
कल्पना कीजिए, खेतों में बेकार पड़ी गन्ने की खोई, जिसे अब तक एक कृषि अपशिष्ट या बोझ समझा जाता था, वही अब भारत की रक्षा, निर्माण और स्वास्थ्य क्षेत्रों में एक मूक क्रांति का आधार बन रही है. यह कहानी है असाधारण सोच, जुनून और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने वाले युवा इंजीनियरों की, जिन्होंने कचरे को कीमती खजाने में बदल दिया है. आईआईटी कानपुर के मैकेनिकल इंजीनियर आकाश पांडेय और उनकी प्रतिभाशाली टीम के सदस्यों अंकिता, अविनाश, आदित्य और अमित ने एक ऐसी देसी तकनीक विकसित की है, जो गन्ने की खोई से दुनिया के सबसे मजबूत नैनोमैटेरियल में से एक ग्रेफिन (Graphene) का निर्माण करती है. यह नवाचार सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के उज्ज्वल भविष्य की नींव का पत्थर है.
आकाश और उनकी टीम ने दावा किया है कि एक सरल लेकिन प्रभावशाली प्रक्रिया तैयार की है. वे गन्ने की खोई को सुखाकर उसका पाउडर बनाते हैं और फिर एक विशेष रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से उसे उच्च-गुणवत्ता वाले 2D नैनोमैटेरियल ग्रेफिन में बदल देते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह तकनीक पूरी तरह से "मेक इन इंडिया" है. इस प्रक्रिया से 1 किलो खोई से लगभग 300 ग्राम ग्रेफिन तैयार होता है, जो भारत को इस उन्नत मटेरियल के लिए आत्मनिर्भर बनाता है.
अकाश पांडेय का कहना है यह निर्माण और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूती और किफायत का संगम, जब इस ग्रेफिन को सीमेंट में मिलाया जाता है तो यह कंक्रीट की मजबूती को 1.5 गुना तक बढ़ा देता है और सीमेंट की खपत 25% तक कम कर देता है. टीम ने एक जियोपॉलीमर कॉम्पोजिट ईंट भी बनाई है, जो पारंपरिक ईंटों से 15% अधिक मजबूत है और इसमें सीमेंट भी कम लगता है.
यह न केवल निर्माण लागत घटाएगा, बल्कि पर्यावरण की भी रक्षा करेगा. इस नवाचार की सबसे चौंकाने वाली उपलब्धि है 'मल्टीस्पेक्ट्रल स्टील्थ टेक्नोलॉजी'. इस ग्रेफिन से बने टेक्सटाइल में छिपे इंसान, टैंक या हैंगर में खड़े एयरक्राफ्ट को थर्मल कैमरों और रडार की पकड़ में आना लगभग नामुमकिन है. यह तकनीक भारत को रक्षा क्षेत्र में एक बड़ी बढ़त दिला सकती है और हमारे सैनिकों के लिए एक अदृश्य सुरक्षा कवच का काम कर सकती है.
इससे ऑटोमोबाइल कार गाडियों के बॉडी और ड्रोन: हल्के, मजबूत और कुशल ग्रेफिन आधारित मटेरियल से बने ड्रोन और वाहनों की बॉडी न केवल 25 फीसदी तक अधिक मजबूत होती है, बल्कि वजन में भी हल्की होती है. इसका सीधा मतलब है-ड्रोन की पेलोड क्षमता में वृद्धि और वाहनों के लिए बेहतर ईंधन दक्षता. इसी ग्रेफिन से बने हेलमेट और जैकेट 15% तक अधिक मजबूत पाए गए हैं. यह टीम पहले भी पराली से बुलेटप्रूफ जैकेट बनाकर अपनी क्षमता साबित कर चुकी है, जो दिखाता है कि कृषि अपशिष्ट हमारी सुरक्षा का आधार बन सकते हैं.
अकाश का कहना है ग्रेफिन में अद्भुत पैकेजिंग क्षमताए होती हैं. इसके इस्तेमाल से फलों, सब्जियों और मछलियों जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों की शेल्फ लाइफ को बढ़ाया जा सकता है. इससे खाद्य बर्बादी रुकेगी और किसानों की आय बढ़ेगी. यह टीम खादी जैसे पारंपरिक भारतीय वस्त्रों को ग्रेफिन से और उन्नत बना रही है. साथ ही, नवजात शिशुओं के लिए एंटीमाइक्रोबियल, एंटीफंगल और गंध-मुक्त (Odorless) कपड़े विकसित किए जा रहे हैं, जो बच्चों को संक्रमण से बचाएंगे.
इस खोज की विश्वसनीयता को भारत सरकार की MSME लैब और दिल्ली की प्रतिष्ठित श्रीराम लैब में प्रमाणित किया गया है. सभी परीक्षणों में इसके गुण बेहतर पाए गए हैं, जो इसके औद्योगिक उद्योग के लिए बहुत उपयोगी है.आकाश पांडेय और उनकी टीम की यह कहानी सिर्फ एक इनोवेशन की कहानी नहीं है, यह जुनून, राष्ट्र-सेवा और नवाचार की कहानी है. यह साबित करती है कि भारत के युवा इंजीनियरों में वो क्षमता है, जो साधारण चीजों से असाधारण परिणाम दे सकते हैं.
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