गले में कई रंग वाले रिबिन, पैरों में घुंघरू और पेट पर मेहंदी की सजावट. मुंह उठाकर इठलाते हुए बकरियां रैम्प पर कैटवॉक दिखाएंगी. तो वहीं बकरे अपने मशल्स दिखाएंगे. मसलन, पूरी अकड़ के साथ तन कर यहां-वहां टहल रहे बकरे भी घूमते नजर आएंगे. चौंकिए मत... ये सब सच होने जा रहा है. इसके लिए मथुरा स्थित केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थाएन (सीआईआरजी) में मंच सज रहा है. 17 मार्च यानी शुक्रवार से सीआईआरजी मथुरा में आयोजित होने जा रहे मेले में ये सब देखने को मिलेगा. मेले में दूर-दूर से पशुपालक अपने भेड़-बकरी लेकर पहुंचेंगे. मेले में सबसे ज्यादा दूध देने वाली बकरी भी आएंगी.
सीआईआरजी के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली ने किसान तक को बताया कि राष्ट्रीय बकरी मेले के दौरान किसान गोष्ठी का आयोजन भी किया जा रहा है. इसके अलावा मेले में पशु पालन प्रोद्योगिकी प्रदर्शन, बकरी उत्पाद एंव मूल्य संवर्धन तकनीकी प्रदर्शन, विभिन्न नस्लों की बकरियों का प्रदर्शन, बकरी पालन के क्षेत्र में आने वाली विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा, वैज्ञानिक बकरी पालन प्रशिक्षण, बकरी पालन व्यवसाय एवं कृषि से संबंधित विभिन्न औद्यागिक इकाइयों द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी देखने को मिलेंगी. वहीं बकरी स्वास्थ्य शिविर का आयोजन भी किया जाएगा.
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डायरेक्टर के मुताबिक मेले में सबसे ज्यादा दूध देने वाली बकरियों के बीच भी प्रतियोगिता होंगी. खूबसूरत बकरियों को खिताब से नवाजा जाएगा, लेकिन इसके लिए यह जरूरी होगा कि वो शुद्ध नस्ल की हों. साथ ही ज्यादा वजन के पहलवान बकरे भी तलाशे जाएंगे. सबसे वजनदार बकरे को इनाम दिया जाएगा. इस मेले में देशभर से पशुपालक आ रहे हैं.
वैसे तो देश में बकरियों की 37 रजिस्टर्ड नस्ल हैं. हर एक नस्ल की अपनी एक अलग खासियत है. किसी नस्ल को मीट के लिए पसंद किया जाता है तो कोई दूध के लिए पाली जाती है. कुछ ऐसी भी नस्ल हैं जो दूध और मीट दोनों के लिए पाली जाती हैं. देश में बीटल नस्ल के बकरे और बकरियों की संख्या 12 लाख है. यह नस्ल खासतौर पर पंजाब में पाई जाती है. लेकिन दूध के चलते हर राज्य में थोड़ी बहुत पाली जा रही हैं. जबकि ठंडे और पहाड़ी इलाके की तीन खास नस्ल पश्मीना के लिए पाली जाती हैं. जबकि पश्मीना देने वाली नस्ल के बकरे बोझा ढोने के काम में भी लिए जाते हैं.
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