किसानों का ब्यौरा एकत्र किया है, जिनकी आय डबल हो गई है. देश में किसानों की आय जानने के लिए एनएसएसओ से अलग कोई दूसरा सर्वे नहीं हुआ है.
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