राजस्थान सहित देशभर में वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ये संख्या ना सिर्फ शहरों बल्कि गांवों में भी बढ़ रही है. इससे वायु प्रदूषण भी बढ़ रहा है. इसीलिए वायु प्रदूषण को कम करने के लिए वाहनों के पुराने टायरों के वेस्ट मैनेजमेंट अब बेहद जरूरी हो गया है, लेकिन प्रदेश में टायर वेस्ट एक बड़ी समस्या बनती जा रही है. इसके लिए अब राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने टायर पायरोलिसिस इकाइयां को बढ़ाने और उनके अनुकूल माहौल बनाने की शुरूआत की है.
राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अध्यक्ष शिखर अग्रवाल ने बताया कि वाहनों की बढ़ती संख्या के कारण टायर कचरे के उत्पादन के साथ, ऐसी टायर पायरोलिसिस इकाइयों की स्थापना को सक्षम और प्रोत्साहित करना समय की मांग है जो प्रदूषण नहीं फैलाती. आरएसपीसीबी ने इसीलिए कुछ चेतावनियों के बाद नई टायर पायरोलिसिस इकाइयों की स्थापना और कंटीन्यूअस बैच प्रकार की मौजूदा इकाइयों के रूपांतरण की अनुमति देने का निर्णय लिया है.
अग्रवाल ने कहा कि इस निर्णय से न केवल टायर प्रसंस्करण इकाइयों में तुरंत निवेश बल्कि टायर कचरे का उचित निपटारा हो सकेगा. साथ ही ईपीआर लक्ष्यों को भी जल्दी पाया जा सकेगा. अग्रवाल ने कहा कि इसके अलावा हितधारकों, सीपीसीबी एवं गहन रिसर्च के बाद यह निर्णय लिया है जिससे उम्मीद यही है कि टायर वेस्ट का उचित निस्तारण हो सकेगा. साथ ही आर्थिक मूल्यों में भी वृद्धि हो सकेगी. इसी के साथ अवैध रिसाइक्लर्स पर भी नजर रखी जा सकेगी.
राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सदस्य सचिव विजय एन की ओर से जारी आदेश के अनुसार राज्य में स्थापित करने के लिए सहमति केवल ऐसी टायर पायरोलिसिस इकाइयों को दी जाएगी जो लगातार काम करती हैं. इसीलिए अब बैच प्रक्रिया पर चलने वाली इकाइयों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी. वहीं, बैच प्रक्रिया पर टायर पायरोलिसिस इकाइयों के संचालन और प्राधिकरण के लिए सहमति के रिन्युवल के लिए ऐसी इकाइयों को केवल औद्योगिक क्षेत्रों के भीतर ही अनुमति दी जाएगी.
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इसके अलावा ऐसी इकाइयों को गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों, नॉन अटेन्मेंट शहर (अलवर, कोटा, जयपुर, जोधपुर और उदयपुर) और राज्य के एनसीआर क्षेत्र में अनुमति नहीं दी जाएगी.
साथ ही बैच प्रक्रिया पर टायर पायरोलिसिस इकाइयों के संचालन और प्राधिकरण के लिए नवीनीकरण की सहमति इस शर्त पर दी जाएगी कि इकाई को 31.12.2025 तक कंटीन्यूअस प्रक्रिया में परिवर्तित कर दिया जाएगा. इस सम्बन्ध में राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल लगातार निगरानी रखी जाएगी.
बता दें कि राजस्थान में 2012 के बाद कंटीन्यूअस प्रकार की टायर पायरोलिसिस इकाइयों की स्थापना पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गयी थी. इसके बाद एनजीटी ने सीपीसीबी को एनईईआरआई और आईआईटी, दिल्ली की भागीदारी के साथ स्टडी करने का निर्देश दिया था ताकि स्टडी के नतीजे के आधार पर यह निर्णय लिया जा सके कि मौजूदा बैच या एडवांस बैच स्वचालित या केवल कंटीन्यूअस इकाइयों को अनुमति दी जाए या नहीं?
जिसके बाद एनजीटी एवं सीपीसीबी के निर्देश से टायर वेस्ट के निस्तारण की समस्या एवं प्रदूषण नियंत्रण के साथ ईपीआर( एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पांसिबिलिटी) को मध्यनजर रखते हुए यह निर्णय लिया गया.
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