इस मौके पर 72 घंटे लापरवाही बरती तो बांझ हो सकती हैं गाय-भैंस, जानें वजह

इस मौके पर 72 घंटे लापरवाही बरती तो बांझ हो सकती हैं गाय-भैंस, जानें वजह

एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि बच्चा देने के 72 घंटे के भीतर पशुओं की खास देखभाल करने से उन्हें होने वाली कई तरह की बीमारियों को टाला जा सकता है. वर्ना इन बीमारियों पर इलाज का खर्चा तो होता ही है साथ में पशु की जान भी जा सकती है. पशु बांझ भी हो सकता है.

Advertisement
इस मौके पर 72 घंटे लापरवाही बरती तो बांझ हो सकती हैं गाय-भैंस, जानें वजहज्यादा दूध देने वाली भैंसों की नस्ल

जब गाय-भैंस बच्चा देती है तो पशुपालक खूब खुश होते हैं. अगर वो बच्चा मादा है तो और ज्यादा खुश होते हैं. सोचते हैं कि दूध देने के लिए एक और पशु आ गया. लेकिन एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो गाय-भैंस के बच्चा देने और जेर गिरने के बाद पशुपालक दूसरे काम में लग जाते हैं. बच्चा देने वालीं गाय-भैंस की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं रहता है. मतलब पशु के प्रति लापरवाही बरतने लगते हैं. लेकिन 72 घंटे तक बरती गई ये ही लापरवाही पशु के लिए जानलेवा बन जाती है. 

यहां तक की पशु बांझ भी हो सकता है. पशु का दूध सूखने से पशुपालक का नुकसान और ज्यादा बढ़ जाता है. इस बीमारी के तहत पशु की बच्चेदानी (गर्भाशय) में मवाद पड़ जाता है. और इसी वजह से पशु के इलाज पर होने वाले खर्च के चलते पशुपालन की लागत बढ़ जाती है. यही बीमारी मिल्क फीवर की शक्ल भी ले लेती है.  

ये भी पढ़ें: Water Quality: पोल्ट्री फार्म में मुर्गियां बीमार ना हों इसलिए पिलाएं ये खास पानी, पढ़ें डिटेल

ये हैं इस बीमारी के लक्षण और उपाय 

  • बच्चा देने के बाद कुछ भैसों के गर्भाशय में मवाद पड़ जाता है. 
  • मवाद की मात्रा कुछ मिली से लेकर कर्इ लीटर तक हो सकती है.
  • बच्चा देने के दो महीने बाद तक गर्भाशय में संक्रमण हो सकता है. 
  • मवाद पड़ने पर भैंस की पूंछ के आसपास चिपचिपा मवाद दिखार्इ देता है. 
  • मवाद पड़ने पर भैंस की पूंछ के पास मक्खियां भिनकती रहती हैं.
  • भैंस के बैठने पर मवाद अक्सर बाहर निकलता रहता है. 
  • मवाद देखने में फटे हुए दूध की तरह या लालपन लिए हुए गाढ़े सफेद रंग का होता है.
  • पूंछ के पास जलन होने के चलते पशु पीछे की ओर जोर लगा़ते रहते हैं. 
  • जलन ज्यादा होने पर पशु को बुखार हो सकता है. 
  • गर्भाश्य के इस संक्रमण के चलते भूख कम हो जाती है और दूध सूख जाता है.
  • इलाज के तौर पर बच्चेदानी में दवार्इ रखी जाती है. 
  • पीडि़त पशु को इंजेक्शन लगाकर भी इलाज किया जाता है. 
  • पीडि़त पशु का इलाज कम से कम तीन से पांच दिन कराना चाहिए. 
  •  पूरा इलाज न करवाने पर पशु बांझ हो सकता है.
  • इस बीमारी के बाद पशु हीट में आए तो पहले डॉक्टरी जांच करा लें. 
  • डॉक्टरी जांच के बाद ही प्राकृतिक या  कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए. 
  • इस बीमारी के बाद हीट के एक-दो मौके छोड़ने पर सकते हैं.

ये भी पढ़ें: Goat Meat: अगर आप बकरों को खि‍ला रहे हैं ये खास चारा तो बढ़ जाएगा मुनाफा, जाने वजह

 

POST A COMMENT