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Technology: झींगा पालन में जरूरी है ड्रोन, जानें कैसे करता है मदद और क्या कहते हैं एक्सपर्ट

Technology: झींगा पालन में जरूरी है ड्रोन, जानें कैसे करता है मदद और क्या कहते हैं एक्सपर्ट

झींगा हैचरी एसोसिएशन के अध्यक्ष आंध्रा प्रदेश निवासी रवि कुमार येलांकी का कहना है कि झींगा मछली के चीन-अमेरिका बड़े उपभोक्ता हैं. देश में भी धीरे-धीरे झींगा की डिमांड बढ़ रही है. बेशक घरेलू बाजार में फ्रोजन झींगा की मांग कम है. बाजार में झींगा के रेट उसके वजन नहीं साइज के हिसाब से तय होते हैं. 

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झींगा के तालाब का फाइल फोटो. फोटो क्रेडिट-डॉ. मनोज शर्मा झींगा के तालाब का फाइल फोटो. फोटो क्रेडिट-डॉ. मनोज शर्मा

देश में झींगा पालन तेजी के साथ बढ़ रहा है. घरेलू बाजार से ज्यादा विदेशी बाजार में झींगा की डिमांड ज्यादा है. यही वजह है कि देश का 90 फीसद से ज्या‍दा झींगा एक्सपोर्ट हो जाता है. साइज के चलते साल में तीन से चार बार झींगा की फसल तैयार हो जाती है. दाना और दवाई इस तक बराबर पहुंचती रहे तो उत्पादन भी खूब होता है. झींगा किसी भी दूसरी मछली से ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल है. लेकिन खास पानी के चलते इसका पालन हर जगह नहीं किया जा सकता है. यही वजह है कि इसके फीड और दवाई का खास ध्यान रखना पड़ता है. 

झींगा के तालाब बड़े होने के चलते हर एक झींगा तक दाना और दवाई पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती है. फिश एक्सपर्ट का कहना है कि ड्रोन आने से ये परेशानी काफी हद तक दूर हो सकती है. क्योंकि ड्रोन ही है जो तालाब में एक-एक जगह फीड और दवाई पहुंचा सकता है. झींगा की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है. इसलिए ये बीमारी की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. अगर हर एक झींगा तक दवाई पहुंच जाए तो बीमारी फैलने का खतरा न के बराबर रह जाता है.  

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फीड खिलाने को इसलिए जरूरी है ड्रोन 

रवि कुमार ने किसान तक को बताया कि अभी हम कभी तालाब के एक कोने पर तो कभी दूसरे और तीसरे कोने पर जाकर झींगा को हाथ से दाना और दवाई  खिलाते हैं. हर झींगा पालक की यही कोशिश होती है कि सभी झींगा को बराबर दाना मिल जाए. ऐसा न हो कि कोई झींगा ज्यादा वजन का हो जाए तो कोई कमजोर ही रह जाए. क्योंकि झींगा के तालाब बड़े-बड़े होते हैं तो जब तक दूर का झींगा फीड के पास आता है तो पास वाला झींगा फीड को चट कर चुका होता है. लेकिन ड्रोन से तालाब में हर एक झींगा तक फीड पहुंच जाता है.

दवाई को पूरी तरह से पानी में मिला देता है ड्रोन 

ड्रोन विक्रेता शंकर गोयंका का कहना है कि जिस तरह से यह कोशिश की जाती है कि सभी मछलियों को बराबर दाना मिल जाए, इसी तरह से तालाब में दवाई का छिड़काव करते वक्त यह ख्याल रखना पड़ता है कि सभी मछलियां दवाई के प्रभाव में आ जाएं. लेकिन हाथ से दवाई का छिड़काव कैसे भी कर लो, लेकिन तालाब में कुछ न कुछ मछलियां छूट ही जाती हैं. और कुछ बीमारी ऐसी होती हैं कि अगर सभी मछली ठीक हो जाएं और एक भी बीमार रह गई तो वो फिर से दूसरी मछलियों को बीमार कर देगी.

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लेकिन ड्रोन तालाब के हर एक हिस्से  में दवाई का छिड़काव कर देता है. और उसके बाद जब मछलियां पानी में फड़फड़ाती हैं तो वो दवा पानी में अच्छी तरह से मिक्स हो जाती है. शंकर ने बताया कि मछलियों को दाना और दवाई खिलाने वाले ड्रोन की कीमत बाजार में 5.5 लाख रुपये से शुरू हो जाती है. उसके बाद आप जैसे फीचर चाहते हैं उसी हिसाब से उसके रेट हो जाते हैं. जैसे आपको ड्रोन में रडार चाहिए, कैमरा और सेंसर चाहिए तो उसी हिसाब से रेट भी बढ़ जाते हैं.