भारत क्रांतियों के लिए जाना-जाने वाला देश है. भारत में खेती-किसानी से जुड़ी कई क्रांतियों के बारे में आपने सुना या पढ़ा होगा, जिसमें श्वेत क्रांति, हरित क्रांति, नीली क्रांति, गुलाबी क्रांति, रजत क्रांति और सुनहरी क्रांति शामिल हैं. वहीं इसके अलावा कृषि क्षेत्र में एक और क्रांति शामिल है जिसे पीली क्रांति के नाम से जाना जाता है. यह क्रांति वर्ष 1986 में शुरू हुई थी और 1987 तक चलती रही. पर क्या आप जानते हैं कि कृषि क्षेत्र में "पीली क्रांति" का संबंध किससे है? आइए जानते हैं.
पीली क्रांति मुख्य रूप से तिलहन फसलों के लिए मशहूर एक क्रांति है. इसमें सरसों, तिल, मूंगफली, सोयाबीन, कुसुम, सूरजमुखी, नाइजर, अलसी और अरंडी आदि शामिल हैं. ये क्रांति इन सभी तिलहन फसलों के बीजों और तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए की गई थी.
आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए सरसों जैसे खाद्य तेल का उत्पादन पीली क्रांति का सिद्धांत रहा है. इस क्रांति को तेल के घरेलू मांग को पूरा करने के लिए और देश में खाद्य तेलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था. इस क्रांति के जनक सैम पित्रोदा थे.
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रबी सीजन की शुरुआत मॉनसून के बाद हो जाती है. मतलब सर्दियां शुरु होने के साथ किसान रबी फसलों की बुवाई शुरू हो जाती है. इसकी खेती अक्टूबर से मार्च महीने तक होती है. वहीं रबी सीजन में तिलहन फसलों की खेती अधिक मात्रा में होती है. रबी सीजन में तिलहन फसलों में सरसों, अलसी और मूंगफली की खेती की जाती है. इन सभी तेलों का उपयोग खाना बनाने, पूजा करने के लिए किया जाता है.
मूंगफली: यह भारत में सबसे महत्वपूर्ण तिलहन है. इसे खरीफ फसल के रूप में उगाया जाता है. हालांकि, भारत में इसे रबी (मॉनसून फसल) के रूप में भी बोया जाता है.
सरसों: मूंगफली के बाद, सरसों भारत में दूसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है. इस तेल का उपयोग भारत की हर रसोई से लेकर हर कोने में किया जाता है. बाजार में इसके उत्पादन में उतार-चढ़ाव होता रहता है.
अलसी: अलसी का उपयोग पेंट, वार्निश, प्रिंटिंग स्याही, खाद्य तेल निकालने आदि के लिए किया जाता है.
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