
राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के बिगोद कस्बे के अब्दुल रज्जाक अपनी 10 एकड़ जमीन में जैविक खेती से ककड़ी, टमाटर, शिमला मिर्च, लौकी जैसी सब्जियों के साथ-साथ अमरूद और संतरे उगाते हैं. इन उपजों की पैदावार से वे सालाना 1 करोड़ रुपये की बिक्री करते हैं जिनमें से लगभग 30 लाख रुपये का खर्च आने के बाद 70 लाख की बचत होती है. यह बचत उन्हें अपनी ऑर्गेनिक खेती से हो रही है. इसके अलावा अब्दुल रज्जाक ने अपनी जैविक प्रयोगशाला बनाकर अन्य किसानों को ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए रास्ता दिखाया है. रज्जाक न केवल खुद को आर्थिक दृष्टि से मजबूत कर रहे हैं बल्कि 50-60 लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं.
ऑर्गेनिक फार्मिंग और खेती में नवाचार की बदौलत अब्दुल रज्जाक को कृषि विभाग द्वारा राज्य स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है. इससे पहले साल 2016-17 में जिला स्तर पर और साल 2012-13 में तहसील स्तर पर भी सम्मान पा चुके हैं. अब्दुल रज्जाक ने भीलवाड़ा जिले की प्रथम जैविक प्रयोगशाला में जैविक खाद और जैविक रसायन बनाए हैं.
बिगोद के किसान अब्दुल रज्जाक ने बताया कि साल 2006 में दसवीं पास करने के बाद उन्होंने खेती करने की सोची. साल 2010 में परिवार से एक बुरी खबर आई जब उनके 60 साल के पिता हारून आजाद को कैंसर का पता चला. रज्जाक कहते हैं, पिताजी को खीरा ककड़ी खाने का बड़ा शौक था. यह खीरा ककड़ी पॉलीहाउस की रासायनिक खाद और उर्वरक से पैदा होती थी. साल 2012 में अपने पिता के इंतकाल के बाद उन्होंने यह ठान लिया था कि अब ऑर्गेनिक फार्मिंग के माध्यम से “खुद शुद्ध खाऊंगा और दूसरों को भी शुद्ध खिलाऊंगा”. फिर अपनी 10 एकड़ जमीन में से 2 एकड़ में अमरूद और संतरे की बागवानी की और बाकी 8 एकड़ जमीन में सब्जियां जिनमें शिमला मिर्च, सादा मिर्च, ककड़ी, टमाटर, गोभी जैसी सब्जियों की जैविक खेती शुरू कर दी.
जैविक खेती करने वाले अब्दुल रज्जाक कहते हैं कि उनका सारा उत्पादन भीलवाड़ा मंडी में बिकता है. इस मंडी में रासायनिक खाद की उपज वाले फल और सब्जियों के ही भाव उन्हें मिलते हैं. रज्जाक कहते हैं, मुझे ऑर्गेनिक उत्पादन का अलग से भाव नहीं मिलता जबकि जैविक खेती में शुरुआत के दो-तीन साल में बाकी की तुलना में उपज कम होती है. मगर यह कम भाव भी मेरे निश्चय को नहीं डिगा सकते हैं. दो-तीन साल बाद मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने से फिर उपज बढ़ जाती है जिससे मेरी चिंता समाप्त हो जाती है. वैसे जैविक खेती रासायनिक खेती से महंगी भी पड़ती है. रज्जाक गोबर की खाद, वर्मी कंपोस्ट और अन्य कीटनाशक में जैविक चीजों का ही प्रयोग करते हैं.
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फल और सब्जियों की जैविक खेती के बारे में किसान अब्दुल रज्जाक बताते हैं कि वे जीवामृत गोमूत्र, देसी खाद में ग़ोबर की खाद, हरे पत्तों की खाद, जीवाणु कल्चर के अलावा बायो पेस्टीसाइड और बायो एजेंट जैसे क्राइसोपा का प्रयोग करते हैं. हरी कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार करने और जैविक आदानों (input) जैसे कि पंचगव्य, बीजामृत, जीवामृत, जैव उर्वरक अग्नि अस्त्र, ब्रह्मास्त्र, निमास्त्र, खट्टा रसायन, कड़वा रसायन, सहजन टॉनिक और अर्क का प्रयोग किया जाता है.
जैविक खेती करने वाले किसान अब्दुल रज्जाक यह भी बताते हैं कि खेत को स्वस्थ बनाने के लिए देसी गौ माता का मूत्र, नीम के पत्ते, निंबोली, छाछ, बेसन, आक के पत्ते, आड़ू के पत्ते और सभी तरह के पेड़ों के पत्तों को कीटनाशक और जंतु नाशक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. इस इलाके में अब्दुल रज्जाक के ऑर्गेनिक फार्मिंग का रोल मॉडल बनने के बाद प्रदेश भर से किसान पॉलीहाउस, नेट हाउस और ओपन खेती के नवाचार सीखने आते हैं. साथ ही रज्जाक खुद भी सोशल मीडिया के माध्यम से जैविक खेती के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए निशुल्क जानकारी देते हैं.
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अब्दुल रज्जाक ने यह भी बताया कि भीलवाड़ा के कृषि विभाग के आत्मा प्रोजेक्ट के सहायक निदेशक जीएस चावला, उद्यान विभाग के सहायक निदेशक राकेश कुमार, उपनिदेशक कृषि रामपाल खटीक भी समय-समय पर नई-नई जानकारी देते हैं. इससे उन्हें सीखने का मौका मिलता है.
कृषि विभाग भीलवाड़ा के आत्मा प्रोजेक्ट के उपनिदेशक जी एल चावला ने बताया कि जैविक खेती करने वाले अब्दुल रज्जाक बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं. वे महज 10वीं पास हैं, मगर ऑर्गेनिक फार्मिंग में वे इनोवेटिव फार्मर हैं. वे सभी प्रकार के जैविक खाद और कीटनाशक खुद ही तैयार करते हैं. इन्हें राज्य स्तर का कृषि विभाग से 50000 रुपये नकद और प्रमाण पत्र से सम्मानित किया जा चुका है. चावला कहते हैं, इससे पहले रज्जाक तहसील, जिला स्तर पर भी पुरस्कृत हो चुके हैं. चावला ने जैविक खेती के फार्म को प्रशासनिक अधिकारियों के साथ कृषि मंत्री को भी विजिट करवाई है. जैविक खेती के साथ-साथ वे मुर्गी पालन का काम भी बड़े पैमाने पर करते हैं. उनके पास 10,000 से अधिक पोल्ट्री बर्ड्स हैं.(रिपोर्ट-प्रमोद तिवारी)
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