डेयरी सेक्टर के ही एक बड़े प्रोडक्ट स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) ने डेयरी किसान ही नहीं डेयरी कंपनियों ओर डेयरी कोऑपरेटिव के सिस्टम को हिलाकर रख दिया है. एसएमपी के चलते किसानों को दूध के सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं. डेयरी कंपनियां और कोऑपरेटिव किसान और ग्राहक के बीच में फंसकर रह गई हैं. दोनों का ख्याल करते-करते कंपनियां अपना मुनाफा खोती जा रही हैं. सबसे ज्यादा बड़ा संकट कोऑपरेटिव के सामने आ खड़ा हुआ है. इस सब के पीछे एसएमपी को ही बड़ी वजह माना जा रहा है.
आज बाजार में एसएमपी के रेट और डिमांड दोनों ही कम हो चुके हैं. दाम बढ़ने के इंतजार में एसएमपी की लागत भी नहीं मिल पा रही है. देश में एसएमपी का स्टॉक लगातार बढ़ता जा रहा है. सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि जब तक एसएमपी की डिमांड नहीं बढ़ेगी तो इस परेशानी का कोई रास्ता भी नहीं निकलेगा.
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वीटा डेयरी में जीएम चरन जीत सिंह ने किसान तक को बताया कि घी-मक्खन तैयार करने के लिए दूध से फैट अलग किया जाता है. इसे इस तरह से मान लें कि गाय के 100 लीटर दूध से 3.6 किलो फैट तो 8.7 किलो एसएमपी तैयार होता है. फैट से घी-मक्खन तैयार हो जाता है और डिमांड के इंतजार में एसएमपी का स्टॉक बढ़ता चला जाता है. ऐसा नहीं है कि एसएमपी की एकदम से बिक्री बंद हो गई है. थोड़ा बहुत एक्सपोर्ट हो रहा है तो थोड़ी सी मात्रा घरेलू बाजार में भी खप रही है. लेकिन डिमांड कम होने के चलते देश में एसएमपी का आज करीब 3.5 लाख टन का स्टॉक हो चुका है. बीते साल मार्च में एसएमपी के दाम 350 रुपये किलो तक थे. लेकिन आज की बात करें तो बाजार में 220 रुपये से लेकर 280 रुपये किलो तक का एसएमपी बिक रहा है.
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चरन जीत सिंह ने बताया कि एसएमपी से लस्सी, दही, मिठाई के साथ ही नवजात बच्चों का फीड तैयार कर सकते हैं. इसके साथ ही पोल्ट्री फीड में प्रोटीन के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन परेशान करने वाली बात ये है कि ऐसा कम हो रहा है. इसके पीछे की एक बड़ी वजह डेयरी प्रोडक्ट में बड़े स्तर पर मिलावट का होना है. मिलावटी प्रोडक्ट सस्ता होता है और एसएमपी से बना प्रोडक्ट रेट के मामले में उसके सामने मुकाबला नहीं कर पाता है. इस मामले में असली-नकली की पहचान करने वाले फूड डिपार्टमेंट से जितनी उम्मीद की जाती है वो भी उस तरह से काम नहीं कर पा रहा है.
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