trump modi news: पीएम मोदी का साफ संकेत नहीं होगा कोई समझौत गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम लिए बगैर उन्हें एक बड़ा संदेश दे दिया है. पिछले दिनों ट्रंप ने भारत समेत करीब 70 देशों के उत्पादों पर 25 प्रतिशत पारस्परिक टैरिफ लगाने के प्रस्ताव पर साइन किए हैं. ट्रंप ने रूस से तेल खरीदने की वजह से भारत से नाराजगी दिखाते हुए 25 फीसदी एक्स्ट्रा टैरिफ भी थोप दिया है. यह सबकुछ ऐसे समय में हुआ है जब भारत और अमेरिका के बीच एक ट्रेड एग्रीमेंट की बात चल रही थी. विशेषज्ञ मान रहे हैं कि पीएम मोदी ने गुरुवार को जो कुछ कहा है उससे उन्होंने अमेरिका और ट्रंप को एक बड़ा संदेश दे दिया है.
7 अगस्त को भारत हरित क्रांति के मसीहा एमएस स्वामीनाथन की 100वीं वर्षगांठ मना रहा था. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के किसानों को संबोधित किया. पीएम मोदी ने टैरिफ वॉर के बीच ही यह साफ कर दिया कि सरकार की प्राथमिकता किसानों का हित है और यह सर्वोच्च है. भारत अपने किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों के साथ कभी समझौता नहीं करेगा. पीएम मोदी ने कहा कि सरकार ने किसानों की ताकत को देश की प्रगति का आधार माना है. पीएम मोदी ने इसके साथ ही यह भी कहा, 'मुझे व्यक्तिगत तौर पर इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं. अपने देश के किसानों, अपने देश के मछुआरों और अपने देश के पशुपालकों के लिए, भारत तैयार है.'
भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है और यही इसे मजबूती प्रदान करता है. जहां बाकी दूसरी अर्थव्यवस्थाएं ठप हैं और जनसंख्या घट रही है, वहीं भारत अभी भी एक विकासशील विशाल अर्थव्यवस्था है. अमेरिकी कंपनियां भारतीय उपभोक्ताओं तक ज्यादा से ज्यादा पहुंच बनाने के लिए उत्सुक हैं. विदेश नीति के जानकारों की मानें तो पीएम मोदी ने अपने संदेश में इस बात को बेहतरी से बता दिया है. भारत में कृषि क्षेत्र 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी को रोजगार देता है. किसी भी व्यवधान के गंभीर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक परिणाम हो सकते हैं. एक दबाव समूह के तौर पर किसानों ने देश में बार-बार अपनी अहमियत को बताया है. कई सरकारों को नीतिगत फैसले बदलने पर मजबूर किया है. मोदी सरकार ने भी इसे मुश्किल से सीखा है.
अमेरिकी कृषि उत्पादों का विरोध कई मोर्चों पर है. पहला, मक्का और सोयाबीन जैसी ज्यादातर अमेरिकी फसलें जेनिटिकली मोडीफाइड (जीएम) फसलें हैं. छोटे भारतीय किसान अमेरिकी किसानों की किफायती फसलों की बराबरी नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वहां किसान बहुत ज्यादा मशीनों और टेक्नोलॉजी का प्रयोग करते हैं. सस्ते अमेरिकी उत्पादों का आगमन छोटी जोत वाले भारतीय किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है. भारत सरकार ने ट्रेड एग्रीमेंट पर झुकते न हुए यह साफ कर दिया है कि किसानों के हितों से समझौता नहीं किया जाएगा. डेयरी क्षेत्र के साथ भी यही स्थिति है. इसके अलावा, दूध उत्पादन का एक सांस्कृतिक पहलू भी है. अमेरिकी मवेशियों को अक्सर पशु उप-उत्पाद खिलाए जाते हैं, जो भारत में चिंता का विषय है.
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते का भविष्य अनिश्चित है. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने हाल ही में कहा था कि अब 'भारत को' आगे बढ़ना है. लेकिन भारत लगातार सतर्कता बरत रहा है. अधिकारियों ने कहा है कि कृषि और डेयरी क्षेत्र में कोई समझौता नहीं किया जाएगा और किसानों व छोटे उद्योगों के हित सर्वोपरि हैं. भारत को डर है कि अमेरिका के लिए अपने कृषि क्षेत्र को खोलने से अन्य देशों के लिए भी ऐसी ही पहुंच की मांग शुरू हो सकती है - जिससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने वाले खाद्य मूल्य संरक्षण पर असर पड़ सकता है. व्यापार वार्ता का अगला दौर 25 अगस्त को होना था लेकिन अब ट्रंप ने इसके लिए भी मना कर दिया है.
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