प्रोडक्शन के मामले में इंडियन पोल्ट्री विश्व के दूसरे कई देशों से बेहतर है. पोल्ट्री कम दाम में प्योर और हाई प्रोटीन का सबसे अच्छा सोर्स माना जाता है. इतना ही नहीं पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि ये खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर भी देता है. लेकिन बार-बार होने वाला अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (HPAI) H5 का अटैक पोल्ट्री सेक्टर को पीछे धकेल देता है. कुछ वक्त के लिए लोग पोल्ट्री प्रोडक्ट अंडे-चिकन पर भरोसा करना बंद कर देते हैं. लेकिन सरकार लगातार ये कोशिश कर रही है कि कैसे भी एवियन इन्फ्लूएंजा (बर्ड फ्लू) पर काबू पाया जाए.
इसके लिए वैक्सीन भी तैयार हो रही है. साथ ही इसे फैलने से रोकने के लिए सर्विलांस (निगरानी) सिस्टम को भी और ज्यादा मजबूत बनाने के प्लान पर चर्चा चल रही है. हाल ही में केन्द्रीय डेयरी और पशुपालन सचिव अलका उपाध्याय ने देशभर के एक्सपर्ट संग इस पर चर्चा की. इस मौके पर एनिमल हसबेंडरी कमिश्नर अभिजीत मित्रा भी मौजूद थे. गौरतलब रहे ये बीमारी जूनोटिक बीमारी में आती है. इसी के चलते वन हैल्थ मिशन के तहत इसके सर्विलांस सिस्टम को और अपग्रेड किए जाने पर चर्चा हो रही है.
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बैठक के दौरान चर्चा में ये बात सामने आई है कि सर्दियों के मौसम में माइग्रेड (प्रवासी) पक्षी भारत आते हैं. बर्ड फ्लू फैलने का ये एक बड़ा कारण है. इसी को देखते हुए इसकी निगरानी के लिए ऐसा सिस्टम तैयार करने पर चर्चा हो रही है जिससे वक्त रहते इस वायरस पर काबू पा लिया जाए. इसके लिए सबसे पहले सर्दियों के मौसम में झील-झरने, तालाब, नदी आदि ऐसी जगह जहां पानी रहता है और माइग्रेड बर्ड आती हैं वहां निगरानी के लिए एक सिस्टम तैयार किया जाए.
जिससे की वायरस के फैलने पर कंट्रोल किया जा सके और वक्त रहते चेतावनी भी जारी की जा सके. इतना ही नहीं गीले बाजारों (जहां मीट-मछली और जिंदा जानवर बेचे जाते हैं), वाटर पाइंट, इस्तेमाल किया हुआ पानी, बूचड़खानों और पोल्ट्री फार्म जैसी जगहों पर कम लागत वाली तकनीक का इस्तेमाल कर पर्यावरण निगरानी के लिए एसओपी विकसित करने के प्लान पर भी चर्चा की गई.
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देश के हर एक पोल्ट्री फार्म में जाकर मुर्गियों की जांच करना. गांव में बैकयार्ड पोल्ट्री के तहत घरों में पाली जा रही एक-एक मुर्गी की जांच करना मुमकिन नहीं है. इसलिए एकसपर्ट की मानें तो अब पानी से वायरस की जांच करने के तरीके पर जोर देने की चर्चा हो रही है. इसके लिए किसी भी मोहल्ले और कालोनी के सीवर का पानी जहां गिर रहा है वहां से पानी लेकर उसकी जांच की जाएगी. अगर किसी जगह के पानी में वायरस मिलता है तो फिर वहां रहने वालों के साथ ही उस मोहल्ले-कालोनी में आने वालों की भी जांच की जाएगी. अभी कोविड और पोलियो वायरस के लिए इस्तेमाल किए हुए पानी की जांच का काम सेंटर फॉर सेल एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB), भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV), पुणे ने इस क्षेत्र में रिसर्च शुरू की है, जिससे काफी खास और उम्मीद भरे रिजल्ट मिल रहे हैं.
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