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Anima Ear Tag: कैसे होती है और क्यों जरूरी है पशुओं के लिए पहचान, पढ़ें डिटेल

Anima Ear Tag: कैसे होती है और क्यों जरूरी है पशुओं के लिए पहचान, पढ़ें डिटेल

पशुओं के कान में लगे टैग यानि रजिस्ट्रेशन से पशुपालक को कई तरह की योजनाओं का फायदा मिलता है. हाल ही में केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने बताया है कि अब तक करीब 30 करोड़ पशुओं को इस तरह के खास टैग नंबर जारी किए जा चुके हैं. 

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भैंस पालन भैंस पालन

अगर आप गाय-भैंस पालते हैं तो फिर जरूरी हो जाता है कि उन्हें एक पहचान दी जाए ये दिलाई जाए. पशु की खरीद-फरोख्त और सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए आज पशुओं को एक खास पहचान दिलाना बहुत जरूरी हो गया है. इतना ही नहीं पशुओं में फैलने वाली महामारी की रोकथाम के लिहाज से भी ये बहुत जरूरी है, क्योंकि सरकार ने इसके लिए पशुओं के संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण कानून (PCICDA), 2009 भी बनाया है. पशुओं की पहचान यानि उनका रजिस्ट्रेशन कराना अब कोई मुश्कि(ल काम नहीं रह गया है. नजदीक के पशु चिकित्सा केन्द्र पर रजिस्ट्रेशन कराने की जानकारी देकर पशुओं की टैगिंग कराई जा सकती है. इस तरह के टैग आपने अक्सर गाय-भैंस के कान में रंग-बिरंगे से देखे होंगे. 

आमतौर पर पशुपालकों के दिमाग में इन्हें देखकर यही सवाल उठता है कि आखिर इसका फायदा क्या है. क्या ये सिर्फ पशुओं की पहचान और उनकी गिनती भर के लिए ही हैं. लेकिन इसका जवाब है नहीं. असल में पशुओं के कान में लगे ये टैग इंसानों की तरह से ही पशुओं का आधार कार्ड है. इस टैग में 12 नंबर होते हैं.

टैग पर लिखे नंबर को बेवसाइट में डालते ही गाय-भैंस का पूरा चिठ्ठा खुल जाता है. पशुओं के कान में लगने वाले इस टैग नंबर से पशुओं का इलाज, टीकाकरण से लेकर सरकारी योजनाओं का फायदा, बीमा आदि सभी तरह का काम अब बस टैग नंबर से हो जाता है. इतना ही नहीं पशु के चोरी होने पर इस नंबर की मदद से पशु के मिलने की संभावना भी ज्यादा रहती है.

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जानें पशुओं के कान में लगने वाले टैग के बारे में 

विश्वसनीय और जरूरी डाटाबेस के लिए पशु की पहचान वाला रिकॉर्ड बहुत जरूरी होता है. 

भारत सरकार पहले से ही पशुओं के संक्रामक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण कानून (PCICDA), 2009 पास कर चुकी है, जो पशु पहचान को अनिवार्य बनाता है.

भारत सरकार ने इस कानून को इसलिए पास किया है जिससे महामारी रोकने को जरूरी कदम उठाय जा सकें. 

पशु पहचान के तमाम तरीके जैसे टैटू, छापा, कान का बिल्ला, RFID, Injectable, Bolus इत्यादि चलन में हैं.

लेकिन अब ईयर टैग इन सब में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला तरीका है. 

ईयर टैग में खास 12 नंबर की डिजिट होती है जिसकी मदद से पशुओं का ब्योरा मिलता है. 

कोई चाहकर भी ईयर टैग की खास 12 नंबर की डिजिट की नकल नहीं कर सकता है. 

अगर ठीक से लगा है तो टैग लगने से कोई परेशानी नहीं होती है और सालों-साल लगा रहता है. 

पशु के कान में टैग लगने के साथ ही उसकी इनाफ (INAPH) सूचना प्रणाली पर नस्ल, आयु, गर्भावस्था, दूध उत्पादन, पशुपालक का पूरा ब्योरा दर्ज हो जाता है. 

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पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग, भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर पशु पहचान की व्यवस्था संचालित करने के लिए नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड (NDDB) को नामित किया है.

NDDB देश में स्थित सभी ईयर टैग उपभोक्ता और उत्पादन संस्थाओं के लिए 12 डिजिट का ये खास नंबर तैयार करती है. 

खास पहचान नंबर लेने के लिए  उपभोक्ता और उत्पादन करने वाली संस्थाएं जरूरत के मुताबिक क्रय आदेश (PO) की कॉपी संलग्न कर NDDB को आवेदन कर सकती हैं.