दो जून की रोटी के लिए बिहार जैसे राज्य से हर साल हजारों की संख्या में युवा गांव को छोड़ रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं. लेकिन इनमें से कई ऐसे युवा हैं, जो शहर की नौकरी को छोड़ पुरखो की परंपरागत बिजनेस को एक नए स्वरूप के साथ आगे बढ़ाने के लिए घर वापस आ रहे हैं. मुज्जफरपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर सेमरा गांव के पप्पू सिंह ने बीटेक की पढ़ाई करके कुछ साल नौकरी की. लेकिन इन दिनों गांव में रहकर पीढ़ियों से चले आ रहे फल के बिजनेस को आगे बढ़ा रहे हैं. इनके पास करीब 150 एकड़ में लीची के बागान हैं, जिससे सालाना 40 से 45 लाख की कमाई कर रहे हैं.
32 वर्षीय पप्पू सिंह लीची के अलावा सीजन के अनुसार अन्य फलों का बिजनेस करते हैं. ये आज खुद आत्मनिर्भर बनने के साथ कई लोगों के लिए पूरे साल दो जून की रोटी का व्यस्था कर रहे हैं. ये कहते हैं कि रोजगार का रास्ता गांव से होकर ही गुजरता है. बस लोगों को थोड़ा समझने की जरूरत है.
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पप्पू सिंह ने किसान तक से बातचीत में बताया कि आंध्र प्रदेश में तीन साल की नौकरी के दौरान जब बेहतर भविष्य नहीं दिखा. तो पिता के 30 साल के फल व्यापार से जुड़ गए. पिछले तीन साल से उनके व्यापार को आगे बढ़ा रहा हूं. आगे वह कहते हैं कि उनके आने के बाद से फूड से जुड़ी हुई कंपनी सीधे बागान से फल लेकर जाती है. पहले उनके पिता स्थानीय मंडी और व्यापारियों को ही फल बेचा करते थे. पप्पू के पास 150 एकड़ में लीची और करीब 100 एकड़ में आम के बागान हैं. जिससे उनकी अच्छी कमाई हो जाती है. इसके साथ ही सीजन के अनुसार सेब ,अंगूर का बिजनेस भी करते हैं. आम, लीची के सीजन में करीब 250 लोग उनके बागान में काम करते हैं.
लीची के सीजन में प्रतिदिन पप्पू सिंह के बागान से 8 से 9 टन तक लीची तोड़ी जाती है. इनके बागान का अधिकांश लीची करीब दो साल से फूड कंपनी लेकर जाती है. किसान वीरेंद्र सिंह कहते हैं कि जहां स्थानीय बाजार में 50 से 60 रुपये तक लीची बेची जाती थी, वहीं अब कंपनी 100 से 120 रुपये प्रति किलो लीची लेकर जाती है. इसके साथ ही आम भी बाजार के रेट से 10 से 20 रुपये बढ़ाकर लेती है. वहीं सुपर प्लम कंपनी के प्रतिनिधि बसंत झा कहते हैं कि बिहार में आने वाले दिनों में फल से जुड़े किसानों के लिए बाजार खोजने की जरूरत नहीं है. बल्कि अब कंपनी खुद उनके दरवाज़े पर जाकर उनसे उनका फल खरीदेगी.
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पप्पू सिंह कहते हैं कि फल के बिजनेस से उनकी सालाना कमाई 70 से 75 लाख रुपये तक की है, जो उनकी इंजीनियरिंग वाली 40 हजार महीना की नौकरी से कई गुना ज्यादा है. यह कहते हैं कि केवल लीची के बागान से 50 लाख तक की कमाई हो जाती है. वहीं आम, अंगूर और सेब के बिजनेस से सालाना 25 लाख तक की शुद्ध कमाई है. ये कहते हैं कि जिन लोगों के पास खुद की जमीन है. उससे अच्छी कमाई नहीं हो रही है. वैसे लोग बागवानी से जुड़कर अच्छी कमाई कर सकते हैं.