इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) मद्रास के रिसचर्स ने खेती-बाड़ी से निकले कचरे को आधार बनाकर एक अनोखा पैकेजिंग मटेरियल विकसित किया है. यह पारंपरिक प्लास्टिक फोम्स का स्थायी और पर्यावरण अनुकूल विकल्प बन सकता है. पिछले दिनों अधिकारियों ने इसकी जानकारी दी. रिसर्चर्स ने बताया कि कृषि और कागज के कचरे पर उगाए गए मायसीलियम बेस्ड बायोकॉम्पोजिट्स पैकेजिंग के लिए अच्छी क्वालिटी प्रदान करते हैं. साथ ही पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल होते हैं. यह रिसर्च प्रतिष्ठित जर्नल ‘बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हुआ है.
IIT मद्रास के एप्लाइड मैकेनिक्स और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर लक्ष्मीनाथ कुंदनाटी ने कहा कि यह रिसर्च समाज और पर्यावरण दोनों पर क्रांतिकारी प्रभाव डाल सकता है. यह दो बड़ी समस्याओं—प्लास्टिक प्रदूषण और कृषि कचरे को निपटाने के लिए एक प्रैक्टिकल समाधान पेश करता है. उन्होंने कहा, 'भारत में हर साल 350 मिलियन टन से अधिक कृषि कचरा पैदा होता है. इसमें से अधिकांश को जला दिया जाता है या सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है. इससे वायु प्रदूषण होता है और बहुमूल्य संसाधन बर्बाद होते हैं. हमारा मकसद इन कचरे को मजबूत और बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग मटेरियल में बदलना है. इससे एक साथ दोनों समस्याओं का समाधान किया जा सके.'
फिलहाल यह टेक्निक लैब के लेवल पर सफल रही है जिसमें मटैरियल की मजबूती, पानी सोखने की क्षमता और बायोडिग्रेडेबिलिटी को टेस्ट किया गया है. आगे चलकर टीम का लक्ष्य इसकी स्केलेबिलिटी बढ़ाना और नैचुरल कोटिंग्स के जरिए इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना है. बाजार में यह समाधान आने के बाद यह सस्ता और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बनकर प्लास्टिक का स्थान ले सकता है. कुंदनाटी ने यह भी बताया कि इन बायोकॉम्पोजिट्स को बाकी इंजीनियरिंग उद्देश्यों जैसे थर्मल और ध्वनिक इंसुलेशन के लिए भी ढाला जा सकता है.
टीम ने गैनोडर्मा लुसिडम और प्लूरोटस ऑस्ट्रियाटस जैसी फफूंदों (मशरूम की किस्मों) को खेती और कागज के अपशिष्ट पर उगाकर वेस्ट-टू-वैल्यू की एक इनोवेटिव रणनीति अपनाई है. इस टेक्निक से न सिर्फ खुले में कचरा जलाने से बचाव होगा बल्कि पूरी तरह कंपोस्ट हो सकने वाले पैकेजिंग समाधान भी तैयार होंगे, जो सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों से मेल खाते हैं. रिसर्चर सैंड्रा रोज बिबी ने बताया, 'इस प्रोजेक्ट ने फफूंदों और सब्सट्रेट्स के सर्वोत्तम संयोजन को खोजा ताकि प्लास्टिक फोम जैसे मटेरियल की खासियतों के समान गुण मिल सकें.
यह रिसर्च पैकेजिंग इंडस्ट्री की इकोलॉजिकल फुटप्रिंट को घटाने और सतत विकल्पों को बढ़ावा देने का प्रयास है.' बिबी ने यह भी जोड़ा कि इस रिसर्च में यह व्यवस्थित ढंग से जांचा गया है कि अलग-अलग सब्सट्रेट्स मायसीलियम की वृद्धि, उसकी संरचना, मजबूती, पानी सोखने की क्षमता और बायो डिग्रेबिलिटी को किस तरह प्रभावित करते हैं.
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