हम सब को ऊर्जा के लिए पोषणयुक्त भोजन की आवश्यकता होती है. ऐसे में सभी का दाल, चावल और रोटी प्रमुख आहार है. लेकिन, बीते कुछ महीनों से गेहूं और आटे की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी देखी जा रही है. लोगों पर इन कीमतों का बोझ कम करने के लिए सरकार की ओर से लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. बीते दिनों मीडिया से बातचीत के दौरान खाद्य विभाग के सचिव संजीव चोपड़ा ने कहा कि गेहूं और आटे के खुदरा दाम बढ़ गए हैं और सरकार जल्द ही इसे नियंत्रित करने के उपाय करेगी.
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2022 में गेहूं की खुदरा कीमतों में 14 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वहीं आटे (गेहूं का आटा) के दामों में 18 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
खाद्य मंत्रालय लगातार गेहूं की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए सरकार नियमित रूप से गेहूं और आटे की कीमतों की निगरानी कर रहा है. वहीं कीमतों को कम करने के विकल्प तलाशे जा रहा हैं. मंत्रालय ने अभी किसी भी तरह के विकल्पों का खुलासा नहीं किया है. लेकिन, सूत्रों की मानें तो दाम कम करने के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) मौजूद स्टॉक से अधिकतम 20 लाख गेहूं बाजार में जारी कर सकता है. इसका निर्णय अगले सप्ताह तक किया जा सकता है. वहीं खाद्य सचिव ने कहा कि एफसीआई के गोदामों में गेहूं और चावल का स्टॉक संतोषजनक है. इसलिए सरकार सामान्य श्रेणी के तहत गेहूं और टूटे चावल के निर्यात की अनुमति देने से पहले विचार करेगी.
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घरेलू उत्पादन में कमी एफसीआई की खरीद में तेज गिरावट के बाद कीमतों को नियंत्रित करने के लिए केंद्र ने पिछले साल मई में गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन, मित्र देशों की सरकारों के अनुरोध के बाद मानवीय आधार पर केंद्र ने फिर से गेहूं के सशर्त निर्यात को अनुमति दी थी. ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) नीति के तहत सरकार एफसीआई के थोक उपभोक्ताओं और निजी व्यापारियों को समय-समय पर खुले बाजार में पूर्व-निर्धारित कीमतों पर खाद्यान्न, विशेष रूप से गेहूं और चावल बेचने की अनुमति देती है. इसका उद्देश्य मंदी के समय आपूर्ति को बढ़ावा देना और खुले बाजार की कीमतों को कम करना है.
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