Organic Farming को बढ़ावा देने के लिए खुद खेती करने में जुटी UP सरकार, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

Organic Farming को बढ़ावा देने के लिए खुद खेती करने में जुटी UP सरकार, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

सरकार प्राकृतिक खेती को खुले दिल से बढ़ावा देने में लगी है, मगर रासायनिक खेती की तुलना में जैविक कृषि से उपज बहुत कम होने की धारणा, राह का रोड़ा बन रही है. इसे गलत साबित करने के लिए उप्र सरकार ने अब खुद अपने फार्म में जैविक खेती करने का प्रयोग शुरू किया है.

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Organic Farming को बढ़ावा देने के लिए खुद खेती करने में जुटी UP सरकार, पढ़ें पूरी रिपोर्टजैविक खेती के मिथक तोड़ने के लिए खुद खेती कर रहे हैं उप्र सरकार के कृषि विशेषज्ञ

आम धारणा है कि रासायनिक खेती से बंपर उत्पादन होता है जबकि तुलनात्मक रूप से जैविक खेती में उत्पादन बहुत कम होता है. किसान जैविक खेती के तरीकों को बेहद जटिल और परेशानियों का सबब भी मानते हैं. इस प्रकार की धारणाओं को मिथक साबित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने फार्म हाऊस में कृष‍ि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों द्वारा गेहूं और धान जैसी पारंपरिक फसलों की जैविक खेती कराने का अनूठा प्रयोग शुरू किया है.

इटावा स्थित कृषि विभाग के जौनई कृषि फार्म में इन दिनों जैविक पद्धति से गेहूं और धान की खेती करने का यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. इसके शुरुआती परिणाम भी उत्साहजनक आए हैं. इससे यहां जैविक खेती कर रहे कृषि विभाग के विशेषज्ञ और वैज्ञानिक खासे उत्साहित भी हैं. जौनई फार्म के प्रभारी सुनहरी लाल की अगुवाई में यह काम किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इसका मकसद जैविक खेती के बारे में किसानों के तमाम मिथकों को तोड़ कर उन्हें प्राकृतिक तरीके से खेती की ओर मोड़ना है. उन्होंने बताया कि पिछले साल खरीफ के सीजन में धान की पैदावार कर के इस प्रोजेक्ट का ट्रायल किया गया. अब ट्रायल के दूसरे दौर में रबी की फसल में गेहूं की बुआई की गयी है.  

जैविक खेती में उपज का परीक्षण   

लाल ने बताया कि जौनई फार्म में जैविक बीजों का ट्रायल शुरू किया गया है. इस क्रम में फार्म की 2 हेक्टेयर जमीन पर जैविक पद्धति से गेहूं और धान की खेती का प्रयोग भी किया जा रहा है. इसमें पहली उपज के रूप में धान की उन्नत किस्म ‘पूसा बासमती 1509’ लगाई गयी थी. उन्होंने बताया कि फार्म के दूसरे हिस्से में इसी किस्म की धान को रासायनिक तरीके से भी उपजाया गया. इसमें रासायनिक पद्धति से 21 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से धान की उपज हुई, जबकि जैविक पद्धति से उपज की मात्रा 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर रही. इसे वह उम्मीद से काफी ज्यादा उपज मानते हैं. उनका कहना है कि आम तौर पर जैविक खेती में पहली साल, रासायनिक खेती की तुलना में आधी से भी कम उपज होने की धारणा किसानों के मन में बनी हुई है. जबकि पहली उपज में मात्र पांच से छह कुंतल प्रति हेक्टेयर का अंतर, बहुत मायने नहीं रखता है. इससे लगता है कि उपज के बारे में यह एक मिथक ही है.  

