
गेहूं के बढ़ते दाम को काबू करने के लिए भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई जनवरी में ओपन मार्केट सेल स्कीम (OMSS) ले आएगा. इसके तहत वो खुले बाजार में करीब 20 लाख टन गेहूं बेचेगा. हालांकि, कृषि क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इस बिक्री से उपभोक्ताओं को थोड़ी सी राहत जरूर मिलेगी, लेकिन किसानों का बड़ा नुकसान होगा. दरअसल, सरकार को चिंता है कि अगर गेहूं का भाव ऐसे ही 2700 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक चलता रहा तो अप्रैल में इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सरकार को कौन बेचेगा और ऐसे में बफर स्टॉक का क्या होगा. इसलिए किसी भी सूरत में सरकार अप्रैल तक गेहूं का दाम 2200 रुपये के आसपास लाने के जुगाड़ में जुट गई है.
रबी मार्केटिंग सीजन 2022-23 में सरकार ने 444 लाख मिट्रिक गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था. लेकिन, ओपन मार्केट में दाम एमएसपी से अधिक होने के कारण तमाम सरकारी कोशिशों के बावजूद सिर्फ 187.92 लाख टन गेहूं ही खरीदा जा सका था. जबकि तब एमएसपी के मुकाबले ओपन मार्केट में गेहूं का दाम प्रति क्विंटल 200 से 300 रुपये ही अधिक था. लेकिन, इस बार मामला और टाइट है. सरकार को गरीबों में बांटने और अपने बफर स्टॉक को मेंटेन रखने के लिए गेहूं खरीदना है, जबकि उसका रेट एमएसपी से 800 रुपये अधिक है. ऐसे में वो करे तो क्या करे. गरीबों को देखे या किसानों को. एमएसपी पर गेहूं बांटने वाले किसान 50 लाख से कम ही हैं, जबकि गरीब बहुत अधिक हैं.
डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च 2022 को सरकार के पास 189.90 लाख टन गेहूं मौजूद था. लेकिन, इस बार यानी 31 मार्च 2023 को इतना स्टॉक नहीं होगा. मार्केट के जानकारों का कहना है कि अगर ओपन मार्केट सेल होती है तो 31 मार्च 2023 को सरकारी स्टॉक में करीब 90 लाख टन गेहूं बचेगा. वरना 110 लाख टन के आसपास का स्टॉक होगा. जो पिछले पिछले कई वर्षों में सबसे कम होगा. हालांकि, यह 1 अप्रैल को बफर स्टॉक के नॉर्म्स (74.60) से अधिक ही होगा. फिर भी अगर गेहूं के दाम कम नहीं हुए तो सरकार के लिए अगले साल पीडीएस में देने के लिए किसानों से एमएसपी पर खरीदना आसान नहीं होगा.
सरकार ने रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 (अप्रैल-जून) के लिए गेहूं की एमएसपी 2125 रुपये प्रति क्विंटल तय की हुई है. जबकि खुले बाजार में इसका भाव 3000 रुपये तक चल रहा है. इसलिए, अगले साल (2023) के बफर स्टॉक के लिए गेहूं की खरीद को लेकर सरकार की चिंता बढ़ गई है. ऐसे में वो अभी से गेहूं के दाम पर नियंत्रण करने की कोशिश में जुट गई है. क्योंकि 81 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज भी देना है. हालांकि, ओपन मार्केट सेल लाने की असली मंशा को लेकर किसान संगठन सरकार पर सवाल उठाने लग गए हैं.
किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि जब गेहूं महंगे दाम पर एक्सपोर्ट हो रहा था, तब सरकार ने एक्सपोर्ट बंद करके किसानों का नुकसान किया. अब अगले साल ओपन मार्केट में गेहूं एमएसपी से महंगा न हो जाए वो इसकी जुगत लगा रही है. ओपन मार्केट सेल से शहरी लोगों को तो कुछ फायदा मिलेगा लेकिन, किसानों का भारी नुकसान होगा. सरकार बताए कि वो किसानों की इनकम बढ़ाना चाहती है या घटाना?
