बकरी पालन अक्सर आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों के लिए वरदान माना जाता है. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नस्ल की बकरियां पाली जाती हैं. लेकिन बरबरी बकरी ऐसी नस्ल है जिसे भारत के लगभग हर क्षेत्र में पाला जा सकता है. बरबरी बकरी को ज्यादातर दूध और मांस के लिए पाला जाता है. राजस्थान के धौलपुर जिले के सरमथुरा क्षेत्र में मंजरी फाउंडेशन के कैंपस में बरबरी बकरी पाली जा रही है.
इन बकरियों के केयर टेकर वासुदेव शर्मा बरबरी बकरी को गॉट बैंक कहते हैं. वे बताते हैं कि ये बकरी दूध और मांस दोनों के काम आती है. अगर हमें कभी जरूरत होगी तो हम कभी भी इन्हें बेच सकते हैं. इस कैंपस में 8-10 बरबरी बकरी और एक बकरा पाला हुआ है.
बरबरी बकरी के नाम का इतिहास सोमालिया के हिंदमहासागर के एक शहर बरबेरा के नाम पर है. भारत और पाकिस्तान में लगभग हर क्षेत्र में यह बकरी पाई जाती है. इस नस्ल की बकरी को बरबरी और बकरे को बरबरा कहते हैं. बरबरी बकरी आकार में बहुत बड़ी नहीं होती. हालांकि इनकी प्रजनन क्षमता काफी अच्छी होती है. 14-16 महीने में दो बार बच्चे दे सकती है. एक बार में दो से तीन बच्चे बरबरी बकरी पैदा सक सकती है. बच्चों का वजन 2-3 किलो तक हो सकता है.
वासुदेव बताते हैं कि बरबरी बकरी डेढ़ से दो लीटर तक दूध दे देती है. साथ ही इसका सबसे अधिक बिजनेस मांस के लिए होता है. बरबरी नस्ल के बकरा मीट और प्रजनन के काम में लिया जाता है. भारत में इस नस्ल की बकरी का पालन लोकप्रिय हो रहा है. वासुदेव कहते हैं कि इस डांग क्षेत्र में पहले सिर्फ अपराध की खबरें आती थीं, लेकिन अब गांवों में बकरी पालन कर गरीब लोग अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं.
बरबरी बकरी की पहचान काफी आसान है. इसका सिर छोटा और साफ होता है. साथ ही छोटे कान होते हैं. सींग छोटे और हल्के घुमावदार होते हैं. बरबरी बकरी के शरीर पर भूरे या सफेद रंग के धब्बे होते हैं. साथ ही बरबरी बकरे के सींग काफी बड़े,नुकीले और दिखने में सुंदर होते हैं. इस नस्ल का बकरा 40-45 किलो तक का हो जाता है और बकरी 30-35 किलो तक होती है. बरबरी बकरी की खास बात यह होती है कि यह खुद को किसी भी जलवायु में आसानी से ढाल लेती है.
बरबरी बकरी को पालना बहुत कठिन काम नहीं है. वासुदेव बताते हैं कि इस बकरी को पालने के लिए नमी वाली जगह का चयन करना होता है. कोशिश करें कि इनके चरने के लिए खुला मैदान हो. ताकि चरने के लिए हरा चारा मिल सके. इनके बांधने की जगह साफ-सुथरी जरूर होनी चाहिए. ताकि पालने का खर्चा कम से कम हो सके. साथ ही एक शेड में 7-8 बकरियों से ज्यादा नहीं रखनी चाहिए.
बरबरी नस्ल की बकरियां आमतौर पर कुछ भी खा लेती हैं. लेकिन झाड़ियां, पेड़ के पत्ते, दाना, ग्वार का भूसा और मूंगफली का चारा आसानी से खाती हैं.
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