गायें देखते ही देखते आंखों के सामने तड़पते हुए दम तोड़ रही हैं. पहले आगे के दोनों पैर जकड़ जाते हैं. मुंह से लार टपकने लगती है. फिर शरीर कमजोर पड़ने लगता है और गाय एक जगह बैठकर रह जाती है. और इस तरह अगले चार से छह दिन में गाय दम तोड़ देती है. अब तक 15 सौ से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है. ये हाल है जैसलमेर के 30 से ज्यादा गांवों का. लेकिन अफसोस इस बात का है कि इस बीमारी का ना तो कोई टीका है और ना ही कोई इलाज.
फिर भी बड़ी संख्या में गायों की मौत होने के चलते डॉक्टरों की टीम अलग-अलग गांव में पहुंचना शुरू हो गई हैं. एक्सपर्ट की मानें तो खासतौर पर अप्रैल से जून तक इस बीमारी का असर देखने के मिलता है. हालांकि इसके पीछे एक वजह हरे चारे की कमाई भी बताई जा रही है.
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डा. ऊमैश वैगंटीयार, डायरेक्टर पशुपालन ने किसान तक को बताया कि गर्मी के दिनों में खासतौर पर जैसलमेर में हरे चारे की कमी हो जाती है. पीने के पानी की भी कमी हो जाती है. पशु भूखे-प्यासे यहां-वहां घूमते रहते हैं. इसी के चलते पशुओं के शरीर में कैल्शियम समेत दूसरे मिनरल्स की कमी हो जाती है. जिसके चलते होता ये है कि जब पशु को खुले मैदान में कोई मृत पशु दिखाई देता है तो वो उसकी हड्डी खाने लगता है या फिर उसके सड़े हुए शव को चाटता है. और ऐसा होने उस हेल्दी पशु के शरीर में बोटुलिज्म बैक्टी़रिया दाखिल हो जाता है. यही बैक्टीरिया गायों को बीमार करता है.
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सैकड़ों गायों की मौत के सवाल पर डा. ऊमैश वैगंटीयार का कहना है कि अभी इस बीमारी का कोई टीका नहीं बना है. और ना ही कोई इलाज है. लेकिन हां, इतना जरूर है कि अगर पशुपालक जागरुक रहें तो गायों की मौत का टाला जा सकता है. करना ये है कि जब किसी भी पशु की मौत हो जाए तो उसके शव का अच्छी तरह जमीन के अंदर दफन कर दें. और खास ख्याल रहे कि ऐसा करते वक्त ये देख लें कि जहां मृत पशु को दफन किया जा रहा है उसके आसपास तालाब या पोखर ना हो जहां पशु पानी पीने आते हों. इतना ही नहीं चारागाह की जमीन पर भी मृत पशु को नहीं दफनाना चाहिए.
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