अगर इनकम बढ़ाना चाहती है तो फिर गेहूं का भाव घटाने के लिए इतना जोर क्यों लगा रही है. क्या वो किसानों के हित के लिए ऐसा ही जोर, किसी फसल का दाम घटने के बाद उसे बढ़ाने पर भी लगाती है? शायद नहीं. सरकार, गरीबों को फ्री अनाज बांटना चाहती है यह अच्छी बात है, बांटे, लेकिन किसानों की जेब काटकर ऐसा काम न करे. अपने पास से पैसा खर्च करके एमएसपी के ऊपर 400-500 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देकर किसानों से खरीद करे.
बहरहाल, ओरिगो कमोडिटी के रिसर्चर इंद्रजीत पॉल का कहना है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना बंद होने से गेहूं की जो बचत हो रही है उसके जरिए सरकार प्राइस कंट्रोल करने की कोशिश करेगी. सरकार जो ओपन मार्केट सेल ले आएगी उसमें भी दाम एमएसपी से ऊपर ही रहेगा. क्योंकि स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन जैसे सरकारी खर्चे भी जुड़ेंगे. हैफेड भी जो ओपन मार्केट सेल लाया है उसके गेहूं का रेट भी 2400-2500 रुपये के आसपास है.
सरकार की ये मंशा है कि अप्रैल 2023 तक भाव किसी भी तरह से टूटकर नीचे आए. कम से कम एमएसपी के स्तर तक ओपन मार्केट में दाम हो, ताकि सरकारी खरीद भी हो सके. पॉल का कहना है कि अगर ओपन मार्केट सेल नहीं होगी तो गेहूं का दाम 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक बने रहने की उम्मीद है. ऐसे में सरकारी खरीद नहीं हो पाएगी. सरकार की मंशा ऐसी नहीं लग रही है कि वो एमएसपी पर बोनस देकर गेहूं खरीदेगी.
रबी मार्केटिंग सीजन 2021-22 में सरकार ने एमएसपी पर रिकॉर्ड 433.44 लाख टन गेहूं खरीदा था. गेहूं की इतनी सरकारी खरीद पहले कभी नहीं हुई थी. लेकिन, 2021-22 फसल वर्ष (जुलाई-जून) में गेहूं का उत्पादन मार्च में हीट वेब चलने की वजह से लगभग 3 फीसदी घटकर 106.8 मीट्रिक टन रह गया.
यही नहीं रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से भारत को दुनिया भर में गेहूं का नया मार्केट मिला और हमने रिकॉर्ड 72,44,842 टन गेहूं का एक्सपोर्ट किया. जबकि, 2020-21 में गेहूं का एक्सपोर्ट सिर्फ 21,54,973 टन ही था. गेहूं के इंटनेशनल व्यापार में इन दोनों देशों की लगभग 25 फीसदी हिस्सेदारी है. भारत ने जो गेहूं एक्सपोर्ट किया था उसका दाम 27000 रुपये प्रति टन के आसपास था.
गेहूं के अनुमानित उत्पादन में हीट वेब की वजह से कमी और रिकॉर्ड एक्सपोर्ट की वजह से इसका रेट एमएसपी से ऊपर हो गया. इसके बाद से ही केंद्र सरकार दाम संभालने की कोशिश में जुटी हुई है. इस कड़ी में 13 मई से गेहूं और 12 जुलाई 2022 से आटा, मैदा और सूजी के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी गई. इसके बावजूद दाम पर बहुत अधिक कंट्रोल नहीं हुआ. देखना यह है कि 20 लाख टन के ओपन मार्केट सेल से दाम में नरमी आती है या नहीं. क्योंकि, भारत में गेहूं की घरेलू मांग 94.45 मिलियन टन है. ऐसा केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है.
मार्च 2022 में हीट वेब को देखते हुए इस साल काफी किसानों ने गेहूं की लू सहनशील किस्मों की बुवाई की है. भारत में गेहूं की फसल का सामान्य एरिया 304.47 लाख हेक्टेयर है. जबकि इस साल 23 दिसंबर तक 312.26 लाख हेक्टेयर में गेहूं बोया जा चुका है. अभी भी कई जगहों पर बुवाई चल रही है, ऐसे में गेहूं का रकबा और बढ़ेगा. ऐसा विशेषज्ञों का मानना है. इसलिए, अगर मौसम ने साथ दिया और बंपर फसल हुई तो गेहूं के दाम में नरमी आ सकती है.
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