ठंड के मौसम में दुधारू पशुओं (गाय-भैंस) में दूध देने की क्षमता घट जाती है. इसलिए उनकी देखभाल बेहद जरूरी है. बेहतर रखरखाव कर और संतुलित मात्रा में सही चारा देकर पशुओं का दूध बढ़ाया जा सकता है. पशुओं का दूध घटने का कारण उन्हें के चारे में छिपा है. दरअसल, सर्दी के दिनों में पशुओं को ज्यादा भूख लगती है, ऐसे में उन्हें सामान्य दिनों के मुकाबले ज्यादा चारा खिलाना चाहिए. ऐसे में जब पशुओं को संतुलित मात्रा में चारा डाला जाता है तो दूध में वृद्धि होती है.
एक्सपर्ट की मानें तो पशुओं को 60 प्रतिशत से अधिक पाचन क्षमता वाला चारा देना चाहिए. दुधारू पशुओं को ठंडी में संतुलित आहार में खनिज मिश्रण, एनर्जी बूस्टर देने पर दूध नहीं घटता है. वहीं, पशुओं की सही देखभाल करके भी दूध देने की क्षमता 25 प्रतिशत बढ़ाई जा सकती है. भूसा दुधारू पशुओं की ऊर्जा के मुख्य स्त्रोतों में से एक है. सर्दियों में पशुओं को भरपेट भूसा खाने के लिए देना चाहिए. इसके अलावा हरे चारे में बरसीम और जई असरदार खुराक है.
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वहीं, अनाज में गेहूं का दलिया, ग्वार, बिनोला, चना, खल खिलाने से भी पशुओं को लाभ होता है. पशुओं को बिनोला खिलाने के लिए उसे पहले रातभर पानी में भिगोकर रखें. इसके बाद सुबह पानी बदलकर ताजा पानी लें और उबाले. फिर यह दिन में दो बार पशुओं को दें. वहीं, ऐसे और भी कई कारण हैं, जिनसे दूध उत्पादन प्रभावित होता है. मौसम में बदलाव होने से पशुओं के शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जिसके चलते पशु बीमार पड़ते हैं और दूध की क्षमता पर असर पड़ता है.
दूध दुहने के समय गाय-भैंस के आसपास किसी तरह का शोरगुल न हो तो पशु ठीक से दूध देते हैं. वहीं, पशुओं को रखने के लिए थोड़ा खुले हुए बाड़े का निर्माण करना चाहिए, जो सभी मौसमों के हिसाब से ठीक रहे. इसके अलावा इसमें हवा का प्रवाह सही रहना चाहिए. इसके अलावा पशुओं की निगरानी करते रहें. उनकी गोबर, मूत्र, या अन्य किसी प्रकार के अलग लक्षण दिखने पर पशु चिकित्सक को दिखाएं और सलाह का पालन करें.
वैसे तो भारत में 50 नस्लें पाई जाती हैं, लेकिन पांच नस्लों- गिर, राठी, साहीवाल, लालसिंधी, नागौरी की गायों की डिमांड ज्यादा रहती है. इन नस्लों की गाय की दूध उत्पादन की क्षमता अधिक हाेती है. वहीं, भैंसों में मुर्रा नस्ल की भैंस सबसे ज्यादा दूध देती है.
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