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क्या कहते हैं जानकार

इस प्रोजेक्ट से जुड़े कृषि विभाग के विशेषज्ञ देवेन्द्र सिंह का कहना है कि जैविक खेती के लिए पूरी तरह से खेत तैयार करने में 3 साल का वक्त लगता है. इसके बाद जैविक पद्धति से पहली ही उपज में 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से धान की उपज को लागत के लिहाज से बंपर उत्पादन मानने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए. सिंह ने कहा कि किसान सिर्फ उत्पादन देखते हैं, उपज से पहले फसल पर खर्च हुई लागत को भूल जाते हैं. बेशक रासायनिक खेती की तुलना में जैविक खेती की लागत लगभग आधी होती है, जो साल दर साल घटती जाती है और उत्पादन धीरे धीरे बढ़ता है. जबकि रासायनिक खेती में लागत साल दर साल बढ़ती है और एक स्थिति ऐसी आती है जब उत्पादन स्थिर हो जाता है. इसे सीमांत उत्पादकता कहते हैं और रासायनिक खेती कमोबेश इसी स्थित में पहुंच गयी है.  

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सिंह ने कहा कि इस प्रयोग में अब आने वाले सालों में उत्पादन बढ़ना तय है. ऐसे में यह मानना गलत है कि जैविक खेती से शुरु में और आगे भी कम उपज होती है. उन्होंने कहा कि इस फार्म में अब लागत, उत्पादकता एवं अन्य पहलुओं का परीक्षण गेहूं पर भी किया जा रहा है. 
धान के प्रयोग के परिणाम और गेहूं के ट्रायल पर शोध के लिए विभाग ने हाल ही में युवा कृषि वैज्ञानिक अवनीश कुमार को जौनई फार्म में तैनात किया है. कुमार ने बताया कि उन्होंने जैविक खेती और रासायनिक खेती से उपज का तुलनात्मक अध्ययन करना शुरू कर दिया है. इसके आंकड़े जुटाकर वैज्ञानिक तरीके से यह स्थापित किया जाएगा कि खेती की दोनों पद्धतियों से क्या नफा नुकसान है. उन्होंने बताया कि अध्ययन रिपोर्ट की मदद से जैविक खेती को लेकर किसानों की भ्रामक धारणाओं को दूर किया जा सकेगा.

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जैविक खेती के लिए पाली गई गाय

जैविक खेती को मुनाफे का सौदा साबित करने के लिए जौनई फार्म में चल रहे ट्रायल को जैविक खेती के मानकों पर खरा उतारा जा रहा है. ट्रायल के दौरान जैविक खेती में प्रयोग होने वाले सभी अवयवों को फार्म में ही तैयार किया जाता है. जिससे इसके सटीक परिणामों पर कोई सवाल न उठे. इसलिए उपज में लगने वाली खाद, पानी से लेकर कीटनाशक तक, कोई भी चीज फार्म के बाहर से नहीं मंगाई जाती है. आलम यह है कि जीवामृत, घनजीवामृत और जैविक कीटनाशक भी फार्म में ही बनाए जाते हैं. इन्हें बनाने में इस्तेमाल होने वाले गोबर एवं गौमूत्र की आपूर्ति के लिए फार्म में एक देसी गाय भी पाली गयी है. लाल ने बताया कि इससे इस तथ्य को भी साबित किया जा सकेगा कि एक से दो हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती करने के लिए एक गाय पालना ही काफी है.

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जौनई फार्म की खासियत

उत्तर प्रदेश सरकार के सबसे पुराने कृषि फार्मों में शुमार जौनई फार्म इटावा जिले के बीहड़ पट्टी क्षेत्र में 1966 में स्थापित किया गया था. इसमें कुल 35 हेक्टेयर जमीन पर गेहूं, धान, सरसों और जौ की विभिन्न किस्मों के बीज तैयार किए जाते हैं. इस फार्म में तैयार हुए इन फसलों के उन्नत बीज किसानों को वितरित किए जाते हैं. उप्र सरकार के इस फार्म में सिर्फ इन चार फसलों की उन्नत किस्मों के बीज तैयार होते है. इन बीजों की उत्पादकता एवं अन्य पहलुओं का वैज्ञानिक परीक्षण तथा अध्ययन भी इस फार्म में किया जाता है. फार्म में उपजाई जा रही जैविक धान और गेहूं की उपज को प्रमाणित कराकर इन्हें जैविक बीज के रूप में किसानों को मुहैया कराया जाएगा. इस प्रकार जौनई फार्म आने वाले समय में प्रमाणिक जैविक बीजों की आपूर्ति का भी प्रमुख केन्द्र बन सकेगा. 

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