देश में धान की खेती का रकबा लगातार बढ़ रहा है क्योंकि किसान इसमें अच्छे मुनाफे के चलते तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. कृषि मंत्रालय ने बताया है कि इस साल 20 जून तक देशभर में 13.22 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी है, जो पिछले साल के मुकाबले करीब 5 लाख हेक्टेयर ज़्यादा है. लेकिन, रोपी गई इस फसल को जुलाई के महीने में खास देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि इस दौरान फसल तेजी से विकास कर रही होती है और उसकी नाजुक पत्तियां कीटों, रोगों और खरपतवारों के प्रति अधिक संवेदनशील होती है. यही वजह है कि इस अवस्था में कीट, रोग और खरपतवार फसल को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, धान की फसल में खरपतवारों की समस्या सबसे गंभीर होती है. आमतौर पर खरपतवार से ज़्यादा नुकसान होता है. धान की फसल में पाए जाने वाले खरपतवार मुख्य रूप से तीन तरह के होते हैं. पहला चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार, दूसरा संकरी पत्ती वाले खरपतवार और तीसरा मोथा कुल के खरपतवार. धान की फसल में खरपतवारों से होने वाला नुकसान 5 से 85 फीसदी तक आंका गया है, जबकि कभी-कभी ये नुकसान 100 फीसदी तक भी हो सकता है.
खेतों से खरपतवारों को हाथ या खुरपी की मदद से निकाल सकते हैं. वहीं, कतारों में सीधी बोई गई फसल में कोनोवीडर या पैडीवीडर की सहायता से भी खरपतवारों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से किया जा सकता है. इसके अलावा, रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल भी बेहद जरूरी है. इसके बिसपायरीबैक (Bispyribac) दवा की 80-100 मिलीलीटर मात्रा का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस दवा को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर खेत में छिड़काव कर खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है. सही समय पर छिड़काव खरपतवारों और फसल दोनों के लिए अहम है.
धान की फसल को कीट और रोगों से भी काफी नुकसान उठाना पड़ता है. जीवाणु पत्ती झुलसा रोग किसानों के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब बना हुआ है. इस रोग में पत्तियों पर पानी के रंग के धब्बे बनने लगते हैं, जो बाद में हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं. पत्तियां अंदर की तरफ सिकुड़ी हुई दिखाई पड़ती हैं, जिसकी वजह से पौधों का विकास नहीं हो पाता है. यह रोग जीवाणु से फैलता है. जब इस रोग का प्रकोप खेतों में दिखाई पड़े, तो उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि उर्वरकों के ज़्यादा इस्तेमाल से कीट-रोगों का प्रकोप बढ़ता है. इसकी रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन (Streptocycline) दवा की 15 मिलीलीटर मात्रा, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (Copper Oxychloride) की 500 ग्राम मात्रा दवा को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर खेत में छिड़काव करना चाहिए. अगर संभव हो सके, तो एक बार और इस दवा के छिड़काव को दोहराना चाहिए.
धान का सबसे ज़्यादा हानिकारक भूरा फुदका कीट (ब्राउन प्लांट हॉपर) यानी बीपीएच है. इनके शिशु और वयस्क दोनों ही पौधों के तने और पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे फसल कमजोर होकर गिरने लगती है. पौधों पर इसके लक्षण झुलसा बीमारी की तरह दिखते हैं. इस कीट से धान की फसल को बहुत हानी होती है. भूरे फुदके की रोकथाम के लिए किसानों को कुछ खास कदम उठाने चाहिए. खेत की नियमित रूप से जांच करते रहें ताकि कीटों का प्रकोप शुरुआती अवस्था में ही पता चल सके. रोपाई के समय पौधों के बीच उचित दूरी बनाए रखें ताकि हवा का संचार बना रहे और कीटों का जमावड़ा कम हो. अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल, 1मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी या कार्बरिल 50 डब्ल्यू पी, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें.
जुलाई के बाद अगर धान की देर से रोपाई की जाती है, तो ब्लास्ट रोग का प्रकोप बढ़ने का खतरा ज़्यादा रहता है. ब्लास्ट रोग नियंत्रित करने के लिए कार्बेन्डाजिम (Carbendazim) नामक दवाई से बीजों को उपचारित करना चाहिए. इसकी 2 से 2.5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से इस्तेमाल करें. बीजों को इस दवा से उपचारित करने से पहले उन्हें 24 घंटे तक भिगोना चाहिए. अगर आप ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो फिर कार्बेन्डाजिम दवा की 1% मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं.
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