Dairy Milk: डेयरी से जुड़ी इस योजना की खूब होती है तारीफ, 10 साल में बढ़ा 10 करोड़ टन दूध
Milk Production केन्द्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा छोटे पशुपालकों को ध्यान में रखते हुए साल 2014 में आरजीएम योजना की शुरुआत की गई थी. पांच साल की इस योजना के लिए 2400 करोड़ रुपये दिए गए थे. इस योजना का खास मकसद गाय-भैंस की सभी तरह की देसी नस्ल को बढ़ावा देना है. योजना की कामयाबी को देखते हुए ही इसे जारी रखा गया है.
Milk Production केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय की एक योजना आजकल खूब चर्चाओं में बनी हुई है. डेयरी से जुड़ी इस योजना के तहत कई काम किए जा रहे हैं. खास बात ये है कि डेयरी सेक्टर में इस योजना की खूब चर्चा हो रही है. और हो भी क्यों न, इसी योजना की बदौलत बीते कई साल से भारत दूध उत्पादन में नंबर वन बना हुआ है. बीते साल दूध उत्पादन 24 करोड़ टन पर पहुंच गया था. हर साल दूध उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है. पशुओं का दूध उत्पादन भी बढ़ रहा है.
इस योजना का नाम है राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM). डेयरी एक्सपर्ट का कहना है कि इस योजना के तहत दो बड़े काम किए गए हैं. एक पशु नस्ल सुधार और दूसरा दूध उत्पादन बढ़ाना. और दोनों के लिए ही आर्टिफिशल इंसेमीनशन और सैक्स सॉर्टेड सीमन जैसी कारगर योजनाएं चलाई गईं जो लगातार कामयाबी की ओर बढ़ रही हैं.
RGM से डेयरी-पशुपालन में आए ये बदलाव
देश में दूध उत्पादन साल 2014-15 में 14.60 करोड़ टन से बढ़कर साल 2023-24 में 23.90 करोड़ टन हो गया है. बीते 10 साल के दौरान 63.55 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.
देश में बोवाइन पशुओं की कुल उत्पादकता साल 2014-15 में प्रति पशु प्रति साल 1640 किलोग्राम थी. साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति साल बढ़कर 2072 किलोग्राम हो गई है. इस दौरान 26.34 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.
देशी और नॉन-डिस्क्रिप्ट गोपशुओं की उत्पादकता साल 2014-15 में प्रति पशु प्रति साल 927 किलोग्राम थी. साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति साल बढ़कर 1292 किलोग्राम हो गई है. इसमे 39.37 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.
भैंसों की उत्पादकता साल 2014-15 में प्रति पशु प्रति साल 1880 किलोग्राम से बढ़कर साल 2023-24 में प्रति पशु प्रति साल 2161 किलोग्राम हो गई है. इसमे14.94 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.
नस्ल सुधार और दूध उत्पादन बढ़ाने पर ऐसा हो रहा काम
योजना के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग दूध उत्पादन और बोवाईन पशुओं की उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम चला रहा है. अब तक, 8.32 करोड़ पशुओं को कवर किया जा चुका है. 12.20 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान किए गए हैं, जिससे 5.19 करोड़ किसान लाभान्वित हुए हैं.
इस कार्यक्रम के तहत देशी नस्लों के सांड समेत उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों का उत्पादन करना है. इसके तहत गोपशु की गिर, साहीवाल नस्ल, भैंसों की मुर्राह, मेहसाणा नस्ल के लिए काम किया जा रहा है.
वहीं नस्ल चयन कार्यक्रम के तहत गोपशु की राठी, थारपारकर, हरियाणा, कांकरेज नस्ल और भैंस की जाफराबादी, नीली रवि, पंढारपुरी और बन्नी नस्लों को शामिल किया गया है. अब
अब तक चार हजार उच्च आनुवंशिक गुणवत्ता वाले सांडों का उत्पादन किया जा चुका है और उन्हें वीर्य उत्पादन के लिए शामिल किया गया है.