ट्रेन से पशु के कटने की घटना बेहद ही मामूली दिखाई देती है. कभी इस पर कोई चर्चा भी नहीं होती है. लेकिन भारतीय रेलवे की मानें तो इस तरह की घटनाओं से रेलवे को हर साल करोड़ों रुपये की चपत लग जाती है. घटना के बाद ट्रेनों के लेट होने से यात्रियों को जो परेशानी उठानी पड़ती है वो अलग. इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए रेलवे हर तरह के कदम उठा रहा है. रेलवे लाइन के किनारे गांवों में रहने वाले पशु पालकों को समझाने का काम किया जा रहा.
वहीं कुछ मामलों में पशु पालकों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कराई गई है. रेलवे ने ऐसे इलाकों की पहचान भी की है जहां पशु अक्कर रेलवे ट्रेक पर आ जाते हैं. ऐसी जगहों पर सीमेंट की दीवार भी खड़ी की जा रही है. कुछ खास ट्रेन के लेट होने पर तो रेलवे यात्रियों को मुआवजा भी देता है. घटना के बाद रेलवे हर यात्री को 100-200 रुपये का भुगतान करता है.
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रेलवे लाइन के किसाने से कचरा साफ करने के साथ ही जंगली पेड़-पौधे हटाए जा रहे हैं.
पशु प्रभावित जगह पर ट्रेन के ड्राइवर को बार-बार सीटी बजाने के निर्देश हैं.
गांवों में पशु पालकों की काउंसलिंग करने के साथ ही सेमिनार आयोजित करने के साथ ही जागरुकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
रेल लाइन के किनारे खाने-पीने का सामान फेंकने के लिए मना किया जाता है.
पशुओं के कटने की घटना के बाद अगर जिस ट्रेन से एक्सीडेंट हुआ है वो रुकती है तो उसके पीछे दूसरी दर्जनों ट्रेन की लाइन लग जाती है. सेक्शन में एक के पीछे एक ट्रेन खड़ी हो जाती हैं. रेलवे मंत्रालय की ओर से जारी हुए आंकड़ों की मानें तो चार साल में सवा लाख से ज्यादा ट्रेन सिर्फ इसलिए लेट हो गईं क्योंकि पशु कटने के बाद उन्हें कुछ देर के लिए रुकना पड़ा था. रेलवे ने पशु कटने के बाद ट्रेन लेट होने के जो आंकड़े बताए हैं वो कुछ इस तरह से हैं.
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साल 2019-20 में ट्रेन से पशु कटने की 27 हजार घटनाएं हुईं थी. इन सभी घटनाओं में 37 हजार ट्रेन लेट हुईं थी. 2020-21 में 20 हजार घटना के चलते 23 हजार ट्रेन लेट हुईं. 2021-22 में 29 हजार घटनाएं हुईं तो 36 हजार ट्रेन लेट हुईं. 2022-23 में 26 हजार घटनाओं के चलते 36 हजार ट्रेन लेट हुईं थी. कई बार रेलवे पुलिस रेल लाइन के किनारे पशु चराने वालों पर कार्रवाई भी करती है. ऐसे ही कुछ मामलों में रेलवे ने 2019 में दो अलग-अलग धाराओं में 51 एफआईआर, 2020 में 126, 2021 में 333 और 2022 में 428 एफआईआर दर्ज की गईं थी.
आरटीआई में मिली एक जानकारी के मुताबिक अगर डीजल से चलने वाली पैसेंजर ट्रेन एक मिनट रुकती है तो उसे 20401 रुपये का नुकसान होता है. वहीं इलेक्ट्रिक ट्रेन को 20459 रुपये का नुकसान होता है. इसी तरह डीजल से चलने वाली गुड्स ट्रेन को एक मिनट रुकने पर 13334 रुपये और इलेक्ट्रिक ट्रेन को 13392 रुपये का नुकसान होता है. यह वो नुकसान है जो सीधे तौर पर रेलवे को होता है. अब ट्रेन में बैठे यात्रियों को कितना नुकसान उठाना पड़ता होगा इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है.
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