Disease in Fish Pond फिशरीज एक्सपर्ट का कहना है कि एक दर्जन से ज्यादा छोटी-बड़ी ऐसी बीमारियां हैं जो मछलियों में पाई जाती हैं. इसमे से कुछ का कारण बैक्टी रिया और पैरासाइट होते हैं. इन्हीं में से एक बीमारी है अल्सर. खासतौर पर बरसात के दिनों में इसके फैलने की संभावना ज्यादा रहती हैं. क्योंकि बारिश का पानी तालाब के पानी को भी दूषित कर देता है. और अगर एक मछली को अल्सर बीमारी हो गई तो फिर इसे तालाब की दूसरी मछलियों के बीच फैलने में देर नहीं लगती है.
जैसे कहा जाता है कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है तो ठीक वैसे ही अल्सर से बीमार एक मछली पूरे तालाब की मछलियों को बीमार कर सकती है. हालांकि इस बीमारी के फैलने के और भी कई कारण हैं. अल्सर के चलते मछलियों की मौत भी हो जाती है. अगर अल्सर पीडि़त मछली बाजार में बिकने आ जाए तो खाने वाले को भी बीमार कर सकती है.
फंगस यानि फफूंद के चलते मछलियों के बीच अल्सनर रोग जल्दीऐ होता है. तालाब, टैंक में पाली जाने वाली मछलियों के साथ ही नदी में रहने वाली मछलियों में भी अल्सर रोग होता है. लेकिन एक्संपर्ट का मानना है कि खेत के पास बने तालाब में पलने वाली मछलियों में अल्स र होने की संभावना ज्याादा रहती है. इस बीमारी की पहचान मछलियों के शरीर पर खून जैसे लाल धब्बेस हो जाते हैं. कुछ दिन बाद यही धब्बे घाव बन जाते हैं और मछलियों की मौत हो जाती है.
तालाब को किनारे से इतना ऊंचा उठा दे या बांध बना दें कि उसमे आसपास का गंदा पानी न जाए. खासतौर पर बारिश के मौसम में बरसात होने के बाद तालाब के पानी का पीएच लेवल जरूर चेक करते हैं. या फिर बारिश के दौरान तालाब के पानी में 200 किलो के करीब चूना भी मिलाया जा सकता है.
अगर तालाब की कुछ मछलियों को अल्ससर हो जाए तो उन्हें अलग कर दें. और अगर तालाब की ज्यातदातर मछलियों में अल्सकर बीमारी फैल गई है तो तालाब में कली का चूना जिसे क्विलक लाइम भी कहते हैं के ठोस टुकड़े डाल दें. एक्सीपर्ट के मुताबिक प्रति एक हेक्टेूयर के तालाब में कम से कम 600 किलो चूना डालें. चूने के साथ ही 10 किलो ब्लीबचिंग पाउडर भी प्रति एक हेक्टेायर के हिसाब से डालें. इसके साथ ही लीपोटेशियम परमेगनेट का घोल भी प्रति एक हेक्टेपयर के तालाब में एक लीटर तक ही डालें.
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