ये बात सही है कि बकरे-बकरी का पालन दूध और मीट के लिए किया जाता है. लेकिन गोट एक्सपर्ट की मानें तो आज बाजार में दूध से ज्याकदा मीट की डिमांड है. रोजाना का घरेलू बाजार हो या एक्सपोर्ट मार्केट मटन की बहुत डिमांड है. इसके अलावा साल में एक बार बकरीद के दौरान कुर्बानी के लिए भी बकरों की बहुत डिमांड रहती है. ये वो मौका होता है जब बकरों के मुंह मांगे दाम मिलते हैं. ज्यादातर बकरी पालक इस मौके पर ही अपना पूरे साल का खर्च निकालते हैं.
गोट बाजार एक्सपर्ट की मानें तो बकरी पालन में सबसे बड़ी बात ये है कि पालने के साथ ही छह महीने बाद बकरा मुनाफा देने के लिए तैयार हो जाता है. अब तो बकरे के मीट एक्सपोर्ट में आने वाली परेशानियों को भी काफी हद तक दूर कर लिया गया है. वहीं केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के डायरेक्टर मनीष कुमार चेटली का कहना है कि मीट कारोबार में मंदी आने की संभावनाएं अब ना के बराबर रह गई हैं.
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गोट एक्सपर्ट और स्टार साइंटीफिक गोट फार्मिंग, मथुरा के संचालक मोहम्मद राशिद ने बताया कि वैसे तो अपने इलाके के हिसाब से मौजूद बकरे और बकरियों की नस्ल पालनी चाहिए. क्योंकि वही नस्ल अच्छी तरह से ग्रोथ करेगी. लेकिन खासतौर पर मीट के लिए पसंद किए और पाले जाने बकरों की जो नस्ल हैं उसमे बरबरी, जमनापरी, जखराना, ब्लैक बंगाल, सुजोत प्रमुख रूप से हैं. इन्हें पालने से दोहरी इनकम होती है. क्योंकि बरबरी, जमनापरी और जखराना नस्ल की बकरियां दूध भी खूब देती हैं.
गोट एक्सपर्ट अमजद काजी ने बताया कि बहुत से कारोबारी ऐसे होते हैं जो बकरीद पर बकरे बेचने के लिए पांच से छह महीने के बकरों को पालना शुरू कर देते हैं. छह महीने की उम्र तक का बकरा बड़े ही आराम से पांच-छह हजार रुपये में मिल जाता है. और आगे के छह-सात महीने उसकी खूब अच्छी तरह से खिलाई कर उसे बकरीद के लिए तैयार किया जाता है. और इस तरह से वो बाजार में 15 से 16 हजार रुपये तक का बिक जाता है. इस तरह एक छह महीने का बकरा भी बकरी पालक को मुनाफा देने लगता है.
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मनीष कुमार चेटली ने किसान तक को बताया कि अभी तक होता यह था कि एक्सपोर्ट के दौरान बकरे के मीट की केमिकल जांच होती थी. कई बार ऐसा हुआ कि मीट कंसाइनमेंट लौटकर आए हैं. यह इसलिए होता था कि बकरों को जो चारा खिलाया जाता था उसमे कहीं न कहीं पेस्टीसाइड का इस्तेमाल हुआ होता था. लेकिन अब सीआईआरजी ने आर्गनिक चारा उगाना शुरू कर दिया है. इस चारे को बकरों ने भी खाया. लेकिन जब उनके मीट की जांच हुई तो वो केमिकल नहीं मिले जिनकी शिकायत पहले आती थी. इस पर हमारे संस्थान में और कई तरह की रिसर्च चल रही हैं.
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