पश्चिमी देशों में भारत के खीरे (gherkin) की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है. पहले मांग कम थी, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद खीरे के दिन फिर गए हैं. आज हालात ये हैं कि खीरा उगाने वाले किसान मांग के हिसाब से आपूर्ति नहीं दे पा रहे हैं. पश्चिमी देशों में खीरे का आचार बड़ी मात्रा में खाया जाता है. यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद कई पश्चिमी देशों की स्थितियां बदली हैं. इससे उन्हें खीरे की खेप (cucumber production) नहीं मिल पा रही है. ऐसे में भारत के उत्पादकों का निर्यात तेजी से बढ़ा है.
भारतीय खीरा निर्यातक संघ के उपाध्यक्ष प्रदीप पुविआह ने 'बिजनेसलाइन' को बताया, अभी खीरे की मांग में बड़ी तेजी आई है और स्थिति ये है कि इसे पूरा नहीं किया जा रहा है. वजह ये है कि खीरे की सप्लाई कम है और इसके भंडार भी खाली पड़े हैं. पुविआह के एक अनुमान के मुताबिक, अभी खीरे की मांग और सप्लाई में तकरीबन 20 परसेंट का अंतर देखा जा रहा है.
मांग और आपूर्ति में अंतर की वजह से खीरे के दाम में पहले से बढ़ोतरी देखी जा रही है. इससे खीरा किसानों को फायदा हो रहा है. पुविआह के मुताबिक, पिछले चार महीने से खीरे की मांग पूरी करने की कोशिश की जा रही है. खीरे की अलग-अलग क्वालिटी होती है जिसमें एक ही घेरकिन. इसका साइज बाकी खीरे से छोटा होता है और इसका उत्पान बड़े पैमाने पर दक्षिण भारत में किया जाता है. इस खीरे की प्रोसेसिंग करने के बाद पश्चिमी देशों के बाजार में निर्यात किया जाता है.
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घेरकिन खीरे की खेती ठेकेदारी व्यवस्था के तहत की जाती है. निर्यातकों को जितने खीरे की जरूरत होती है, उसी हिसाब से खेती कराई जाती है. एक अनुमान के मुताबिक, कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में 60,000 एकड़ में खीरे की खेती की गई है. लगभग एक लाख किसान खीरे की खेती में लगे हैं. इन किसानों के उगाए खीरे मुख्य तौर पर अमेरिका, रूस और यूरोप के बाजारों में सप्लाई किए जाते हैं.
अभी खीरे की सप्लाई में कमी इसलिए देखी जा रही है क्योंकि इस बार उत्पादन कम हुआ है. पिछली बार मांग कम होने की वजह से निर्यातकों ने खेती कम कराई और अचानक मांग में तेजी आ गई. लेकिन मांग पूरी नहीं होने से सप्लाई में भारी अंतर देखा जा रहा है. पिछली बार कम मांग को देखते हुए इस बार 60 परसेंट तक खेती कराई गई थी. इसलिए अप्रैल-दिसंबर की अवधि में खीरे के उत्पादन में 40 परसेंट तक की कमी है. हालांकि खीरे के उत्पादन में धीरे-धीरे वृद्धि देखी जा रही है जिससे बैकलॉग में समय के साथ कमी आती दिखेगी.
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सूत्रों के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों में पड़े सूखे ने खीरे के उत्पादन में कमी दर्ज कराई है. पश्चिमी देशों में खीरे के आचार की मांग होती है जिसकी पूर्ति करने वाले देशों में भारत भी एक है. इस बार चूंकि मांग अधिक है और भारत में इसका उत्पादन कम हुआ है, इसलिए निर्यातकों पर दबाव बढ़ता हुआ दिख रहा है. भारत से पूरे साल खीरे का निर्यात होता है जबकि यूक्रेन और मैक्सिको सीजन में ही खेप भेजते हैं. भारत में साल में नौ महीने ही खीरे की खेती होती है, लेकिन निर्यात हमेशा चलता रहता है. इस निर्यात को पूरा करने के लिए खीरे का निर्यात किया जाता है. इस बार भंडारण में भी कमी देखी जा रही है.
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